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एआई तकनीक से डीपफेक वीडियो

एआई तकनीक के आने के बाद डीपफेक वीडियो को पहचान पाना आम लोगों के लिए लगभग नामुमकिन हो गया है। एक सर्वे में सामने आया कि 69ः लोग एआई जनरेटेड आवाजों को पहचान नहीं पाते, और सेलेब्रिटी के नाम पर चल रहे फर्जी वीडियो को असली समझकर भारी नुकसान झेलते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल अब आम जनता के लिए सबसे बड़ा साइबर खतरा बन चुका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले तीन सालों में डीपफेक से जुड़े फ्रॉड मामलों में 550 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन मामलों में पैसे की रिकवरी दर महज 34.1 प्रतिशत है। यानी जो पैसा गया, उसका लौटना मुश्किल है। वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन के साथ हुई एक ठगी में 7 करोड़ की ठगी में सिर्फ 5.25 करोड़ की रिकवरी हो पाई कृ और यह देश की सबसे बड़ी रिकवरी मानी जा रही है। मुंबई के एक डॉक्टर ने मुकेश अंबानी के नाम पर चल रही एक स्कीम पर भरोसा करते हुए 7 लाख रुपये गवां दिए। हैदराबाद के डॉक्टर ने वित्त मंत्री के डीपफेक वीडियो पर भरोसा करके 20 लाख रुपये का निवेश कर दिया और साइबर ठक का शिकार हो गए। एक डीपफेक वीडियो में सद्गुरु जग्गी वासुदेवन ने निवेश के लिए लिंक दिया। एक महिला ने लिंक खोला, जहां एक व्यक्ति ने कंपनी प्रतिनिधि बनकर उसे व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा लिया। वे उसे वेबसाइट्स फॉलो करने और व्यापार करने के लिए मनाते रहे। महिला ने 3.75 करोड़ रुपये निवेश कर दिए, फिर ठग गायब हो गया। साइबर अपराधी पहले किसी लोकप्रिय सेलेब्रिटी का वीडियो और आवाज का डेटा इकट्ठा करते हैं। इसके बाद एआई आधारित डीपफेक टूल्स की मदद से उनका एक नकली वीडियो बनाते हैं जिसमें वे निवेश या किसी स्कीम को प्रमोट करते दिखते हैं। इन वीडियो को सोशल मीडिया या मैसेजिंग ऐप्स के जरिए वायरल किया जाता है। भरोसे में आए लोग लिंक पर क्लिक करते हैं और लाखों रुपये की धोखाधड़ी का शिकार बन जाते हैं।डीपफेक तकनीक आज सिर्फ मनोरंजन या एडिटिंग टूल नहीं रही, यह एक खतरनाक हथियार बन चुकी है, जो आपकी जरा-सी लापरवाही का फायदा उठाकर आपकी पूरी जीवनभर की कमाई छीन सकती है। भारत में साइबर ठगी के तौर-तरीकों में खतरनाक बदलाव देखने को मिल रहा है।

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