सनातन आस्था का प्रमुख केंद्र है डासना का देवी मंदिर

भारत आस्था और श्रद्धा का महान देश है। भारत के प्रत्येक राज्य के कोने-कोने में आपको ऐसे-ऐसे मंदिर मिल जाएंगे जो कई सदियों पुराने हैं, जिनकी स्थापत्य कला व पौराणिक महत्व और मान्यता व सनातन पहचान है। गाजियाबाद जनपद के डासना में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है जिसकी विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है। पुरातत्व विभाग भी इस मंदिर के साढ़े पांच हजार साल पहले स्थापित होने की बात मानता है।
गाजियाबाद में एनएच-24 के पास में एक देवी मंदिर है, जिसकी स्थापना पांडवों के समय से भी पहले की गई थी। मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने इसकी स्थापना की थी। अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी इस मंदिर में शरण ली थी। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि यहां पर अगर सच्चे मन से मुराद मांगी जाती है तो वह जरूर पूरी होती है।
गाजियाबाद के डासना स्थित प्राचीन देवी मंदिर के महंत नरसिंहानंद सरस्वती के अनुसार देवी मंदिर देश के प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है। भारत में महाकाली की सबसे प्राचीन प्रतिमा देवी मंदिर में मौजूद है। ऐसा जन विश्वास है कि भगवान परशुराम ने देवी मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। ऐसी मान्यता है पहले वनवास के बाद पांडव मां कुंती के साथ देवी मंदिर में रहे थे।
महंत ने बताया कि रावण के पिता को भी देवी मंदिर से जोड़ा जाता है। डासना स्थित प्राचीन देवी मंदिर में नवरात्र के मौेके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। अष्टमी और नवमी के दिन तो हजारों लोग देवी मां के दर्शन के लिए आते हैं। महंत नरसिंहानंद ने बताया कि यहां लोग अपने परिवार के लोगों की सुख शांति के लिए प्रचंड चंडी देवी से दुआ मांगते हैं। करीब पांच हजार साल पुराने इस मंदिर में भगवान शिव , नौ दुर्गा, सरस्वती, हनुमान की मूर्ति स्थापित हैं। माना जाता है कि मंदिर प्रांगण में स्थित तालाब में स्नान करने से चर्म रोग व कुष्ठ रोग ठीक हो जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि जब रावण के पिता ने विशाल तपस्या की थी तो उनकी कमर में गहरे घाव हो गए थे। ऐसी मान्यता है कि रावण के पिता के घाव देवी मंदिर के तालाब में नहाने से ठीक हुए थे।
पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मंदिर साढ़े पांच हजार साल पुराना सिद्ध पीठ कमल पर विराजमान मां महाकाली का मंदिर है। यह मंदिर महाभारत काल से ही यहां स्थापित है। यहीं पर एक शिवजी का भी मंदिर है जिसे बताया जाता है कि भगवान परशुराम के द्वारा स्थापित किया गया था लेकिन बाद में जब मुगलों का शासन आया तो यह मंदिर ध्वस्त कर दिया गया था। कहा जाता है कि उस वक्त मौजूद पुजारी द्वारा स्थापित माता और भोलेनाथ के शिवलिंग को यहां पर बने गहरे तालाब में ही छुपा दिया गया था
मंदिर के मौजूदा महंत नरसिंहानंद सरस्वती ने बताया मंदिर में महाकाली की अधिकतर प्रतिमाएं कसौटी पत्थर से बनी हुई है। जब दिल्ली को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने घेर लिया था, तब मंदिर पर बड़ा हमला कर तोड़ दिया गया था। उस दौरान मंदिर के पुजारियों ने मां काली और प्राचीन शिवलिंग की प्रतिमाओं को तालाब में छुपा दिया था। कई सौ सालों तक मां काली व शिवलिंग प्रतिमाएं तालाब में विश्राम करती रहीं। जब मुस्लिम शासन समाप्त हो गया तब मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।
बताया जाता है कि बहुत समय बाद पुजारी स्वामी जगतगिरि महाराज को माता ने सपने में दर्शन देकर तालाब में मूर्ति की बात से अवगत कराया और पुनः स्थापना के लिए आदेश दिया। इसके बाद तालाब से मूर्तियां निकाल कर पुनः प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापित कराया गया।
स्वामी जगत गिरी महाराज ने देवी मंदिर को दोबारा से बनवाया था। महंत बताते हैं कि तकरीबन पांच दशक पहले मुस्लिम समाज की भी डासना देवी मंदिर में काफी श्रद्धा थी।
मंदिर में 108 शिवलिंगों के साथ एक 40 टन का विशाल शिवलिंग भी है, जो पूरे एनसीआर में अनूठा है। डासना के प्राचीन देवी मंदिर में भगवान परशुराम द्वारा स्थापित शिवलिंग विद्यमान है। बताया जाता है कि महाभारत काल में माता कुंती के साथ पांडव लाक्षागृह से निकलने के बाद यहां रुके थे। रामायण काल में भगवान परशुराम ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी।
डासना का देवी मंदिर प्राचीन काल से ही स्थापित है और करीब साढे 5000 वर्ष पुराना यह मंदिर है। मां भगवती के मंदिर के ठीक सामने एक यज्ञशाला है जहां पर 12 महीने 365 दिन और 24 घंटे हवन कुंड जलता है। यहां पर आने वाले भक्त भी यज्ञ में आहुति देकर धर्म लाभ उठाते हैं। पुजारी बताते हैं कि भले ही यहां के लोग कहीं दूसरी जगह जाकर बस गए हों लेकिन नवरात्र के समय यानी सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी को आकर सभी लोग मां भगवती के दर्शन कर आराधना करते हैं। मां काली की प्रतिमा को दर्शन करने पर श्रद्धालुओं को एक अलग तरह का अध्यात्मिक सुकून देने वाला अनुभव होता है। इस प्रतिमा में गजब का आकर्षण है जो भक्तों को अपनी ओर खींचता है और श्रद्धा भाव से भर देता है। यहां के भवन और इस स्थान पर आने पर जो आत्मिक शांति व अनुभूति होती है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। शब्दों में बता पाना कठिन है।
इस सिद्ध स्थल पर हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मों को मानने वालों के प्रवेश पर रोक है। यहां के महंत कट्टर हिन्दुत्व के लिए चर्चित रहते हैं। महंत नरसिंह यति पर कई बार जानलेवा हमला कर हत्या का असफल प्रयास किया जा चुका है जिस कारण यहां परिसर की सुरक्षा के लिए पुलिस और पीएसी की एक कंपनी तैनात रहती है। हर आगंतुक के आधार कार्ड की एन्ट्री के बाद ही मंदिर में प्रवेश दिया जाता है। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)