लेखक की कलम

धनखड़ का इस्तीफा, बिहार का चुनाव

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही 21 जुलाई को शाम के समय अपने त्याग पत्र की घोषणा कर दी। इससे पूर्व दिन भर उन्होंने राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया। श्री धनखड़ ने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य की खराबी बताया। यही बात लोगों के गले नहीं उतर रही है। संविधान के अनुसार उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रपति को इस्तीफा भेजा तो यह एक तरह से स्वीकार माना जाएगा। हालांकि उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था लेकिन उन्होंने यह फैसला अचानक क्यों लिया? आगामी 23 जुलाई से उनका दौरा भी तय था जो 21 जुलाई तक निरस्त नहीं किया गया था। इसलिए राजनीतिक गलियारे मंे चर्चा होना स्वाभाविक है। सबसे ज्यादा चर्चा यही है कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का कारण बिहार चुनाव तो नहीं? बिहार मंे इसी साल अक्टूबर या नवम्बर मंे विधानसभा चुनाव होने हैं। धनखड़ के इस्तीफे के बाद जद(यू) के सांसद हरिवंश नारायण सिंह ने कार्यवाहक सभापति की जिम्मेदारी संभाल ली है। हरिवंश नारायण सिंह को राज्यसभा का उपसभापति पहले ही बनाया गया था। अब वे उपराष्ट्रपति की जगह सभापति का कार्य संभालेंगे और भविष्य में उपराष्ट्रपति भी हो सकते हैं। नरेन्द्र मोदी की सरकार बिहार के लिए इस प्रकार एक संदेश दे रही है। हरिवंश नारायण सिंह को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करीबी भी समझा जाता है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अचानक पद छोड़ने पर सियासी हलचल तेज है। इस बीच जगदीप धनखड़ के करीबी सूत्रों ने साफ किया है कि उन्होंने अपनी सेहत के मद्देनजर ही पद छोड़ा है। उनके परिवार के लोग चाहते थे कि वह सेहत का
ध्यान रखें। नैनीताल में भी उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। संविधान में उपराष्ट्रपति का इस्तीफा स्वीकार करने का प्रावधान नहीं है। इस्तीफा देना ही पर्याप्त है। अब वे पूर्व उपराष्ट्रपति हैं। भारत संविधान के अनुसार, 60 दिनों में नए उपराष्ट्रपति का चुनाव होना अनिवार्य है। तब तक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति की जिम्मेदारी संभालेंगे। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने न केवल राजनीतिक चर्चाओं को हवा दी है, बल्कि संसद सत्र के संचालन पर भी सवाल खड़े किए हैं। धनखड़ के तीन साल के कार्यकाल में राज्यसभा में विपक्षी दलों के साथ उनकी लगातार तकरार हुई, लेकिन अक्सर विवादास्पद मुद्दों पर उनकी तीखी टिप्पणियों ने सरकार को भी कई बार असहज किया। धनखड़ (74) ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पदभार संभाला था और उनका कार्यकाल 2027 तक था। दरअसल, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष से लेकर तमाम लोगों को उनके अचानक इस्तीफे की बात पच नहीं रही। ऐसा नजारा शायद ही कभी देखने को मिला हो कि पहले दिन का सत्र चलाने के बाद किसी उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा दिया हो।
जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे की बात न पचने के कई कारण हैं। अगर सेहत ही असल कारण होता तो उन्होंने संसद सत्र से पहले ही इस्तीफा क्यों नहीं दिया? जगदीप धनखड़ ने इस्तीफे के लिए स्वास्थ्य कारण बताया, लेकिन उसी दिन वह संसद में सक्रिय थे और कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं जताई। जगदीप धनखड़ का इस्तीफा मानसून सत्र के पहले दिन के बाद आया। उनकी सेहत अगर सच में अधिक खराब थी तो वह पूरे दिन इतने एक्टिव कैसे दिखे? अगर उनका फैसला पूर्वनियोजित था तो उन्होंने संसद सत्र में इशारा क्यों नहीं दिया? जगदीप धनखड़ का 23 जुलाई को दौरा प्रस्तावित था। इसका मतलब है कि यह सब अचानक यूं ही नहीं हुआ?
यह सच है कि 74 वर्षीय जगदीप धनखड़ बढ़ती उम्र और कई शारीरिक परिशानियों से जूझ रहे थे। एक माह पहले जगदीप धनखड़ की उत्तराखंड दौरे के दौरान भी तबीयत खराब हो गई थी। बीते 25 जून को तीन दिवसीय दौरे पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ उत्तराखंड आए थे, इस दौरान उनकी अचानक तबीयत बिगड़ गई। बाद में डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी। इससे पूर्व जगदीप धनखड़ को 9 मार्च 2025 को सीने में अचानक दर्द और बेचैनी की शिकायत के बाद दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टर्स ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी।
पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ न सिर्फ अपने संवैधानिक पद के कारण, बल्कि अपने तीखे और बिना लाग-लपेट के बयानों के कारण भी लगातार सुर्खियों में बने रहे। उनके बयान कई बार राजनीतिक हलकों से लेकर न्यायपालिका और प्रशासनिक संस्थाओं तक में गहरी चर्चा और बहस का विषय बने। एक भाषण में धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 की तुलना न्यूक्लियर मिसाइल से करते हुए कहा था कि यह शक्ति अब लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए खतरे जैसी हो गई है। उन्होंने कहा, राष्ट्रपति को निर्देश देना न्यायपालिका की ताकत का दुरुपयोग है। दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान धनखड़ ने साफ कहा था कि भारत में संसद सबसे बड़ी संस्था है और कोई भी उससे ऊपर नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सांसद आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए संसद की सर्वोच्चता बरकरार रहनी चाहिए। धनखड़ ने सुनियोजित धर्मांतरण को लेकर चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था, एक खास तरह की शुगर कोटेड सोच के जरिए समाज के कमजोर वर्गों को बहकाया जा रहा है। आदिवासी समाज को लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है, जो हमारे मूल्यों और संविधान के खिलाफ है। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को राजनीतिक भड़काऊ बहसों से बचना चाहिए। उन्होंने कहा, हमारी संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में देश की सेवा करती हैं, उन्हें कमजोर करने वाले बयान बचना चाहिए। हमें अपने संवैधानिक आदर्शों की रक्षा करनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी की डॉक्युमेंट्री के खिलाफ बोलते हुए धनखड़ ने इसे भारत की छवि को धूमिल करने की साजिश बताया था। उन्होंने इसे पूर्वनियोजित हमला करार दिया, जिसे लेकर विपक्षी नेताओं ने उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। (हिफी)

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