बिहारियों के साथ भेदभाव

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
नीतीश कुमार ने मोदी सरकार के साथ ऐसा तालमेल बनाया है कि राज्य को बजट में सबसे ज्यादा प्राथमिकता देनी पड़ी। बिहार तरक्की भी कर रहा है लेकिन दूसरे राज्यों में यहां के लोग काम करने जाते हैं। उनको रहन सहन के लिए भी बदनाम किया जाता है। दिल्ली के टोडापुर गांव की बिहारी कॉलोनी में छोटी-छोटी गलियों और गंदगी से लोगों का रहना भी मुश्किल हो गया है। जानकारी के अनुसार, 1982 में बिहार से कुछ लोग रोजगार की तलाश में दिल्ली आए थे। ऐसे में लोग यहीं पर किराए पर रहने लगे। इसके बाद यहां पर धीरे-धीरे पूर्वांचलियों ने बसना शुरू कर दिया। अब इस कॉलोनी में 90 फीसदी जनसंख्या पूर्वाचलियों की है। ज्यादातर लोग अपना कारोबार करते हैं। लोगों ने बताया कि बिहारी कॉलोनी के पास कई एकड़ में फैली डीडीए की जमीन खाली है। यहां जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे रहते हैं। इसके अलावा पानी का प्रेशर भी काफी कम रहता है। कई घरों की टंकियों तक पानी नहीं पहुंच पाता। इसकी वजह से लोगों को पानी को स्टोर करके रखना पड़ता है। आसपास कोई बड़ा अस्पताल तक नहीं है। हालांकि एक मोहल्ला क्लिनिक जरूर बनाया गया है। यहां कहने को सबसे ज्यादा पूर्वांचली रहते हैं। इसके बाद भी यहां पर एक भी छठ घाट नहीं बनाया गया है। यहां कोई सरकारी स्कूल नहीं है। बच्चों को राजौरी गार्डन पढ़ने के लिए जाना पड़ता है। अवैध पार्किंग से गलियों में आना मुश्किल होता है। इसके बाद भी गंदगी के लिए बिहारियों को बदनाम किया जाता है । अभी पश्चिम बंगाल में बिहारी छात्रों की पिटाई के बाद राजनीति तेज हो गई है। चूंकि मामला पश्चिम बंगाल का है इसलिए सवाल उठाने वाले केवल बीजेपी के नेता ही दिख रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर बिहारी ही क्घ्यों अपनी पहचान के कारण दीगर राज्यों में हिंसा का शिकार होते हैं?
पश्चिम बंगाल में बिहारी छात्रों की पिटाई का मामला तूल पकड़ रहा है। एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एसएससी की परीक्षा देने सिलीगुड़ी पहुंचे दो छात्रों की पिटाई की जा रही है। हालांकि मामले के तूल पकड़ने के बाद पुलिस ने आरोपी सहित दो लोगों गिरफ्तार कर लिया है पर सवाल यह है कि ऐसी घटनाएं बिहार के लोगों के साथ क्यों होती हैं। चाहे तमिलनाडु हो या महाराष्ट्र, बंगाल हो या पंजाब बिहारियों को टार्गेट करना इतना आसान क्यों हो गया है। हिंदी भाषी प्रदेशों को छोड़कर किसी अन्य राज्य के लोगों की पिटाई की खबर कभी सुनने में ही नहीं आती है। मार पीट तो छोड़िए कोई गैर हिंदी भाषी राज्यों के लोगों के लिए उन्हें कमतर मानने वाला कमेंट भी कभी सुनने को नहीं मिलता है जबकि बिहारी और हिंदी भाषी राज्यों के लोगों के लिए शीला दीक्षित से लेकर अरविंद केजरीवाल तक की जुबान कई बार बहक चुकी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी कई बार उत्तर के मुकाबले दक्षिण को तरजीह देते रहे हैं। ऐसा क्यों होता है।
सिलीगुड़ी में पीटे जाने वाले छात्र यादव जाति से ताल्लुकात रखते हैं। एक यादव अपराधी के एनकाउंटर होने पर उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अभी तक इस मामले में मुंह नहीं खोला क्योंकि यहां जाति से बड़ी राजनीतिक प्रतिबद्धता है। चूंकि पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सरकार है । मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने गुट वाली हैं तो कैसे उनकी शासन व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाया जाए। यहां जाति से बड़ा सियासत एजेंडा हो जाता है। अगर बंगाल में बीजेपी की सरकार होती तो हो सकता है कि अखिलेश यादव आरोप लगाते कि भारतीय जनता पार्टी हर राज्य में यादवों पर अत्याचार कर रही है।
ऐसा ही कुछ तेजस्वी यादव के साथ भी है। उनकी पार्टी कह रही है कि लालू यादव ने ममता बनर्जी को फोन कर एक्शन लेने के लिए कहा तब गिरफ्तारी हुई। पर ये बयान न लालू यादव देंगे और न ही तेजस्वी यादव दे सकते हैं। कारण कि इससे ये संदेश जाएगा कि ममता बनर्जी ने उनके कहने से एक्शन लिया, नहीं तो वो एक्शन लेने वाली नहीं थीं। फिर ये बात एजेंडे के खिलाफ हो जाती। दरअसल इस घटना के बाद अगर तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव और लालू यादव सवाल उठाते तो जाहिर है कि अगली बार किसी और स्टेट में इस तरह हरकत करने वाले एक बार खौफ खाते पर सरकार ही नहीं विपक्ष भी मौन है। जाहिर है कि सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं। सरकारी अधिकारियों ने अपना विरोध दर्ज करा दिया। गिरफ्तारी हो गई मामला खत्म हो गया।
पिछले साल की बात है । तमिलनाडु से ऐसी खबरें आईं कि वहां बिहारी मजदूरों से मारपीट हुई है। उनका उत्पीड़न हो रहा है। बिहार के एक यू ट्यूबर ने एक विडियो क्लिप वायरल किया और तमिलनाडु सरकार को टार्गेट पर ले लिया। बाद में कुछ लोगों ने यह बताया कि यह विडियो फेंक था।
तमिलनाडु में मजदूरों के साथ मारपीट का फेक वीडियो दिखाने को लेकर बिहार के इकोनामिक आफेंस यूनिट ने मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इतना ही नहीं उन्हें तमिलनाडु पुलिस को भी सौंप दिया गया। अब जरा सोचिए कि ऐसे माहौल में किसकी हिम्मत है कि बंगाल में पिटाई के मामले में बिहारियों की आवाज बनेगा? कल को बंगाल में बिहारी छात्र की पिटाई का विडियो भी फेक निकले तो गिरफ्तारी हो जाएगी। इसलिए जाहिर है कि आवाज उठाने वालों का हौसला पस्त होगा। यू ट्यूबर मनीष कश्यप ने उसी दौरान सोशल मीडिया पर विडियो जारी कर आरोप लगाया कि तेजस्वी यादव की वजह से उनके खिलाफ एक्शन हुआ है। गौरतलब है कि उस समय बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव थे। मतलब कि जेडीयू और आरजेडी के गठबंधन वाली सरकार थी। मनीष कश्यप का झुकाव बीजेपी की तरफ था। ऐसी दशा में बिहारवाद पर पार्टीवाद भारी पड़ गया। मनीष कश्यप को कई महीने तमिलनाडु की जेल में बिताने पड़े।
बिहारियों के साथ महाराष्ट्र में भी यही हुआ था। महाराष्ट्र से शुरू हुआ बिहारी समुदाय के प्रति नफरत का व्यवहार धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया। बहुत पहले शिवसेना और उसके बाद बनी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना की राजनीति का आधार ही उत्तर भारतीय रहे हैं। मनसे के लोग कहते हैं कि बिहारी अपने साथ बीमारी और लड़ाई लेकर आते हैं। एक बिहारी सौ बीमारी जैसी बातें कहकर बार-बार अपमानित किया गया। कभी रोजगार हड़पने का आरोप तो कभी गंदगी फैलाने का आरोप आम लोग तो छोड़िए नेता भी लगाते रहे हैं। दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने एक बार कहा कि यूपी बिहार से होने वाले पलायन के कारण दिल्ली के इनफ्रास्ट्रक्चर पर भारी दबाव है। एक बार पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा था कि बिहार का एक आदमी 500 रुपये का टिकट लेकर ट्रेन से दिल्ली आता है और 5 लाख का इलाज फ्री में करवाकर चला जाता है। आईआईटी की तैयारी करने के लिए मशहूर कोटा की इकॉनमी बिहार और यूपी के छात्रों पर ही आश्रित है पर कमेंट करने में यहां के नेता भी पीछे नहीं रहे। वहां छात्रों की लड़ाई जैसी छोटी सी बात पर एक बीजेपी नेता ने बिहारी समुदाय को टार्गेट पर ले लिया। इस नेता ने कहा कि बिहार के छात्र शहर का माहौल खराब कर रहे हैं, उन्हें निकाल बाहर करना चाहिए। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी एक बार कहा था कि मध्यप्रदेश में बेरोजगारी का असली कारण बिहारी लोग हैं। बिहार के लोगों के प्रति देश भर में बनी इस भद्दी छवि को बिहार का कोई सुशासन कुमार आज तक दूर क्यों नहीं कर पाया। (हिफी)