लेखक की कलमसम-सामयिक

व्यथित राष्ट्रपति, बेहया राजनीति, नाकारा सिस्टम!

 

इसे बेहद अप्रिय स्थिति में शुमार किया जाए अथवा बेहद विकट हालात से ग्रस्त देश की परिस्थिति का एक परिदृश्य बतौर माना जाए कि अब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश की सर्व सत्ता सम्पन्न महिला राष्ट्रपति ने बलात्कार और हत्या के मामले पर गहरी निराशा और भयभीत होने का वक्तव्य जारी किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने इस महीने की शुरुआत में कोलकाता में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या के संबंध में अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी की है। देश में ऐसे बहुत कम मौके रहे हैं जब वर्तमान या पूर्ववर्ती महामहिम ने किसी ऐसे मुद्दे को संज्ञान में लेकर सार्वजनिक तौर अपनी बात रखी हो। इस को लेकर बहुत सारे सवाल जवाब प्रतिक्रिया आ रहीं हैं। राष्ट्रपति ने कहा है कि बहुत हो गया। उन्होंने समाज को भूलने की आदत से ग्रस्त बताकर महिलाओं के खिलाफ होने वाली अमानवीयता दरिंदगी बर्बरता के संदर्भ में जगाने की कोशिश की है।

आपको बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्पादकों से बातचीत और उन्हें लिखे पत्र में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों पर आक्रोश जाहिर करने के साथ-साथ लिखा है कि इन पर अंकुश लगना चाहिए। कोलकाता में बीते 9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या को लेकर मुर्मू ने कहा कि इस घटना ने उन्हें बहुत ही निराश और व्यथित कर दिया है। दुख की बात है कि यह अकेली घटना नहीं है, देश के अन्य हिस्सों में भी छोटी-छोटी बच्चियों के साथ अपराध की घटनाएं हो रही हैं। मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ अपराध पर लिखे एक विशेष लेख में कहा कि बस ! बहुत हो चुका। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि निंदनीय मानसिकता महिलाओं को कमतर इंसान, कम शक्तिशाली, कम सक्षम, कम बुद्धिमान के रूप में देखती है। उन्होंने कहा कि निर्भया केस के बाद से 12 वर्षों में, समाज द्वारा अनगिनत बलात्कारों को भुला दिया गया है। यह भूलने की बीमारी घृणित है। राष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास का सामना करने से डरने वाले समाज सामूहिक भूलने की बीमारी का सहारा लेते हैं। अब समय आ गया है कि भारत इतिहास का सामना करे। राष्ट्रपति ने कहा कि हमें इस विकृति से व्यापक तरीके से निपटना चाहिए ताकि इसे शुरू में ही रोका जा सके। अब समय आ गया है कि भारत ऐसी विकृतियों के प्रति जागरूक हो और उस मानसिकता का मुकाबला करे जो महिलाओं को कम शक्तिशाली, कम सक्षम और कम बुद्धिमान के रूप में देखती है। कोलकाता में छात्र, डॉक्टर और आम लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, फिर भी अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। उस समय भी अपराधी अन्यत्र शिकार की तलाश में घात लगाए हुए हैं।

महिला सुरक्षाः बस! बहुत हो चुका शीर्षक  लेख में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नौ अगस्त को कोलकाता में हुई घटना पर पहली बार अपने विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए कुछ लोगों द्वारा महिलाओं को वस्तु के रूप में देखने वाली मानसिकता जिम्मेदार है। अपनी बेटियों के प्रति यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके भय से मुक्ति पाने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करें। नौ अगस्त को कोलकाता के एक अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और उसकी हत्या का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि कोई भी सभ्य समाज बेटियों और बहनों पर अत्याचार की अनुमति नहीं दे सकता। राष्ट्र का आक्रोशित होना निश्चित है और मैं भी आक्रोशित हूं।

राष्ट्रपति ने अगर सामूहिक स्मृतिलोप की निंदा की है, तो अब सरकारों का यह दायित्व है कि वे इस बीमारी का यथोचित इलाज करें। मणिपुर में क्या हुआ था? एक वंचित आबादी ने दूसरी वंचित आबादी का शोषण किया था। और तो और, शोषण और अत्याचार में महिलाएं भी शामिल थीं। महिलाओं ने पुलिस ही नहीं, सेना को भी काम करने से रोका था। केवल निंदा, दुख और रोष से कुछ नहीं होने वाला, जमीन पर उतरकर काम करना पड़ेगा। समाज और उसके कर्णधारों को आईना दिखाना पड़ेगा। यह पूरा विमर्श केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित न रहे, तो ज्यादा बेहतर है। महिला शोषण किसी एक राज्य का मामला नहीं है।

देश भर में बच्चियों महिलाओं के साथ दुराचार की वारदातों की झड़ी लगी है छात्राएं स्कूलों मदरसों में सुरक्षित नहीं है। कार्यस्थलों पर महिलाओं को असुरक्षा बोध से गुजरना पड़ रहा है। केरल में मलयाली फिल्म उद्योग को कुछ प्रभावशाली सफेदपोशों ने महिला शोषण का अड्डा बना दिया और यह कितना शर्मनाक है कि घिनौने शोषण को उजागर करने वाली हेमा रिपोर्ट को चार साल से ज्यादा समय तक दबाए रखा गया। अब 19 अगस्त को रिपोर्ट सामने आ गई है, तो  फिल्म उद्योग के बड़े रसूखदार निर्माता निर्देशक व नेताओं के खिलाफ 17 मामले दर्ज हो चुके हैं।  2017 में एक न्यायिक आयोग गठित किया गया जिसने चार साल पहले अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी लेकिन केरल की सरकार ने रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की और उसे दबाए रखा था।

उधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार की नीति बलात्कार संबंधी घटनाओं को कतई बर्दाश्त न करने की है और इन मामलों से संबंधित मौजूदा कानूनों में संशोधन के लिए अगले सप्ताह विधानसभा में विधेयक पारित किया जाएगा, ताकि दुष्कर्म के अपराधियों के लिए मृत्युदंड सुनिश्चित किया जा सके। ममता बनर्जी इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर राज्य में कानून व्यवस्था की खराब स्थिति को स्वीकार करने के स्थान पर गेंद केंद्र सरकार के पाले में फेंक रहीं हैं।ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस तरह की राजनीति राजनीतिक लोगों की मर चुकी संवेदनाओं को दर्शाती है। यकीनन यह कितना शर्मसार कर रहा है कि महिलाओं बच्चियों की सुरक्षा में हो रही कोताही को लेकर महामहिम राष्ट्रपति निराश भयभीत हैं। देश आक्रोशित है राजनीति बेहया है और सिस्टम नाकारा?

देश की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की भावनाओं को समझकर प्रदेशों और देश की सरकारों को दुष्कर्म के अपराधियों विरुद्ध कठोर कानून बनाने चाहिए और यह बात भी सुनिश्चित करनी चाहिए कि अपराधियों को एक समय सीमा के बीच किये अपराध की सजा भी मिल जाए, क्योंकि राष्ट्रपति ने  सही समय पर महिलाओं और बच्चियों पर किए जा रहे असमानता और यौन दुर्व्यवहार दरिंदगी और बर्बरता की ओर देश और समाज को जागरूक किया है। राष्ट्रपति महोदया देश व राज्य की सरकारों कार्यपालिका और न्यायपालिका को भी साफ तौर पर निर्देशित करें कि अब बहुत हो चुका अब सभी सरकारें सरकारी मशीनरी और न्यायपालिका महिलाओं बच्चियों के खिलाफ होने वाले अपराधों और अत्याचार के खिलाफ एक अभियान बनाकर कार्यवाही करें ताकि देश की आधी आबादी भी अपराध मुक्त निर्भय जीवन जी सके। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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