कोविशील्ड पर भ्रम न फैलाएं

रामचरित मानस मंे गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-
विधि प्रपंच गुण-अवगुण साना
अर्थात् इस सृष्टि मंे सभी वस्तुएं न तो पूरी तरह गुणों से भरी हैं और न अवगुणों से। कुछ न कुछ कमी मिल ही जाएगी। समुद्र मंथन से अमृत निकला था तो विष भी मिला था। इसलिए कोरोना जैसी महामारी की वैक्सीन को लेकर भ्रम पैदा करना उचित नहीं है। कोविड-19 ने अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों को घुटनों के बल खड़ा कर दिया था। भारत ने तो फिर भी बहुत धैर्य और साहस दिखाया। देश मंे पहली बार इतने कम समय में कोरोना की वैक्सीन डेवलप हो गयी थी। कोरोना की दूसरी लहर को याद करके आज भी आंखें डबडबा आती हैं। उसी लहर मंे कितने ही हमारे निकटतम हमसे बिछुड़ गये। उस समय कोई वैक्सीन नहीं थी। कहने की जरूरत नहीं कि कोरोना की तीसरी लहर को कम घातक बनाने मंे वैक्सीन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं में एक वैक्सीन कोविशील्ड है जिसको बनाने वाली कम्पनी एस्ट्रेजेनेका ने ब्रिटिश हाईकोर्ट मंे इसके खराब साइड इफेक्ट-ब्लड क्लोटिंग अर्थात् खून के थक्के जमने के बारे मंे सच्चाई को कबूला है। हो सकता है इस वैक्सीन मंे यह अवगुण भी रहा हो लेकिन कोरोना जैसी महामारी के घातक स्वरूप से वैक्सीन ने हमें बचाया है, इससे भी इनकार नहंी किया जा सकता। अब तो वैक्सीन लगवाने से तीन साल से ज्यादा का समय बीत गया है तो देशवासियों मंे किसी तरह का भ्रम न फैलाया जाए। दिल का दौरा पड़ने मंे खून का थक्का जमने से ज्यादा भय का योगदान होता है। जीव विज्ञानी इस दिशा मंे बेहतर प्रयास कर रहे हैं। मीडिया को भी इसमंे मदद करनी चाहिए।
भारत में न केवल इस वैक्सीन पर तमाम सवाल उठ रहे हैं बल्कि इसे बनाने वाली भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी कठघरे में है। हालांकि इस वैक्सीन को लगे 3 साल से ज्यादा का समय हो गया है, ऐसे में भारतीय लोगों में इस वैक्सीन का कितना खतरा है, इसे लेकर दिल्ली के टॉप कार्डियोलॉजिस्ट और वायरोलॉजिस्ट ने अपनी राय दी है।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) नई दिल्ली के कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर नितीश नायक और डॉ. अंबेडकर सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर और जाने माने वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर सुनीत के सिंह ने कोविशील्ड वैक्सीन से जुड़े खतरों को लेकर हर सवाल का जवाब दिया हैं।
डा. नायक के अनुसार एस्ट्रेजेनिका ने स्वीकारा है कि इससे साइड इफैक्ट हुआ है तो उसने कुछ केस ऐसे देखे होंगे। इस वैक्सीन के लगने के बाद कुछ लोगों में ब्लड क्लोटिंग देखी गई, जिसका एक असर हार्ट अटैक भी होता है। हालांकि हमको ये भी देखना होगा कि उस महामारी के दौरान जब कोविड को लेकर कोई विकल्प ही नहीं था और आपातकाल में जनसंख्या को सुरक्षित करना था तो उसके अच्छे-बुरे को देखें तो जितने लोग वैक्सीनेटेड हुए हैं और जितनों को इससे साइड इफैक्ट हुआ है, उसमें जमीन और आसमान का अंतर है। एस्ट्रेजेनेका के डेटा के अनुसार उस लिहाज से लाइफ थ्रेटनिंग थ्राम्बोसिस वाले मरीजों की संख्या बहुत कम है। भारत में 90 फीसदी लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन ली है।
डा. नायक बताते हैं कि जब शुरुआत में ये वैक्सीन लगवाई जा रही थी तो भी ऐसे कई सवाल उठे थे और कहा गया था कि कोवैक्सीन सुरक्षित है और कोविशील्ड के नुकसान हो सकते हैं। ऐसा इसलिए भी कहा गया था कि यह एडिनोवायरस बेस्ड वैक्सीन थी, जो बायोटेक्नोलॉजी का नया टर्म है। इसके अलावा अन्य कई विदेशी वैक्सीनों को लेकर भी सवाल उठे थे। डब्ल्यूएचओ ने भी उस समय बोला था कि कुछ मामले थ्रोम्बोसिस के आ रहे थे। भारत में इसका खतरा नहीं है। बाकी अपवाद किसी भी दवा में हो सकता है। मेरे भी कोविशील्ड वैक्सीन लगी है। मैं स्वस्थ हूं। मेरी तरह यह वैक्सीन बहुतों को लगी है। वैक्सीन ने रोगों से लड़ने की क्षमता दी है। वैक्सीनेशन को नेगेटिव न लें। सबसे जरूरी बात है कि लोगों के मन में ये भय नहीं बैठना चाहिए कि वैक्सीन असुरक्षित है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। वैक्सीन ने कोविड से बचाया है, एक ऐसी महामारी से, जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं मिल पाया है। इसलिए कुल मिलाकर देखें तो फायदा नुकसान से कहीं ज्यादा है। हमें यह देखना चाहिए कि किसी दवा का फायदा ज्यादा है और उसके साइड इफैक्ट्स कम हैं तो उसका कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस और ओवरऑल एनालिसिस क्या है। मुझे लगता है कि इस वैक्सीन के साथ भी यही है कि इससे फायदा ज्यादा हुआ होगा न कि नुकसान। यह इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए वैक्सीन थी, जिसने कोविड से लोगों को बचाने में मदद की। जब कोरोना महामारी का दौर था और कोई इलाज किसी के पास नहीं था, उस समय इससे बचाव के लिए वैक्सीन बहुत महत्वपूर्ण थी। अगर ये वैक्सीन उस समय नहीं दी जाती तो संभव है कि बहुत सारी जिंदगियों को नुकसान हो सकता था।
यह सच है कि एस्ट्रेजेनिका ने माना है कि 1 लाख लोगों को वैक्सीन लगी है तो दो लोगों में साइड इफैक्ट दिखा है। यह नंबर बहुत बड़ा नहीं है। इन्हीं लोगों में फेटल, माइनर, रिवर्सिवल और कितनी रिकवरी हुई है, ये भी शामिल होगा। वहीं अभी इस वैक्सीन को लगे कुछ ही साल हुए हैं, अभी और स्टडीज और निगरानी की जरूरत है, ताकि इस वैक्सीन के बारे में बेहतर तरीके से जानकारी जुटाई जा सके।
144 करोड़ की आबादी वाले भारत में वैक्सीन लगाने की शुरुआत 16 जनवरी, 2021 से हुई। कोरोना से जंग में लोगों को पहला हथियार ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोवीशील्ड के रूप में मिली। भारत में इसे सीरम इंस्टीट्यूट ने बनाया। यही वो पहली वैक्सीन थी जिसे सरकार की ओर से मंजूरी मिली थी कोवीशील्ड के बाद जो वैक्सीन चर्चा में रही वो कोवैक्सीन थी। ये देश में ही बनी। भारत बायोटेक ने इस वैक्सीन को बनाया। कोवैक्सीन को इम्यून-पोटेंशिएटर्स के साथ शामिल किया गया है। इसे वैक्सीन सहायक के रूप में भी जाना जाता है। इसके दो खुराक 28 दिन के गैप में लगते हैं। वैक्सीन को जुलाई, 2020 में चरण प्रथम और द्वितीय ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल के लिए क्ब्ळप् की मंजूरी मिली थी। कोरोना के उस दौर को कौन भूल सकता है। ये वो समय था जब दुनिया में खौफ का माहौल था। हर किसी के चेहरे पर एक भय रहता था। एक-एक जान बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही थी। श्मशान घाट के बाहर शवों की कतार लगी रहती थी। घंटों के इंतजार के बाद दाह संस्कार का नंबर आता। इस महामारी से लड़ने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सैनिटाइजर का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन शरीर को कोरोना प्रूफ बनाने के लिए लोगों के सामने वैक्सीन ही एकमात्र विकल्प था। भारत ही नहीं, दुनिया की तमाम सरकारों ने ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाने पर जोर दिया था। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)