लाल चौक पर सियासी नारों की गूंज

श्रीनगर। कश्मीर घाटी में पहले जब भी चुनावों की घोषणा होती थी तो अलगाववादियों की ओर से बहिष्कार की कॉल दी जाती थी, जिसका असर काफी हद तक देखने को मिलता था। लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव बिना किसी बहिष्कार की कॉल के होने जा रहे हैं। इस बदलाव को समाज के सभी वर्ग एक सकारात्मक बदलाव के रूप में देख रहे हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, उनका हक है.. अपने नुमाइंदे चुनने का, जो पिछले करीब तीस वर्षों तक दबाव के चलते छिन गया था।
कश्मीर में पत्थरबाजी अब इतिहास बन चुकी है। श्रीनगर शहर का ऐतिहासिक लाल चौक सियासी नारों से गूंज रहा है। घंटाघर चुनावी सरगर्मियों का गवाह बन रहा है। यह वो घंटाघर है, जो पिछले करीब तीन दशकों से अलगाववादियों की बंद की कॉल, पत्थरबाजी, मुठभेड़ और जुलूसों का रहा है। लेकिन अब घाटी में अलगाववादियों के बहिष्कार के आह्वान के बिना पहला चुनाव होगा।
इसे वर्ष 2019 के बाद से भारी बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। एक स्थानीय निवासी सुहेल अहमद ने कहा, कश्मीर में जो लोग (अलगाववादी) बहिष्कार की कॉल दिया करते थे, उन पर एनआईए समेत अन्य एजेंसियों ने पिछले कुछ वर्षों से शिकंजा कसा हुआ है। कुछ नजरबंद हैं और कुछ जेलों में बंद हैं। एक अन्य स्थानीय जहूर हुसैन ने कहा, वे बहिष्कार की कॉल देते थे और लोग डर के मारे अपने वोट नहीं डालते थे, लेकिन अपना नुमाइंदा चुनने का सबका हक बनता है, इसलिए इस बार हक का इस्तेमाल करेंगे।