जर्जर स्कूलों में न दी जाए शिक्षा

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
नागरिकों को आधारभूत सुविधाएं यथा स्वच्छ पानी, बिजली, स्वास्थ्य सेवा व कम खर्च पर स्तरीय शिक्षा उपलब्ध करवाना केन्द्र एवं राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है परन्तु दोनों ही यह जिम्मेदारी निभाने में असफल हो रही हैं।हमारे सरकारी स्कूलों की दशा बेहद दयनीय है और कई स्कूलों की जर्जर हो चुकी स्कूल इमारत में छात्रों पर मौत मंडराती है। यह बात विशेष रूप से बेसिक व जूनियर कक्षाओं वाले स्कूलों पर लागू होती है।
विद्यालय में शिक्षक बच्चों को सीख देते हैं कि उन्हें अपना काम पूरी लगन, मेहनत और जिम्मेदारी के साथ करना चाहिए। मगर, राजस्थान में झालावाड़ के पिपलोदी गांव स्थित सरकारी विद्यालय के शिक्षक एवं प्रबंधन खुद अपनी जिम्मेदारी भूल गए और जर्जर इमारत का एक हिस्सा ढहने से एक साथ आधा दर्जन घरों के चिराग बुझ गए। हादसे में सात मासूमों की जान चली गई। इस दुखद घटना ने ग्रामीण इलाकों में सरकारी विद्यालयों के बुनियादी ढांचे की स्थिति और व्यवस्थागत प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या शिक्षकों और विद्यालय प्रबंधन को इस बात की जानकारी नहीं थी कि भवन का यह हिस्सा जर्जर हो चुका है और यहां कक्षाएं संचालित करना हादसे को न्योता देना है? अगर सब मालूम था तो ऐसा जोखिम उठाने की क्या वजह रही? पीड़ित परिवार इन सवालों के जवाब ढूंढ़ रहे है। झालावाड़ के जिला अधिकारी का कहना है कि प्रशासन ने हाल ही में शिक्षा विभाग को किसी भी जर्जर स्कूल भवन की जानकारी देने का निर्देश दिया था, लेकिन इस विद्यालय का भवन सूची में शामिल नहीं था। जब यह हादसा हो गया तो प्रशासन ने इस भवन के दूसरे हिस्से को भी गिरा दिया, ताकि वहां गलती से भी कक्षाएं संचालित न की जाएं। यही नहीं, राज्य सरकार ने अब विद्यालयों की तमाम इमारतों का सुरक्षा सर्वेक्षण कराने के निर्देश भी दिए हैं। मगर, सवाल है कि शासन-प्रशासन की ओर से ऐसी सतर्कता किसी हादसे के बाद ही क्यों दिखाई देती है? क्या ऐसी लापरवाही इसलिए बदस्तूर चलती रहती है कि ऐसे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आमतौर पर समाज के हाशिए के तबके से आते हैं? अगर जिला अधिकारी की ओर से कोई निर्देश दिया जाता है तो उस पर अमल सुनिश्चित करना किसकी जिम्मेदारी है?
यह हादसा सिर्फ एक बानगी है, देशभर में न जाने कितने विद्यालय जर्जर इमारतों में संचालित हो रहे हैं। राज्य सरकारों को चाहिए कि ऐसी इमारतों की पहचान कर उन्हें असुरक्षित घोषित किया जाए। साथ ही लापरवाही बरतने वालों की जवाबदेही तय कर उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए, ताकि विद्यालयों में बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ न हो। राजस्थान के सरकारी स्कूलों में बच्चों की ये सुरक्षा को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इसकी पोल झालावाड़ में हुए स्कूल हादसे ने खोल दी है। इससे पता चलता है कि स्कूलों में बच्चों की जान भी सुरक्षित नहीं है। माता-पिता ने जब मासूमों का शव देखा तो उन पर कहर टूट पड़ा। एक साथ पढ़ने गए भाई-बहन भी अकाल मौत का ग्रास बन गए। उनके परिवारों का सब कुछ खत्म हो गया। पूरे गांव में हर कोई आंसू बहाते हुए सरकारी तंत्र को कोस रहा है। राज्य के सैकड़ों स्कूलों के संस्था प्रधान पिछले दो साल से विभाग से भवनों की मरम्मत के लिए बजट मांगते-मांगते थक गए, लेकिन सरकारी तंत्र पर कोई असर नहीं हुआ। प्रदेश में आठ हजार स्कूल ऐसे हैं, जहां बारिश के दिनों छत टपक रही हैं। दीवारें जर्जर हैं और प्लास्टर उखड़ रहा है। कई जगह स्कूल छत को गिरने से बचाने के लिए लकड़ी के पट्टों का इस्तेमाल किया जा रहा है। शिक्षा विभाग ने हाल ही आठ हजार स्कूलों का प्रस्ताव स्कूल शिक्षा परिषद को भेजा। इनमें से महज दो हजार स्कूलों का चयन कर इनमें मरम्मत के लिए 175 करोड़ प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेज दिया, लेकिन राशि अभी तक नहीं मिली। जैसा कि हर हादसे के बाद सरकारी विभाग की नींद खुलती है इस हादसे के बाद भी लकीर पीटने का काम शुरू कर दिया गया और हर जिले के सरकारी स्कूलों का निरीक्षण किया गया । सीएमओ के सख्त निर्देश के बाद विभाग ने जिला शिक्षा अधिकारियों से जर्जर भवनों की एक बार फिर सूचना मंगवाई। इस बार केंद्र से सिर्फ नवीन भवनों का बजट मिला। इसके चलते सरकार ने पिछले बजट में 700 स्कूलों की मरम्मत की घोषणा की। इसके लिए 80 करोड़ जारी हो गए, जिनका कार्य चल रहा है। वहीं, हाल ही बजट में 175 करोड़ स्वीकृत किए गए लेकिन बजट कम होने के कारण दो हजार स्कूलों को शामिल किया गया। करीब छह हजार स्कूल मरम्मत का इंतजार कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में कई सरकारी स्कूल खंडहरों में तबदील हो चुके हैं। वहां छतें टपक रही हैं, प्लास्टर और सीमेंट दीवारों का साथ छोड़ रहा है। दीवारें दरारों से भरी हुई हैं। अनेक स्थानों पर छतों की हालत इतनी खराब है कि ये कब गिर जाएं, उसका कोई भरोसा नहीं। अनेक स्कूलों में पीने का साफ पानी भी उपलब्ध नहीं। बच्चे तथा शिक्षक अपने घरों से पानी लेकर आते हैं। शौचालयों की हालत भी काफी नारकीय है। मध्य प्रदेश के जोगियानी गांव के कई स्कूलों में वर्षा के कारण टपकती छतों के नीचे बैठे बच्चों को भीगते भी देखा। इन स्कूलों में छात्र-छात्राएं, जान जोखिम में डाल कर पढ़ाई कर रहे हैं। वर्षा ने सरकारी भवनों की जर्जर हालत की पोल खोल दी है। 20 जुलाई को भोपाल (मध्य प्रदेश) के बरखेड़ा पठानी स्थित सरकारी पीएम श्री स्कूल के एक कमरे में चल रही कक्षा के दौरान छत से प्लास्टर का एक बड़ा टुकड़ा भरभरा कर एक छात्रा के सिर पर आ गिरा जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई और उसे कई टांके लगाने पड़े और अब मौजूदा हादसा 25 जुलाई को सुबह पौने आठ बजे राजस्थान में झालावाड़ जिले के पीपलोधी गांव के सरकारी स्कूल की जर्जर इमारत ढह जाने से 7 बच्चों की दर्दनाक मौत और 35 बच्चे मलबे के नीचे दब गए।
इस मामले में स्कूल प्रशासन की लापरवाही सामने आई है। जब कुछ बच्चों ने कक्षा में मौजूद अध्यापक से कहा कि छत गिर रही है तो कथित रूप से अध्यापक ने यह कह कर उन्हें चुप करवा दिया कि बैठे रहो। ग्रामीणों का आरोप है कि अधिकारियों का इस ओर बार-बार ध्यान दिलाने के बावजूद इसकी मरम्मत नहीं करवाई गई तथा पिछले कुछ दिनों की भारी वर्षा ने इसकी स्थिति को और कमजोर कर दिया था। कई बार शिकायतें की गई थीं परंतु प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। हालांकि अब स्कूल के हैडमास्टर सहित 5
अध्यापकों को निलम्बित कर दिया गया है।
ऐसे में छात्रों के अभिभावकों द्वारा यह प्रश्न पूछना उचित ही है कि बच्चों को ऐसे असुरक्षित भवनों में पढ़ने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है? इन घटनाओं ने देश भर में शिक्षा विभाग की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अतः इसके लिए जिम्मेदार स्टाफ के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। (हिफी)