पार्थिव गणेश की स्थापना एवं पूजन

ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय
महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ‘ट्रस्ट’
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। इस बार यह पर्व शनिवार को है। श्री गणेश चतुर्थी इस बार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि दिवा 2.5 तक है व आज शनिवार का दिन, चित्रा नक्षत्र दिवा 10.43 तक है। आज के दिन व्रह्म योग मिल रहा है। जो अत्यन्त शुभप्रद है। पूजन का शुभ मुहूर्त प्रातः 8.42 से 10.58 व 12.33 से 2.5 तक विशेष मुहूर्त।
श्रीगणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की घरों में स्थापना की जाती है। ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय बताते है की घर के ईशान कोण में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करना शुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर में रखी सभी गणेशजी की तस्वीरें पूर्व-उत्तर दिशा में होनी चाहिए। श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहते हैं। वह अपने भक्तों के सभी दुखों और कष्टों को हर लेते हैं। सर्व प्रथम गणेश जी की मूर्ति किसी चौकी पर पीला आसान बिछाकर उस पर स्थापन करे,सर्व प्रथम श्रीविघ्न हर्ता गणेश जी का ध्यान कर षोडशोपचार जल, पंचामृत, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, अक्षत, पुष्प, माला, सिन्दूर, रोली, अबीर, हल्दी, गुलाल, अभ्रक, दुर्बा वेलपत्र, धूप, दीप आदि के पश्चात लड्डू का भोग लगाकर घी की आरती करें। श्रीसंकट नाशन श्री गणेश स्त्रोत का पाठ व गणेश सहस्त्रार्चन करना चाहिए व भगवान की स्तुति करते हुए प्रार्थना करना चाहिए जिससे समस्त विघ्नों को दूर करते हुए आपके समस्त मनोरथ को पूर्ण करते हैं।
पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व और विधि-
अलग-अलग कामनाआंे की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं। यहाँ गणेश जी के 12 प्रकार के पार्थिव स्वरूपांे की पूजा का फल दिया जा रहा है।
श्री गणेश- मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!
हेरम्ब- गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे।
वाक्पति- भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर। पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे।
उच्चिष्ठ गणेश- लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री। सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता है।
कलहप्रिय- नमक की डली या। नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे।
गोबरगणेश- गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती है और पशुओं की बीमारियां नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
श्वेतार्क श्री गणेश- सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे।
शत्रुंजय-कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे।
हरिद्रा गणेश- हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ट होती है और स्तम्भन होता है।
सन्तान गणेश- मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।
धान्यगणेश- सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं।
महागणेश-लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं।
पार्थिव गणेश प्रतिष्ठा पूजा
द्विराचम्य प्राणायामं कृत्वा। इष्टकुलस्वाम्यादि देवतानां फल-तांबूलानि प्रदानं कृत्वा। ज्येष्ठां नमस्कृत्य।
ऊँ श्रीमन्महागणपतये नमः
इष्ट, कुल, ग्राम, वास्तु, गुरू देवताभ्यो नमः
सुमुखश्चौकदंतश्च।
पूजा संकल्प-श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य… शालिवाहनशके… नामसंवत्सरे, दक्षिणायने, वर्षा ऋतौ, भाद्रपद मासे, शुक्लपक्षे, चतुर्थ्यां
तिथौ.. वासरे… नक्षत्रे, राशि (अहोरात्र) स्थिते वर्तमाने चंद्रे, राशि स्थिते श्रीसूर्ये
राशि स्थिते शेषेशु ग्रहेषु यथायथं… शुभपुण्यतिथौ…।
मम आत्मनः श्रुतिस्मृति-पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थं श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं३.अमुक ३गोत्रोत्पन्नाय अमुक३शर्माणं अहं अस्माकं सकलकुटुंबानां सपरिवाराणां द्विपद-चतुष्पद-सहितानां क्षेम स्थैर्य आयुरू आरोग्य ऐश्वर्य अभिवृद्धी अर्थं,समस्त मंगल अवाप्ति अर्थं,समस्त अभ्युदय अर्थं, अभीष्ट कामना सिद्धी अर्थंच प्रतिवार्षिक विहितं (पार्थिवसिद्धिविनायक) देवता प्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन यथामिलित उपचार द्रव्यैरू पुरुषसूक्तध्पुरणोक्तमंत्रैः प्राणप्रतिष्ठापन पूर्वक ध्यानआवाहनादि षोडश उपचार पूजन अहं करिष्ये, आदौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं महागणपति स्मरणं, शरीर शुद्ध्यर्थं षडंगन्यासं कलश, शंख, घंटा, दीप पूजनं च करिष्ये।
प्राणप्रतिष्ठा- अस्य श्री प्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्म-विष्णू-महेश्वरा ऋषयः। ऋग्यजुरूसामाथर्वाणि च्छंदासि। पराप्राणशक्तिर्देवता आं बी
जम्। -हीं शक्तिरू। क्रों कीलकम्। अस्यां मृन्मयमूर्तौ प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः।
ऊँ आं-हीं क्रों। अं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं अः। क्रों-हीं आं हंसः सोहं।
अस्यां मूर्तौ 1 प्राण 2 जीव 3 सर्वेंद्रियाणि वाङ् मनरूत्वक् चक्षु श्रोत्र जिव्हा घ्राण पाणि पाद पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा।
ऊँ असुनीते… ऊँ चत्वारिवाक्…।
गर्भाधानादि पंचदश संस्कार सिद्ध्यर्थं 15 प्रणवावृतीः करिष्ये।
रक्तांभोधिस्थ… तच्चक्षुर्देवहितं…।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठंतु अस्यै प्राणारूक्षरंतु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।
देवस्य आज्येन नेत्रोन्मीलनं कृत्वा।
प्राणशक्त्यै नमः। पंचोपचारैः संपूज्य।
ध्यानं, आवाहनं-एकदंतं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुजं।
पाशांकुशधरं देवं
ध्यायेत्सिद्धिविनायकं।
आवाहयामि विघ्नेश सुरराजार्चितेश्वर।
अनाथनाथ सर्वज्ञ पूजार्थं गणनायक।
आसन-नानारक्तसमायुक्तं कार्तस्वरविभूषितम्।
आसनं देवदेवेश प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्।
पाद्यं-पाद्यं गृहाण देवेश सर्वक्षेमसमर्थ भो।
भक्त्या समर्पितं तुभ्यं लोकनाथ नमोस्तु ते।
अर्घ्य-नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर।
नमस्ते जगदाधार अर्घ्यं नरू प्रतिगृह्यताम।
आचमन-कर्पूरवासितं वारि मंदाकिन्यारूसमाहृतम्।
आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं हि भक्तितः।
स्नान-गंगादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनया हृतम्।
तोयमेतत्सुखस्पर्शं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।
पंचामृतस्नान, पंचोपचारपूजा, अभिषेक।
वस्त्र-सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यताम्।
यज्ञोपवीत-देवदेव नमस्तेतु त्राहिमां भवसागरात्।
ब्रह्मसूत्रं सोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर।।
गंध- श्रीखंडं चंदनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्।। (हिफी)