आयोजन, व्यवस्था और मौतें

वह सब निम्न व निम्न मध्यम वर्ग के आस्थावान लोग थे जो एक स्वयंभू बाबा के सत्संग में हिस्सेदारी करने के लिए श्रद्धा के वशीभूत होकर पहुंचे थे लेकिन भारी भीड़ और उमस भरी गर्मी के कारण पैदा हुए दमघोटू माहौल में प्रवचन के बाद बाबा के पांव छूने की होड़ से भगदड़ मच गई और एक सौ बीस से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गयी। इससे आमजन और व्यवस्था पर सवाल उठना स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में यह हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां मंगलवार (2 जुलाई) की शाम सत्संग में हुए एक बड़े हादसे में बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने के खबर हैं। यह सत्संग नारायण साकार विश्व हरि भोले बाबा का था। सत्संग में अचानक भगदड़ मच गई, जिसमें इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 120 से ज्यादा लोगों के मरने के सूचना मिली हैं। मृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाथरस के सिकंदराराऊ जीटी रोड स्थित थाना क्षेत्र के गांव फुलरई में आयोजित भोले बाबा के सत्संग में आए लोगों में भगदड़ मच गई। इस घटना को लेकर हाथरस जिले के डीएम व एसपी घटनास्थल पर पहुंचे वहीं राज्य सरकार के कई मंत्री समेत वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का अमला मौके पर पहुंचा और राहत कार्य में जुट गए।
इस तरह एक सत्संग भक्ति भाव वाले लोगों के लिए मौत का संग बन गया। बताया जा रहा है कि यह सत्संग संत नारायण हरी उर्फ भोले बाबा ने आयोजित किया था। हाथरस-एटा सीमा के पास रतिभानपुर स्थित आश्रम में संत भोले बाबा का प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए थे। मौसम के कारण टेंट में अत्यधिक नमी और गर्मी थी, जिससे अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई और भगदड़ में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, अचानक भगदड़ के दौरान ये घटना घटी है। कई लोग मौके पर बेहोश हो गए थे। फिलहाल, प्रशासन द्वारा इस घटना की जांच की जा रही है। मौके पर मौतों का इतना भयावह दृश्य था कि यूपी पुलिस के एक सिपाही को इसे देखकर हार्ट अटैक आ गया और उसकी भी मौत हो गई।
बताया जाता है कि हाथरस समेत पूरे इलाके में भोले बाबा काफी समय से सत्संग करवाते हैं। वह पहले पुलिसकर्मी थे और भोले बाबा का सत्संग शुरू किया। स्थानीय लोगों के मुताबिक करीब 10 सालों से सत्संग चलता है। मंगलवार को हाथरस के सिकंदराराऊ के रत्तीभानपुर में सत्संग हो रहा था। सत्संग में करीब 5 से 10 हजार लोग जुटे हुए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक गर्मी ज्यादा थी और भगदड़ हो गई। एक के ऊपर एक लोग भागने लगे, यह जानलेवा साबित हुआ।
नारायण हरि या भोले बाबा, जिन्होंने खुफिया विभाग की नौकरी छोड़ दी थी। जिन्हें भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे राजनीति से जुड़े हुए हैं। उनके मंच पर कई बार उत्तर प्रदेश के कई बड़े नेता नजर आ चुके हैं। हरि मूल रूप से उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बहादुर नगरी गांव के रहने वाले हैं, जहां उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे पुलिस की एलआइयू यूनिट में सिपाही बतौर शामिल हो गए और अध्यात्म की ओर रुख करने से पहले लंबे समय तक काम किया। आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने के बाद, उन्होंने अपना नाम बदल लिया और नारायण साकार हरि के नाम से जाने जाने लगे।नारायण साकार हरि भगवा वस्त्र या कोई अलग पोशाक नहीं पहनते हैं। उन्हें अक्सर सफेद सूट, टाई और जूते और कभी-कभी कुर्ता-पायजामा में देखा जाता है।
1990 के दशक में साकार हरि ने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और खुद को तथाकथित आध्यात्म में डुबो लिया।दावा है कि समागमों के दौरान मिलने वाला कोई भी दान, चढ़ावा या अंशदान वे अपने पास नहीं रखते, बल्कि भक्तों पर खर्च कर देते हैं।नारायण साकार हरि, जिन्हें साकार विश्व हरि या भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म पटियाली तहसील के बहादुर गांव में हुआ था। भोले बाबा के पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली सहित पूरे भारत में लाखों अनुयायी हैं।
बाबा के खिलाफ कई आपराधिक मामले भी दर्ज हैं। सूत्र बताते हैं कि हाथरस में सत्संग कराने वाले आरोपी बाबा पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। खास बात यह है कि इंटरनेट के इस दौर में वे दूसरे साधु-संतों और कथावाचकों से अलग सोशल मीडिया से दूर रहते हैं। भोले बाबा का किसी भी प्लेटफॉर्म पर कोई आधिकारिक अकाउंट नहीं है। कथित भक्तों का दावा है कि नारायण साकार हरि यानी भोले बाबा के जमीनी स्तर पर काफी संख्या में अनुयायी हैं। नारायण साकार हरि के दरबार में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी हाजिरी लगा चुके हैं। बीते साल 2023 में ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी उनके कार्यक्रम में पहुंचे थे। उन्होंने एक्स पर सत्संग में हिस्सा लेने की तस्वीरें शेयर करते हुए एक पोस्ट भी लिखा था। इसमें अखिलेश यादव ने कहा था कि नारायण साकार हरि की सम्पूर्ण ब्रह्मांड में सदा-सदा के लिए जय जयकार हो।
इस हादसे के बाद इस कथित बाबा और आयोजकों ने लोगों की कोई मदद करना तो दूर बाबा मौके से अंडरग्राउंड हो गए। बताया जाता है कि कोरोना के समय में भी इस बाबा ने सत्संग आयोजित कर प्रशासन के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी। उस समय पचास हजार की भीड़ जुट गई थी। दरअसल यह बाबा दलित समाज से है। इस बाबा की पश्चिमी व पूर्वी यूपी के दलित समाज में गहरी पैठ है और बड़ी संख्या में इसके अनुयायी हैं जिसके चलते इसके सत्संग में बड़ी संख्या में पिछड़े वर्ग के लोगों की उपस्थिति होती है।
सवाल यह भी है कि जब हाथरस के समागम की परमिशन दी गई तब जिला प्रशासन ने इस आयोजन के लिए पर्याप्त व्यवस्था क्यांे नहीं की। प्रवेश और निकासी के लिए संकरे रास्ते इस हादसे की बड़ी वजह बने। किसी भी आयोजन के लिए यह सबसे बेसिक बात है कि वहां प्रवेश और निकासी के साथ आपात स्थिति के लिए भी निकासी के रास्ते होने चाहिए लेकिन प्रशासन ने सिर्फ चालीस पुलिस वालों की ड्यूटी लगाकर कर्तव्य की पूर्ति कर दी यही कारण है कि इतनी बड़ी जनहानि हुई। लोगों के लिए यह सत्संग मौत का संग बन गया। मुख्यमंत्री योगी ने तत्काल राहत की व्यवस्था की। उधर, लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद भाषण के दौरान पीएम मोदी ने हाथरस हादसे की सूचना मिलते ही हादसे में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना प्रकट की और आश्रितों व घायलों को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया। दूसरे दलों के नेताओं ने भी इस हादसे पर शोक जताया है। असल सवाल, व्यवस्घ्था का है जो शासन-प्रशासन को कठघरे में खड़ा करता है। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)