लेखक की कलमसम-सामयिक

इस सत्र में सांसदों की परीक्षा

 

हमारा नया संसद भवन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता को समर्पित कर दिया लेकिन अब तक वहां लोकसभा या राज्यसभा की कोई बैठक नहीं हुई थी। अब 18 सितम्बर से विशेष सत्र बुलाया गया है जो प्रारम्भ तो पुराने संसद भवन से होगा लेकिन अगले दिन से बैठकें नये संसद भवन मंे होंगी। इस अवसर पर आजाद भारत के 75 वर्षों की संसदीय व्यवस्था पर चर्चा होगी। संसद में कई बार अप्रिय स्थिति भी आयी है और निःसंकोच कहें तो कभी सत्ता पक्ष ने तो कभी विपक्ष ने उस दिन को संसद का काला दिवस बना दिया। संसद में शालीनता की बाकायदा लिखित व्यवस्था है लेकिन अफसोस हमारे सांसद उस शालीनता को ताख पर रख देते हैं। इस बार इस विशेष सत्र से संसदीय व्यवस्था पर दाग लगाने वाली परम्परा का अंत हो जाए तो बेहतर होगा। हालंाकि विशेष सत्र से पहले ही सत्ता पक्ष और विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप-प्रत्यारोप शुरू कर दिये हैं जबकि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति केसे की जाए, इस पर बिल लाया जाएगा।

लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय की तरफ से जारी किए गए बुलेटिन के मुताबिक 18 सितम्बर को दोनों सदनों में कार्यवाही की शुरुआत भारतीय लोकतंत्र के इतिहास पर चर्चा से होगी। संविधान सभा से लेकर अब तक पिछले 75 साल का संसद का गरिमामयी इतिहास रहा है। इस दौरान जो अनुभव और उपलब्धियां रही हैं, उनसे आज क्या कुछ सीखा जा सकता है? इनसे जुड़े विषयों पर विस्तृत चर्चा होगी। अब तक इस विशेष सत्र के दौरान सरकार के एजेंडे में लोकसभा और राज्यसभा में कुल पांच बिल लाया जाना शामिल है। इसमें सबसे अहम बिल मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल की अवधि में बदलाव से जुड़ा है। इसके अलावा पोस्टल सेवाओं में सुधार से जुड़ा द पोस्ट आफिस बिल 2023, द एडवोकेट्स (एमेडमेंट) बिल 2023, प्रेस और पत्रिकाओं का रजिस्ट्रेशन बिल 2023 भी सरकार के टेंटेटिव लिस्ट ऑफ बिजनेस में शामिल हैं। पांच दिनों का संसद का यह विशेष सत्र 18 सितम्बर से शुरू होकर 22 सितम्बर तक चलेगा। संसद के विशेष सत्र को लेकर कांग्रेस पार्टी और केंद्र सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने यह कहकर गुमराह किया है कि केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाने में विभिन्न नियमों और प्रक्रियाओं का पालन किया है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि अतीत में कई मौकों पर सरकारों ने विशेष सत्र बुलाने से पहले उसके एजेंडे के बारे में जानकारी दी थी। इस संदर्भ में उन्होंने कई मिसालें भी दीं। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों ने संविधान दिवस, भारत छोड़ो आंदोलन और ऐसे अन्य अवसरों के लिए कई विशेष बैठकें बुलाई थीं तथा ऐसा करने वाली सरकारों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की भी सरकारें शामिल थीं। रमेश का बयान संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी के बयान के बाद आया है। अपने बयान में जोशी ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को जवाबी पत्र लिखा था। पत्र में लिखा गया था कि परंपराओं का पालन करते हुए ही संसद के विशेष सत्र को बुलाया गया है, शायद आपका परंपराओं की ओर
ध्यान नहीं है। संसद सत्र बुलाने से पहले ना कभी राजनीतिक दलों से चर्चा की जाती है और न कभी मुद्दों पर चर्चा की जाती है। महामहिम राष्ट्रपति के सत्र बुलाने के बाद और सत्र शुरू होने से पहले सभी दलों के नेताओं की बैठक होती है, जिसमें संसद में उठने वाले मुद्दों और कामकाज पर चर्चा होती है।

पुराने संसद भवन का निर्माण 1921 से 1927 के दौरान किया गया था। भवन की आधारशिला 12 फरवरी 1921 को किंग जॉर्ज पंचम का प्रतिनिधित्व करने वाले ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई थी और निर्माण जनवरी 1927 में पूरा हुआ था। देश को 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली जिसके बाद देश के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए भारतीय संविधान सभा की स्थापना की गई। साल 1950 में संविधान लागू होने तक देश में संसद ने अस्थायी रूप से काम किया।

26 जनवरी, 1950 को, भारत का संविधान लागू हुआ और भारत आधिकारिक रूप से एक संप्रभु गणराज्य बन गया। संविधान में द्वि-सदनीय प्रणाली को बरकरार रखा गया था, और विधायिका को भारत की संसद का नाम दिया गया। भारतीय संसद में दो सदन होते हैं, राज्यसभा और लोकसभा। राज्यसभा को ऊपरी सदन कहा जाता है, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि लोकसभा को निचला सदन कहा जाता है, जो सीधे देश की जनता का प्रतिनिधित्व करता है। देश के राष्ट्रपति को संसद का एक अभिन्न अंग माना जाता है। संसद में किसी भी कानून को पारित करने के लिए उनकी सहमति आवश्यक होती है। हालांकि, राष्ट्रपति संसद के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में भाग नहीं लेता है। देश की संसद विधायी शक्तियों का प्रयोग करती है। यहां विभिन्न मुद्दों पर बहस और कानून पारित किए जाते हैं। साथ ही महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के साथ देश के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सचिवालय सूत्रों के अनुसार, विशेष सत्र के दौरान दोनों सदनों में प्रश्नकाल और गैर-सरकारी कामकाज नहीं होगा। विशेष सत्र की शुरुआत पुराने संसद भवन से होगी और अगले दिन कार्यवाही नए भवन में होने की संभावना है। कार्य सूची अस्थायी है और इसमें अधिक विषय जोड़े जा सकते हैं।

सरकार ने पिछले सत्र में राज्यसभा में विवादास्पद मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक पेश किया था, जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) के लिए चयन समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रावधान है। इस कदम से सरकार को निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्तियों पर अधिक नियंत्रण प्राप्त हो सकेगा। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और वाम दलों सहित विपक्षी दलों के हंगामे के बीच कानून मंत्री ने विधेयक पेश किया, जिन्होंने सरकार पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के आदेश को ‘‘कमजोर करने और पलटने’’ का आरोप लगाया। उच्चतम न्यायालय ने मार्च में फैसला सुनाया था कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति, जिसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के प्रधान न्यायाधीश शामिल होंगे, सीईसी और ईसी का चयन करेंगे। फैसले में कहा गया था कि यह नियम तब तक बरकरार रहेगा, जब तक कि इन आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर संसद द्वारा कानून नहीं बना लिया जाता। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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