खेती-किसानी और वर्षा नक्षत्र

(एस.सी. मिश्र-हिफी फीचर)
भारत मंे खेती-किसानी एक महत्वपूर्ण और प्रमुख गतिविधि है। पहले तो यह कहावत खूब प्रचलित थी-
उत्तम खेती, मध्यम बान
निषिघ चाकरी, भीख निदान।
अर्थात् सर्वोत्तम कार्य खेती-किसानी का है। इसके बाद व्यापार का स्थान है। नौकरी (सर्विस) को निषिद्ध अर्थात् जब कुछ भी न कर सकें तो नौकरी करें। भीख मांगना तो कोई काम है ही नहीं। इस प्रकार खेती का महत्व भारतीय परम्परा मंे सबसे ज्यादा रहा हैं। खेती के लिए बारिश का भी उतना ही महत्व है। आज सिंचाई के प्रचुर साधन हैं लेकिन कभी खेती बारिश पर ही निर्भर थी। किसानांे को मेघों का इंतजार रहता था। भारतीय चिंतन मंे बारिश की भविष्यवाणी भी रही है और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बारिश के विशेष नक्षत्र होते हैं। इनमंे पानी कैसे बरसता है और कितना बरसता है इस पर सटीक कहावते हैं। आज मौसम विज्ञान से हमें एक-दो सप्ताह की भविष्यवाणी पता चल जाती है लेकिन कहावतों मंे महीनों पहले से यह जान लिया जाता है कि आने वाले महीनों मंे कितनी बारिश होगी। यहां हम वर्षा नक्षत्रों के बारे में जानकारी देने का प्रयास करेंगे। बारिश के दिनों मंे हमारे यहां खरीफ की फसल उगाई जाती है जिसमंे धान, मक्का, ज्वार, बाजरा जैसे मुख्य अनाज होते हैं मोटे अनाज की खेती पर अब विशेष ध्यान भी दिया जा रहा है। देश मंे सबसे ज्यादा पैदावार धान की होती है।
सावन का महीना शुरू हो गया है। खेती किसानी की तैयारियों में जुटे किसानों को अब तेज बारिश का इंतजार है, जिससे वो अपनी खेती की ठीक से शुरुआत कर सकें। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार बारिश में 5 नक्षत्र होते हैं जो 15-15 दिन चलते हैं, तो सबसे पहले 22 जून से आर्द्रा नक्षत्र प्रारंभ हुआ। अब 6 जुलाई से पुनर्वस नक्षत्र आ गया, पुनर्वस नक्षत्र में भी 8 आढक बारिश होगी यानी 80 प्रतिशत बारिश का योग है, अच्छी बरसात का योग है और धान की फसल उड़द की फसल मक्का, ज्वार है जो भी फसल इस बरसात के मौसम में लगाते हैं वो बहुत अच्छी होगी। पुनर्वस नक्षत्र 6 जुलाई से लेकर 19 जुलाई तक रहेगा। इसमें अच्छी वर्षा होगी। इस दौरान किसी भी तरह से खंड वर्षा नहीं होगी और हर जगह पूरे भारतवर्ष में अच्छी बारिश होगी।
20 जुलाई से शुरू होगा पुख नक्षत्र- इसमें मध्यम वर्षा आ जाती है, मतलब पुख नक्षत्र आता है। पुख नक्षत्र में जो इस बार 20 जुलाई से पुख नक्षत्र शुरू होगा, इसमें छुटपुट वर्षा होगी। मतलब 2 दिन बारिश होगी तो 12 दिन धूप रहेगी। इस नक्षत्र में फसलों को
नुकसान होने की भी संभावना है।
थोड़ी सावधानी रखें और जल संग्रह अवश्य कर लें, क्योंकि इस पुख नक्षत्र में अल्प वर्षा होने का पूर्ण योग है। इस नक्षत्र में 2 आढक मात्र ही पानी लिखा हुआ है।
इसके बाद अश्लेषा नक्षत्र आएगा यानी बरसात का 60 प्रतिशत भाग निकल चुका है। इस नक्षत्र में भी अच्छी वर्षा होगी और अच्छी फसल होगी। धान के फसल का कोई नुकसान नहीं होगा। मोटे अनाज जैसे कोदो, कुटकी, मक्का, मकाई और तिलहन हैं उसके लिए बहुत ही सर्वोत्तम समय है। इसके बाद 3 अगस्त से लेकर 17 अगस्त तक योग है। इसमें कभी बरसात, कभी धूप, कभी छुटपुट वर्षा होगी, धूप काफी रहेगी, लेकिन फसलों का नुकसान नहीं होगा, क्योंकि बीच-बीच में वर्षा का योग है अच्छी बारिश होगी। इसके बाद 17 अगस्त से 30 अगस्त के बीच मघा नक्षत्र प्रारंभ होगा, जो बारिश का मेन गर्भ ग्रह महीना होता है। इसमें अच्छी बारिश का भी योग है। इसमें बारिश होने से पृथ्वी संतुष्ट हो जाती है। नदी, तालाब, झरने, और नदियां सब जलमग्न हो जाते हैं, फसल उगाने के लिए समय बेहतर हो जाता है। इस नक्षत्र में फसलों को भी फायदा होगा और इसमें किसी भी तरह का कोई नुकसान होने की संभावना नहीं रहेगी, फिर 31 अगस्त से पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र आएगा। इसमें भी अल्प वर्षा होगी। हल्की बारिश की समाप्ति का योग बनेगा। 31 अगस्त तक बारिश छुटपुट होने के साथ समाप्त होगी। इसके बाद 31 अगस्त से 13 सितंबर तक उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र लगेगा। इसमें 10 प्रतिशत बारिश होगी यानी जैसे लोग अलसी की खेती करते हैं, उनके लिए उत्तम समय रहेगा। धान की फसल बीच-बीच में तैयार हो जाएगी, अच्छा उत्पादन होगा। फिर 13 सितंबर से 27 सितंबर के बीच हस्त नक्षत्र रहेगा। इसमें भी सामान्य वर्षा है। गरज एवं छीटों के साथ बारिश होगी और फसलों के लिए उत्तम समय रहेगा।
भारत में नक्षत्र परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ये सभी नक्षत्र चंद्रमा के पथ में स्थित होते हैं, जिनके समीप से चंद्रमा गति करता है। सूर्य पंचांग से इनकी गणना करना मुश्किल है, लेकिन चंद्र पंचांग से इनकी गणना आसानी से की जा सकती है। चंद्रमा 27 नक्षत्रों में गति करता है। इन्हें ही प्रधान नक्षत्र माना जाता है। इसके साथ ही एक गुप्त नक्षत्र भी माना गया है जिसे अभिजीत कहा जाता है। इस तरह इनकी संख्या 28 हो जाती है। ऋग्वेद में सूर्य की गणना भी नक्षत्र में की गई है। भागवत पुराण के अनुसार, ये सभी नक्षत्र प्रजापति दक्ष की पुत्रियां और चंद्रमा की पत्नी हैं। शिव महापुराण में एक कथा के अनुसार, राजा दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से किया था लेकिन वो सभी 27 में से रोहिणी से ज्यादा प्रेम करते थे। चंद्रमा के इस व्यवहार से बाकी 26 दक्ष पुत्रियां दुखी रहती थीं। उन्होंने पिता को अपनी व्यथा बतायी। दक्ष ने चंद्रमा को समझाया लेकिन वो नहीं माने तो उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया। चंद्रमा इससे घबरा कर ब्रह्मा के पास गये। ब्रह्मा ने उन्हें शिव की स्तुति करने को कहा। तब चंद्रमा ने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर घोर तप किया। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने कहा कि आज से हर मास में दो पक्ष होंगे (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) इनमें लगातार तुम्हारी रोशनी घटेगी और बढ़ेगी, और जब पूर्णिमा को तुम अपने पूर्ण रूप में रहोगे तब रोहिणी नक्षत्र में वास करोगे।
मानसून में कवि घाघ की कहावत याद आती है। कवि घाघ ने अपनी रचना में लिखा है, ‘हथिया पुरवाई पावै, लौट चैमास लगावै। पुरवाई का साथ पाते ही मानसून जोरदार दस्तक देता है। पितृपक्ष का समय मानसून की विदाई का होता है। कहावत है- बोली लुखरी फूला कास, अब छोड़ो वर्षा की आस। लुखरी, यानी लोमड़ी की आवाज गूंजने लगे और कास भी जमकर फूलने लगे तो किसान वर्षा की उम्मीद छोड़ चुके होते थे।
धान की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि प्रक्रिया है, खासकर भारत जैसे देशों में जहाँ यह मुख्य भोजन है। धान की खेती के लिए उचित समय, मिट्टी, पानी, सिंचाई और उर्वरक का सही प्रबंधन आवश्यक है। (हिफी)