जीडीपी के हीरो, सम्मान में जीरो

(अनुष्का-हिफी फीचर)
¨ जीडीपी में असंगठित कामगारों की 45 फीसद हिस्सेदारी।
¨ पीएम मोदी ने प्रारम्भ की विश्वकर्मा सम्मान योजना।
¨ यूपी के सीएम योगी ने भी दी पेंशन व इलाज की सुविधा।
भारत के ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) जिसे हम सामान्य रूप से सकल घरेलू उत्पाद के नाम से जानते हैं, इसके नायक अर्थात हीरो असंगठित वर्ग के लोग होते हैं, लेकिन उन्हें सम्मान नहीं मिल पाया। जीडीपी में इनका 45 फीसद अर्थात लगभग आधा योगदान रहता है। इससे इनके महत्व का आकलन किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ग के कल्याण के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना प्रारम्भ की। भगवान विश्वकर्मा हमारी सृष्टि के रचनाकार माने जाते हैं। उनकी जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितम्बर 2024 को विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना को शुरू किया। प्रधानमंत्री की योजनाओं को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पेंशन और आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त चिकित्सा देने की व्यवस्था की है। इस प्रकार अब असंगठित वर्ग को भी कौशल और अन्य सुविधाएं मिलेंगी।
भारत का शहरी असंगठित क्षेत्र करोड़ों लोगों के जीवनयापन का आधार है। यह क्षेत्र शहरों की अर्थव्यवस्था का आधार है और हर प्रकार से उसे जोड़कर रखता है। रेहड़ी-पटरी वाले, घरेलू कामगार, कचरा बीनने वाले, निर्माण श्रमिक, ऑटो चालक और छोटे दुकानदार ये सभी शहरी जीवन के आवश्यक हिस्से हैं। फिर भी इन्हें सरकार की योजनाओं, नीतियों और बजट में अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। इन्हें आमतौर पर अस्थायी या अनौपचारिक कहकर हाशिए पर डाल दिया जाता है, जबकि इनका योगदान न सिर्फ रोजगार देने में है बल्कि शहर की हर जरूरत को पूरा करने में भी है। कोविड-19 महामारी के समय यह साफ दिखा कि यह सेक्टर कितना असुरक्षित है। जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा हुई, लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई। न नौकरी रही, न पैसे बचे, और न ही खाने को कुछ मिला। देशभर में मजदूरों का पलायन शुरू हो गया, जिनमें ज्यादातर शहरी असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोग थे। यह संकट इस बात का स्पष्ट संकेत था कि हमारी नीतियों में इस वर्ग के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी। भारत की कुल श्रमशक्ति में से 80 से 90 प्रतिशत तक लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। शहरी क्षेत्रों में भी लगभग 70 प्रतिशत लोग इस वर्ग में आते हैं। इसके बावजूद उन्हें पेंशन, बीमा, स्थायी रोजगार और सुरक्षित काम की जगह जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलतीं। वे हर दिन शहरों को साफ-सुथरा रखते हैं, हर गली-मोहल्ले में फल-सब्जी और जरूरी सामान पहुंचाते हैं, और लोगों की आवाजाही में मदद करते हैं। बावजूद इसके, उन्हें शहर की योजनाओं और विकास की चर्चा में गिना ही नहीं जाता।
इस क्षेत्र के पिछड़ने के कई कारण हैं। सबसे पहले तो यह कि सरकारों ने इस क्षेत्र को कभी गंभीरता से नहीं लिया। इसे एक समस्या के रूप में देखा गया, समाधान के हिस्से के रूप में नहीं। दूसरा बड़ा कारण है डेटा की कमी। इस क्षेत्र से जुड़े लोगों के पास अक्सर न पक्की नौकरी होती है, न पहचान-पत्र, इसलिए सरकार के पास इनके बारे में सही जानकारी ही नहीं होती। तीसरी बड़ी समस्या है कानूनी पहचान का अभाव। अधिकांश लोगों के पास कोई औपचारिक पहचान नहीं होती जिससे वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते। इसके अलावा, इन्हें काम करने के लिए जरूरी जगह और संसाधन भी नहीं मिलते। जैसे रेहड़ी-पटरी वालों को अतिक्रमण बताकर हटा दिया जाता है, लेकिन उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जाती। इस स्थिति को सुधारने के लिए कई जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले तो यह जरूरी है कि इन लोगों को शहर की योजना और नीति-निर्माण में शामिल किया जाए। जब तक इनकी जरूरतों और अनुभवों को ध्यान में नहीं रखा जाएगा, तब तक कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती। इसके बाद, सभी असंगठित श्रमिकों का पंजीकरण होना चाहिए और उन्हें एक यूनिक श्रमिक पहचान-पत्र दिया जाना चाहिए, जैसे कि ई-श्रम कार्ड। यह न केवल योजनाओं का लाभ देने में मदद करेगा, बल्कि उनके लिए एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क भी बना सकेगा। इसके साथ ही स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा, पेंशन और दुर्घटना बीमा जैसी सुविधाएं भी जरूरी हैं। इन सुविधाओं से न केवल इनका जीवन सुरक्षित होगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत बनेगी क्योंकि जब हर नागरिक सुरक्षित होता है, तभी देश आगे बढ़ता है। सरकार को इन श्रमिकों के लिए काम की उचित जगह और बुनियादी सुविधाएं जैसे पानी, बिजली और साफ-सफाई भी सुनिश्चित करनी चाहिए। डिजिटल टेक्नोलॉजी का सही उपयोग करके इन्हें योजनाओं से जोड़ा जा सकता है। मोबाइल ऐप्स और डिजिटल भुगतान की मदद से इनका कामकाज आसान और पारदर्शी हो सकता है। इसके अलावा, उन्हें नए कौशल सिखाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए जिससे ये अपनी कमाई बढ़ा सकें और बेहतर जीवन जी सकें।
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार ने इस सेक्टर को अनदेखा करा है। 1990 से लेकर 2000 तक इस वर्ग का होना न होने के सामान देखा जाता था किन्तु जबसे इस वर्ग के लोगों कि संख्या बढ़ी है तबसे इस असंगठित कामगारों को अर्थव्यवस्था का हिस्सा स्वीकार किया गया है और इनके पंजीकरण और भलाई के लिए नीतियां लायी गयी हैं। पीएम स्वनिधि और अटल पेंशन योजना इसका अहम् हिस्सा हैं। ई श्रम पोर्टल पर 30 करोड़ से अधिक कामगारों के पंजीकरण हैं। पीएम श्रम योगी मान धन, स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, आम आदमी बीमा योजना और पीएम जन आरोग्य योजना के माध्यम से श्रमिकों को लाभ मिल रहे हैं। कम लागत में श्रमिक मशीन व कैपिटल को ले सकते हैं और उनके स्वास्थ के लिए भी आयुष्मान भारत द्वारा बड़े कदम उठाये गए हैं। इनफॉर्मल सेक्टर में काम कर रहे लोगों की स्थिति को बेहतर करने के लिए भारत ने वो सभी तरीके अपनाये हैं जिनसे अन्य देशों ने अपने असंगठित कामगारों को सुरक्षा दी है।
शहरों को भी अपनी सोच बदलनी होगी। आज के शहरी विकास की दिशा केवल अमीरों, बड़ी कंपनियों और ऊँची इमारतों की तरफ है लेकिन असली और टिकाऊ शहर वही है जो हर वर्ग के लोगों को जगह देता है चाहे वह सीईओ हो या चाय बेचने वाला हो। जो शहर सभी की जरूरतों को बराबरी से समझे और हर नागरिक को सम्मान दे, वही सही मायनों में समृद्ध और टिकाऊ बन सकता है। हमें यह समझना जरूरी है कि शहरी असंगठित क्षेत्र कोई बोझ नहीं है। यह भारत की अर्थव्यवस्था और समाज का वह आधार है जिसे अगर सही दिशा और सहयोग मिले, तो यह देश को बहुत आगे ले जा सकता है। अब वक्त आ गया है कि हम इन लोगों को हाशिए पर रहने वाला कहने के बजाय, उन्हें समाज और विकास की मुख्यधारा में लाएं और एक समावेशी, समानता पर आधारित भारत की कल्पना को साकार करें। ये समझने की आवश्यकता है कि श्रमिकों को असुरक्षित रहने देने से देश व समाज का हित नहीं हो सकता। (हिफी)