कृषि/बागवानी

फसल बीमा के तहत किसानों को सौगात

किसान अन्न के देवता हैं। वे कड़े परिश्रम और पैसे खर्च करके फसल उगाते हैं। इस बीच उनको कई जोखिमों का सामना करना पड़ता है। केन्द्र सरकार ने किसानों की इस समस्या को गंभीरता से लिया और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) प्रारंभ की। इसके तहत किसानों को उनकी फसल का नुकसान होने पर मुआवजा मिल जाता है। अनाज की बर्वादी की कीमत तो कोई नहीं चुका सकता। इसका दर्द वह किसान ही महसूस कर सकता है जिसकी फसल बर्वाद हो जाती है फिर भी कुछ राहत तो मिलती ही है। प्राकृति आपदा के साथ ही किसानों को जंगली जानवरों से भी परेशानी होने लगी है। हाथी, जंगली सुअर, नीलगाय और बंदर फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। अब तक जंगली जानवरों द्वारा होने वाले नुकसान को फसल बीमा योजना के दायरे में शामिल नहीं किया जाता था। अब केन्द्र सरकार ने जंगली जानवरों से फसलों को होने वाले नुकसान को भी बीमा जोखिम के तहत शामिल कर लिया है। अभी ताजा मिली खबरों के अनुसार दुधवा नेशनल पार्क के जंगलों से निकले हाथियों के झुंड ने चैखड़ा फार्म क्षेत्र के गन्ने के किसानों की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। गत 17 नवम्बर की देर रात हाथियों ने करीब 12 एकड़ गन्ने की फसल को रौंद डाला। उत्तरखीरी की मंझगई रेंज के अंतर्गत चैखड़ा फार्म जंगल के नजदीक है। जिन किसानों की फसल बर्बाद हुई उनमें वेदराम, सुखदेव सिंह, सरबजीत व दलवीर समेत आधा दर्जन किसान हैं। फसल बीमा योजना में परिवर्तन से ऐसे किसानों को कुछ राहत मिल सकेगी।
देश में किसान दशकों से हाथी, जंगली सूअर, नीलगाय, हिरण और बंदरों जैसे जंगली जानवरों के हमलों के कारण फसल को होने वाले नुकसान के संकट से जूझ रहे हैं। यह समस्या मुख्य तौर पर वन क्षेत्रों, वन गलियारों और पहाड़ी इलाकों के पास खेती करने वाले किसानों को ज्यादा झेलना पड़ती है। हाल तक जंगली जानवरों द्वारा होने वाले नुकसान को फसल बीमा योजना के दायरे में शामिल नहीं किया जाता था और प्रभावित किसानों को भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ती थी। अब कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसान भाई-बहनों को बड़ी सौगात दी है। मंत्रालय ने जंगली जानवरों द्वारा फसलों के नुकसान और धान जलभराव को कवर करने के लिए नई प्रक्रियाओं को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एक आधिकारिक नोट के मुताबिक, संशोधित प्रावधानों के अनुसार, जंगली जानवरों द्वारा फसल नुकसान को स्थानीयकृत जोखिम श्रेणी के पाँचवें ‘ऐड-ऑन कवर’ के रूप में मान्यता दी गई है। राज्य सरकारें जंगली जानवरों की सूची अधिसूचित करेंगी तथा ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर अत्यधिक प्रभावित जिलों में बीमा इकाइयों की पहचान करेंगी। किसान को फसल नुकसान की सूचना 72 घंटे के भीतर फसल बीमा ऐप पर जियो-टैग्ड फोटो के साथ दर्ज करनी होगी। यह निर्णय विभिन्न राज्यों की लंबे समय से चली आ रही मांगों के अनुरूप है और किसानों को अचानक, स्थानीयकृत और गंभीर फसल क्षति से सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
ये फैसला खरीफ 2026 सीजन से पूरे देश में लागू किया जायेगा। साथ ही, तटीय इलाकों और बाढ़ संभावित क्षेत्रों में धान की खेती करने वाले किसानों को भरी बारिश और नदी-नालों में जलस्तर बढ़ने से होने वाले जलभराव के कारण भी भारी नुकसान उठाना पड़ता रहा है। वर्ष 2018 में इस जोखिम को स्थानीयकृत आपदा श्रेणी से हटाए जाने से किसानों के लिए एक बड़ा संरक्षण अंतर उत्पन्न हो गया था। झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिला में जंगली हाथियों का उत्पात जारी है। जिले के खरसावां, कुकड़ू, टडाम, ईचागढ़ और चांडिल क्षेत्र में ओडिशा और पश्चिम बंगाल की सीमा से आए लगभग 30-35 जंगली हाथियों के झुंड सक्रिय हैं।
ये हाथी धान की फसलों को चट कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुुकसान हो रहा है। जानकारी के अनुसार कुकड़ू क्षेत्र में लगभग 16 हाथियों का झुंड एक साथ घूम रहा है, जबकि खरसावां के रामपुर और आसपास के गांवों में 12 हाथियों का एक अन्य झुंड देखा गया है। दोनों ही झुंडों में एक-एक शावक शामिल है। इसके अलावा चांडिल क्षेत्र में एक-दो हाथी अलग-अलग भी दिखाई दे रहे हैं। जंगल के किनारे बसे गांवों में हाथियों की लगातार मौजूदगी के कारण किसान भयभीत हैं।
रात के समय हाथियों द्वारा खेतों में घुसकर फसल रौंदने और खाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। धान की कटाई का समय होने के कारण खेतों में पक चुकी फसलों की सुगंध हाथियों को आकर्षित कर रही है। यही वजह है कि हाथी खेतों के बाद गांवों और घरों की ओर बढ़ सकते हैं, जिससे ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। किसान गणेश महाली का कहना है कि यदि वे कटे हुए धान को घरों में ले जाएंगे तो हाथियों के गांव तक पहुंचने का खतरा और बढ़ जाएगा।
किसानों का कहना है कि कई ग्रामीण रात के समय खेतों की रखवाली करने से भी डर रहे हैं। हाथियों को खदेड़ने के लिए वन विभाग ने पश्चिम बंगाल से 16 सदस्यीय कुशल हाथी रक्षक टीम को बुलाया है। टीम से कुकड़ू और खरसावां क्षेत्र में अभियान चला रही है। हालांकि झुंड में शामिल कुछ हाथी इतने आक्रामक हैं कि उन्होंने दो-तीन बार टीम के सदस्यों को दौड़ा भी दिया। फिलहाल ये झुंड कुकड़ू के सोड़ो, तालाब, पिलाई, जारगोडी और खरसावां के जंगलों के आसपास के इलाके में सक्रिय हैं। धान की तैयार फसलों को हाथियों द्वारा बर्बाद किए जाने से किसानों की आर्थिक स्थिति पर भारी असर पड़ा है। कई एकड़ में लगी फसल एक ही रात में नष्ट हो चुकी है। कुछ किसानों को तो अपनी मेहनत बचाने का भी मौका नहीं मिला। वन विभाग की टीम मौके पर पहुंचकर लगातार नुकसान का आकलन कर रही है, लेकिन किसानों का कहना है कि स्थायी समाधान के अभाव में हर साल यह समस्या और बढ़ती जा रही है।
हाथियों की बढ़ती आवाजाही के कारण ग्रामीण घरों से निकलने में भी डर महसूस कर रहे हैं। लोगों की चिंता है कि यदि हाथी गांवों में घुस आए तो जानमाल को भारी क्षति पहुंचा सकते हैं। ग्रामीण लगातार वन विभाग से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं और हाथियों को सुरक्षित दिशा में खदेड़ने के लिए प्रभावी कदम उठाने की अपील कर रहे हैं। फिलहाल स्थिति नियंत्रण में नहीं आ सकी है और किसान एवं ग्रामीण हाथियों के खतरे के बीच चिंतित हैं। दुधवा नेशनल पार्क के जंगल से निकले हाथियों के झुंड ने चैखड़ा फार्म क्षेत्र के किसानों की गन्ने की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। गत 17 नवम्बर रात हाथियों ने करीब 12 एकड़ में खड़ी गन्ने की फसल रौंद डाली। उत्तर खीरी की मझगईं रेंज के अंतर्गत चैखड़ा फार्म जंगल के नजदीक स्थित है, जिसके कारण हाथियों की आवाजाही बढ़ गई है। पार्क से निकले हाथियों ने किसानों की करीब बारह एकड़ गन्ने की फसल नष्ट कर दी। किसान वेदराम ने बताया कि हाथियों के झुंड ने उनकी तीन एकड़ फसल रौंद दी। इसी प्रकार सुखदेव सिंह, सरजीत सिंह, दलबीर सिंह सहित आधा दर्जन से अधिक किसानों की फसल भी हाथियों ने तबाह कर दी। किसानों का कहना है कि वे खेतों के पास ऊँचे मचान बनाकर जंगली जानवरों से रखवाली करते हैं, लेकिन हाथियों के अचानक पहुंचने पर उन्हें वहां से भागना पड़ा। सूचना मिलने पर अन्य किसान और वन विभाग के कर्मचारी मौके पर पहुंचे। रात में गोले-पटाखे दागकर और शोर मचाकर हाथियों के झुंड को वापस जंगल की ओर खदेड़ा गया, लेकिन तब तक खेतों में खड़ी फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी। इससे पहले 11 नवंबर को भी हाथियों के झुंड ने करीब 10 एकड़ गन्ना रौंदा था। किसानों को अभी उस नुकसान से उबरना बाकी था कि हाथियों ने खेतों में धावा बोलकर बची-खुची फसल भी तबाह कर दी। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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