महागठबंधन और ओबैसी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों के गठबंधन को कमजोर नहीं आंका जा रहा है। इसीलिए गठबंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को फूंक-फूंक कर कदम उठाने पड़ रहे हैं। राजद का माय अर्थात् मुसलमान-यादव समीकरण मजबूत है। उधर, एआईएमआईएम के नेता असदउद्दीन ओबैसी महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहते हैं। ओवैसी की पकड़ बिहार के सीमांचल क्षेत्र में है। इस क्षेत्र में किसनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जिले आते हैं, जहां 30 फीसद से ज्यादा मुसलमान आबादी है। ओवैसी के साथ आने पर सीमांचल क्षेत्र मंे मुस्लिम वोटों का बंटवारा रुक सकता है लेकिन तब राजद के हिस्से से विधानसभा की सीटें कम हो जाएंगी। ओवैसी 50 विधानसभा की सीटें मांग रहे हैं। इतना ही नहीं, गठबंधन के अन्य घटक, विशेष रूप से कांग्रेस भी तब ज्यादा सीटें मांगेगी। राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव असमंजस मंे हैं कि ओवैसी का साथ लिया जाए अथवा उन्हंे अकेले छोड़ दिया जाए। ओवैसी के साथ आने से यह भी तय है कि राजद के हिन्दू वोटरों मंे नाराजगी बढ़ेगी। कुछ भी हो, ओवैसी ने महागठबंधन मंे शामिल होने की इच्छा जताकर राज्य की सियासत मंे हलचल मचा दी है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने लालू प्रसाद यादव को महागठबंधन में शामिल होने का ऑफर देकर सियासी हलचल मचा दी। यह प्रस्ताव सेक्युलर वोटों को एकजुट करने के लिए दिया गया है, लेकिन इस पर तेजस्वी यादव की चुप्पी और राजद का इनकार सवाल उठाता है कि क्या यह एनडीए को हराने की रणनीति है या वाईएम समीकरण को तोड़ने का जाल? ओवैसी का यह कदम बिहार की सियासत को ध्रुवीकरण की ओर ले जा रहा है। दरअसल, एआईएमआईएम का दावा है कि यह कदम सेक्युलर वोटों को एकजुट कर एनडीए को हराने के लिए है, लेकिन राजद इसे भाजपा की ‘बी-टीम’ के रूप में देखती है। 2020 में सीमांचल में पांच सीटें जीतने वाली एआईएमआईएम का यह ऑफर क्या वास्तव में सेक्युलर एकता की कोशिश है या राजद के वाईएम (मुस्लिम-यादव) समीकरण को तोड़ने की चाल? पांच बिंदुओं में इस सियासी खेल को समझते हैं। भाजपा की बी-टीम के आरोप से मुक्ति की कोशिश- एआईएमआईएम पर लंबे समय से भाजपा की ‘बी-टीम’ होने का आरोप लगता रहा है। खासकर राजद और महागठबंधन लगातार यह दावा करता रहा है। वर्ष 2020 में एआईएमआईएम ने सीमांचल में पांच सीटें जीतकर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया था, जिसके बाद राजद ने इनमें से चार विधायकों को तोड़कर राजद में शामिल करवा लिया था। राजनीति के जानकार कहते हैं कि इससे सबक लेकर ओवैसी का महागठबंधन को ऑफर इस छवि को तोड़ने की रणनीति है, ताकि अगर अलग लड़े और उनके विधायक चुने गए तो वह एआईएमआईएम न छोड़े। वहीं, एआईएमआईएम के बिहार अध्यक्ष अख्तरुल इमान कहते हैं हम सेक्युलर वोटों का बिखराव रोकना चाहते हैं। जाहिर है ओवैसी की यह कोशिश है कि इस प्रस्ताव से भाजपा के साथ किसी भी गुप्त गठजोड़ के आरोपों को वह खारिज करने में कामयाब हो। वहीं, दूसरी ओर राजद इसे सियासी चाल मानती है जिससे उनकी दुविधा बढ़ गई है।
बिहार के सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया) में 30-68 फीसद मुस्लिम आबादी है जहां ओवैसी ने 2020 में मजबूत प्रदर्शन किया था। ओवैसी का यह ऑफर सीमांचल के मुस्लिम वोटरों को सीधा-सीधा संदेश है कि उनकी पार्टी सेक्युलर गठबंधन के साथ खड़ी है। ओवैसी का दावा है कि उनकी पार्टी 24 सीटें जीत सकती है और उसकी दावेदारी 50 सीटों की है ऐसे में राजद पर दबाव बढ़ गया है कि वह इस प्रस्ताव को गंभीरता से ले या न ले। यही कारण है कि तेजस्वी यादव इन दिनों मुस्लिम वोटों को लामबंद करने के लिए आक्रामक दिख रहे हैं। उन्होंने हाल में ही वक्फ कानून पर बयान दिया कि-हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं। वहीं, दूसरी ओर मुहर्रम के दौरान प्रतिबंधित क्षेत्र में भी मुहर्रम का ताजिया राबड़ी आवास पर जाना और राबड़ी देवी का पूजा-अर्चना करना बताता है कि आरजेडी मुस्लिम मतों को एकजुट रखने को लेकर बेहद गंभीर है, लेकिन एआईएमआईएम के प्रस्ताव पर वह असमंजस में है। एआईएमआईएम ने पहले भी महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई थी, लेकिन राजद ने इसे ठुकरा दिया। लालू यादव और तेजस्वी यादव को डर है कि एआईएमआईएम के साथ गठबंधन से हिंदू वोटरों में नाराजगी बढ़ेगी और भाजपा इसे ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के रूप में प्रचारित करेगी। राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने एआईएमआईएम को ‘वोट कटुआ’ कहा और मनोज झा ने सुझाव दिया कि ओवैसी को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। यह डर राजद के एमवाई समीकरण को बचाने और हिंदू वोटों को नहीं खोने की रणनीति से उपजा है लेकिन इससे एआईएमआईएम को अकेले लड़ने का मौका मिल सकता है, जो आरजेडी और महागठबंधन के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
एआईएमआईएम के बिहार अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने हाल ही में लालू प्रसाद यादव को चिट्ठी लिखी। उन्होंने साफ-साफ कहा कि भाजपा को हराने के लिए हमें साथ आना चाहिए लेकिन सवाल ये है कि क्या लालू यादव ओवैसी की पार्टी को गले लगाएंगे? मामला बेहद पेचीदा है। एआईएमआईएम भले ही भाजपा के खिलाफ है, लेकिन आरजेडी समेत महागठबंधन की कई पार्टियों को लगता है कि ओवैसी की पार्टी लड़ाई को और उलझा देती है। लालू यादव की पार्टी की नींव यादव और मुस्लिम वोटरों पर टिकी है जबकि ओवैसी की पकड़ मुस्लिम इलाकों में मजबूत होती जा रही है। अगर एआईएमआईएम को साथ लिया गया, तो मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा लालू को छोड़ ओवैसी के खाते में जा सकता है। ये सियासी जोखिम लालू या तेजस्वी शायद न लेना चाहें।
राजद यदि ओवैसी का ऑफर ठुकरा देती है, तो उसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। गत 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल की 5 सीटें जीत ली थीं। ये वो सीटें थीं, जो कांग्रेस और आरजेडी जीतने का सपना देख रहे थे। ओवैसी ने बिहार में 18 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 14 सीमांचल में थे। इनमें से 5 ने जीत दर्ज की। अमौर, बायसी, कोचाधामन, बहादुरगंज और जोकीहाट में पार्टी ने कब्जा जमाया। ये नतीजे यह दिखाने के लिए काफी थे कि एआईएमआईएम अब सीमांचल की सियासत में ‘सीरियस प्लेयर’ बन चुकी है लेकिन 2022 में ही ओवैसी के चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए। लालू यादव ने तब इसका स्वागत किया, लेकिन यह भी साफ कर दिया कि वह ओवैसी पर भरोसा नहीं करते।
अब फिर से ओवैसी दरवाजा खटखटा रहे हैं लेकिन आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने दो टूक कहा, ‘एआईएमआईएम भाजपा की बी-टीम की तरह काम करती है।’ उन्होंने कहा कि फैसला लालू और तेजस्वी लेंगे, लेकिन बिहार में इस बार कोई वोट बंटवारा नहीं होगा। तेजस्वी की लहर सब पर भारी पड़ेगी। उधर, एआईएमआईएम भी जवाबी हमला करने में पीछे नहीं है। प्रवक्ता वारिस पठान कहते हैं, ‘हर बार हमें बी-टीम कहते हैं, लेकिन कोई सबूत नहीं देते। हमने हरियाणा में चुनाव नहीं लड़ा, फिर वहां कांग्रेस क्यों हारी?’ पठान का कहना है कि पार्टी का मकसद सिर्फ भाजपा को हराना है और सेक्युलर वोटों का बंटवारा रोकना है। अगर आम आदमी पार्टी लड़े तो कोई सवाल नहीं पूछता, लेकिन एआईएमआईएम को लेकर हर बार अंगुली उठाई जाती है। अगर लालू यादव ओवैसी का प्रस्ताव ठुकरा दें तो? वारिस पठान साफ कहते हैं, ‘अगर गठबंधन नहीं होता, तब भी हम चुनाव लड़ेंगे। कोई हमें रोक नहीं सकता।’ उन्होंने संकेत दिया कि पार्टी अब सिर्फ मुस्लिम चेहरों तक सीमित नहीं रहेगी। (हिफी)