अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

करहु प्रजा परिवारु सुखारी

प्रभु श्रीराम ने भरत जी को अपने पास बैठाकर समझाया और कहा कि हे भाई हम लोगों को सूर्यवंश की मर्यादा की रक्षा और उसकी परम्परा का पालन करना होगा। उन्होंने भरत से यह भी कहा कि मैं जानता हूं कि तुमको इससे काफी कष्ट होगा लेकिन सूर्यकुल का रक्षक बनकर प्रजा और परिवार को सुखी बनाना होगा। सेवक और स्वामी के बारे में भी श्रीराम बताते हैं और कहते हैं कि सेवक जहां हाथ, पैर और नेत्रों के समान होता है तो वहीं स्वामी मुख के समान होना चाहिए। यह सुनकर भरत जी संतुष्ट हो जाते हैं। इस प्रसंग में यही बताया गया है।

जानहु तात तरनि कुल रीती, सत्यसंध पितु कीरति प्रीती।
समउ समाजु लाज गुरजन की, उदासीन हित अनहित मनकी।

तुम्हहि बिदित सबही कर करमू, आपन मोर परमहित धरमू।
मोहि सब भांति भरोस तुम्हारा, तदपि कहउं अवसर अनुसारा।

तात तात बिनु बात हमारी। केवल गुरकुल कृपा संभारी।
नतरु प्रजा परिजन परिवारू, हमहि सहित सबु होते खुआरू।

जौं बिनु अवसर अथवं दिनेसू, जग केहि कहहु न होइ कलेसू।
तस उतपातु तात विधि कीन्हा, मुनि मिथिलेस राखि सब लीन्हा।

राजकाज सब लाजपति धरम धरनि धनधाम।
गुर प्रभाउ पालिहि सबहि भल होइहि परिनाम।

श्रीराम जी भरत जी से कहते हैं कि हे भाई तुम सूर्य कुल की रीति को सत्य प्रतिज्ञ पिता जी की कीर्ति और प्रीति को, समय, समाज और गुरुजनों की लज्जा (मर्यादा) को तथा उदासीन, मित्र और शत्रु सबके मन की बात को जानते हो। तुमको सबके कर्मों (कर्तव्यों) का तथा अपने और मेरे परम हितकारी धर्म का पता है। उन्होंने कहा कि यद्यपि मुझे तुम पर सब प्रकार से भरोसा है, तथापि मैं समय के अनुसार कुछ कहता हूं। हे तात (भाई) पिता के बिना हमारी बात केवल गुरुवंश की कृपा ने ही संभाल रखी है, नहीं तो हमारे समेत, प्रजा, कुटुम्ब, परिवार सभी बर्बाद हो जाते। श्रीराम कहते हैं कि यदि बिना अवसर (संध्या से पूर्व) सूर्य अस्त हो जाए तो कहो जगत में किसको क्लेश नहीं होगा, हे तात उसी प्रकार बिधाता ने यह उत्पात किया अर्थात् राजा दशरथ की असामयिक मृत्यु हो गयी लेकिन मुनि वशिष्ठ और राजा जनक ने सबको बचा लिया। राज्य का सब कार्य, लज्जा, प्रतिष्ठा, धर्म, पृथ्वी, धन, घर-इन सभी का पालन गुरु जी के प्रभाव  अर्थात् सामथ्र्य से होगा और परिणाम भी शुभ होगा।

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