अध्यात्म

हरि अनंत हरि कथा अनंता

लीन्हें सकल विमान चढ़ाई

(शांतिप्रिय-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

प्रभु श्रीराम ने विभीषण से कहा था कि सखा ऐसा कोई उपाय करो जिससे मैं शीघ्र अयोध्या पहुंचूं और भाई भरत से मिलूं। विभीषण ने तब पुष्पक विमान में मणियों और वस्त्रों को भरकर उसे प्रभु के सामने खड़ा कर दिया। प्रभु ने विभीषण से कहा कि आकाश में जाकर इसे पृथ्वी पर गिरा दो। विभीषण ने आज्ञा का पालन किया और वानर-भालुओं में जिसको जो अच्छा लगा वो ले लिया। प्रभु ने वानर भालुओं को बहुत स्नेह से समझाया कि आप लोग अब अपने-अपने घर चले जाओ। इच्छा न होते हुए भी वे सब चले गये लेकिन सुग्रीव, नील, जाम्वबान, हनुमान और विभीषण प्रभु के साथ ही जाना चाहते हैं। भगवान तो प्रेम के प्यासे हैं। उन सभी को विमान में बैठाकर अयोध्या की तरफ पुष्पक विमान से चल पड़े। यही प्रसंग यहां बताया गया है। अभी तो प्रभु श्रीराम वानर-भालुओं से मुखातिब हैं-
चितइ सबन्हि पर कीन्ही दाया, बोले मृदुल बचन रघुराया।
तुम्हरे बलु मैं रावनु मारयो, तिलक विभीषण कहं पुनि सारयो।
निज निज गृह अब तुम सब जाहू, सुमिरेहु मोहि डरपहु जनि काहू।
सुनत बचन प्रेमाकुल बानर, जोरि पानि बोले सब सादर।
प्रभु जोइ कहहु तुम्हहि सब सोहा, हमरे होत बचन सुनि मोहा।
दीन जानि कपि किए सनाथा, तुम्ह त्रैलोक ईस रघुनाथा।
सुनि प्रभु बचन लाज हम मरहीं, मसक कहूं खगपति हित करहीं।
देखि राम रुख बानर रीछा, प्रेम मगन नहिं गृह की ईछा।
प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि।
हरष विषाद सहित चले विनय विविध विधि भाषि।
प्रभु श्रीराम ने सभी वानर-भालुओं पर कृपा दृष्टि से देखकर दया की। फिर वे कोमल बचन बोले-हे भाइयो, तुम्हारे ही बल से मैंने रावण को मारा और फिर विभीषण का राजतिलक किया। अब तुम सब अपने-अपने घर जाओ। मेरा स्मरण करते रहना और किसी से डरना नहीं। ये बचन सुनकर सब वानर प्रेम से विह्वल होकर, हाथ जोड़कर आदरपूर्वक बोले-प्रभु आप जो भी कहें वही आपको शोभा पाता है लेकिन आपके बचन सुनकर हमको मोह होता है। हे रघुनाथ जी आप तीनों लोकों के ईश्वर हैं। हम वानरों को दीन जानकर ही आपने सनाथ अर्थात कृतार्थ किया है। अब प्रभु कह रहे हैं कि तुम लोगों के बल से ही रावण मारा है तो यह सुनकर हम शर्म के मारे मरे जा रहे हैं। हे प्रभु कहीं मच्छर भी गरुड़ का हित कर सकते हैं? इस प्रकार श्रीरामजी का रुख देखकर वानर और रीछ प्रेम में मग्न हो गये। उनकी घर जाने की इच्छा नहीं है लेकिन प्रभु की आज्ञा से सब वानर-भालू श्रीराम जी के रूप को हृदय में रखकर और अनेक प्रकार से विनती करके हर्ष और विषाद सहित अपने-अपने घर को चले।
कपिपति नील रीछपति अंगद नल हनुमान।
सहित विभीषन अपर जे जूथप कपि बलवान।
कहि न सकहिं कछु प्रेम बस भरि भरि लोचन बारि।
सन्मुख चितवहिं राम तन नयन निमेष निवारि।
अतिसय प्रीति देखि रघुराई, लीन्हें सकल विमान चढ़ाई।
मन महुं विप्र चरन सिरु नायो, उत्तर दिसिहि विमान चलायो। चलत विमान कोलाहल होई, जय रघुवीर कहइ सबु कोई।
सिंहासन अति उच्च मनोहर, श्री समेत प्रभु बैठे तापर।
राजत रामु सहित भामिनी, मेरू सृंग जिमि धन दामिनी।
रुचिर विमान चलेउ अति आतुर, कीन्हीं सुमन वृष्टि हरषे सुर।
परम सुखद चलि त्रिविध बयारी, सागर सर सरि निर्मल बारी।
सगुन होहिं सुंदर चहुं पासा, मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा।
कह रघुबीर देखु रन सीता, लछिमन इहां हत्यो इन्द्रजीता।
हनूमान अंगद के मारे, रन महि परे निसाचर भारे।
कुंभकरन रावन द्वौ भाई, इहां हते सुरमुनि दुखदाई।
इहां सेतु बांध्यो अरु थापेउं सिव सुख धाम।
सीता सहित कृपा निधि संभुहि कीन्ह प्रनाम।
जहं जहं कृपा सिंधु बन कीन्ह बास विश्राम।
सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम।
वानर-भालू तो प्रभु की आज्ञा स्वीकार कर अपने-अपने घर चले गये लेकिन सुग्रीव, नील, रीछराज जाम्वबान, अंगद, नील, हनुमान तथा विभीषण समेत कई बलवान वानर सेनापति कुछ कह नहीं पा रहे हैं। वे प्रेमवश नेत्रों में जल भर कर टकटकी लगाए देख रहे हैं। श्री रघुनाथ जी ने उनका अत्यंत प्रेम देखकर सभी को विमान पर चढ़ा लिया। इसके बाद मन ही मन ब्राह्मणों के चरणों में सिर नवाकर उत्तर दिशा की ओर विमान चलाया। विमान के चलते समय बड़ा शोर हो रहा है। सब कोई श्री रघुबीर की जय कह रहे हैं। विमान में एक अत्यंत ऊंचा सिंहासन है उस पर सीता जी समेत प्रभु श्रीरामचन्द्र जी विराजमान हैं। पत्नी सहित श्रीराम जी ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो सुमेरु के शिखर पर बिजली सहित श्याम मेघ हों। सुंदर विमान बड़ी शीघ्रता से चला। देवता हर्षित हुए और उन्होंने फूलों की वर्षा की। अत्यंत सुख देने वाली तीन प्रकार की हवा-शीतल-मंद और सुगंध चलने लगी। समुद्र, तालाब और नदियों का जल निर्मल हो गया। चारों ओर सुंदर सगुन होने लगे। सबके मन प्रसन्न हैं। आकाश और दिशाएं निर्मल हैं। श्री रघुबीर जी ने कहा हे सीते, रणभूमि देखो। लक्ष्मण ने यहां इन्द्र को जीतने वाले मेघनाद को मारा था। हनुमान और अंगद के हाथों मारे गये ये भारी-भारी निशाचर रणभूमि में पड़े हैं। देवताओं और मुनियों को दुख देने वाले कुंभकर्ण और रावण दोनों भाई यहां मारे गये। उन्होंने कहा मैंने यहां पुल बंधवाया और सुखधाम शिव जी की स्थापना की। इसके बाद कृपा निधान श्रीराम जी ने सीता जी सहित श्री रामेश्वर महादेव को प्रणाम किया। वन में जहां-जहां कल्याण सागर श्री रामचन्द्र जी ने निवास किया था, वे सब स्थान प्रभु ने जानकी जी को दिखाए और सबके नाम भी बताए।
तुरत विमान तहां चलि आवा, दंडक वन जहं परम सुहावा।
कुंभजादि मुनिनायक नाना, गए रामु सबके अस्थाना।
सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा, चित्रकूट आए जगदीसा।
तहं करि मुनिन्ह केर संतोषा, चला विमानु तहां ते चोखा।
बहुरि राम जानकिहि देखाई, जमुना कलि मल हरनि सुहाई।
पुनि देखी सुरसरी पुनीता, राम कहा प्रनामु करि सीता।
रामेश्वर के बाद विमान तुरंत वहां आ गया। जहां परम सुंदर दण्डक वन था वहां पर ही अगस्त्य आदि बहुत से मुनिराज रहते थे। श्रीरामजी इन सबके स्थानों पर गये। सभी ऋषियों से
आशीर्वाद पाकर जगदीश्वर श्रीराम जी चित्रकूट आए वहां मुनियों को संतुष्ट किया फिर विमान वहां से तेजी से चला। श्री रामजी ने सीता जी को कलियुग के पापों का हरण करने वाली सुहावनी यमुना जी के दर्शन कराए। इसके बाद पवित्र गंगा जी के दर्शन किये। श्रीराम जी ने कहा हे सीते इन्हें प्रणाम करो। -क्रमशः (हिफी)।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button