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चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों के चंदे से संबंधित चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर को चार याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू की थी।
इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) तथा गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं। सरकार की ओर से दो जनवरी 2018 को अधिसूचित इस योजना को ‘राजनीतिक फंडिंग’ में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत विभिन्न दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉण्ड भारत के किसी भी नागरिक या भारत में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है। केवल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल करने वाले दल चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के पात्र हैं।
अधिसूचना के अनुसार, चुनावी बॉण्ड को पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा। शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2019 में चुनावी बॉण्ड योजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और यह स्पष्ट कर दिया था कि वह याचिकाओं पर गहन सुनवाई करेगी, क्योंकि केंद्र और निर्वाचन आयोग ने ‘महत्वपूर्ण मुद्दे’ उठाए थे, जिनका देश की चुनाव प्रक्रिया की शुचिता पर ‘व्यापक प्रभाव’ था।

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