उद्धव व राजठाकरे को हिन्दी ने जोड़ा

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
राजनीति में भी अजब-गजब हलचल होती रहती है। महाराष्ट्र मंे बाला साहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे पार्टी में उद्धव ठाकरे को ज्यादा महत्व देने के विरोध में शिवसेना से अलग हो गये थे। उन्हांेने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली है। इस बीच उद्धव ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री रहे, तब भी उन्हांेंने अपने चचेरे भाई को खुशी में शामिल नहीं किया। इसके बाद शिवसेना मंे बगावत हो गयी और एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। उद्धव ठाकरे के हाथ से सिर्फ सत्ता ही नहीं छिनी बल्कि पार्टी का चुनाव चिह्न और झंडा भी चला गया। उद्धव ठाकरे के ऐसे दुख में भी राज ठाकरे आंसू पोंछने नहीं आये। अब महाराष्ट्र के स्कूलों में हिन्दी को अनिवार्य बनाने के केन्द्र के फैसले पर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ संघर्ष करने को तैयार हो गये थे। हालांकि महाराष्ट्र में त्रिभाषा नीति पर सरकारी आदेश को रद्द कर दिया गया। इससे 5 जुलाई को एकता मोर्चा नहीं निकलेगा लेकिन उद्धव ठाकरे और राजठाकरे के एक साथ आने की संभावना बन गयी। अब भले ही उद्धव और राज ठाकरे हिन्दी का विरोध कर रहे हैं लेकिन एक बात तो उनको भी माननी पड़ेगी कि हिन्दी लोगों को जोड़ती है। पूरा देश इससे जुड़ा है। राजनीति के चश्मे को उतारकर भी इसे देखना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही मंे आदेश जारी किया था कि मराठी और अंग्रेजी भाषा के स्कूलों मंे कक्षा एक से पांच तक तीसरी भाषा के रूप मंे हिन्दी को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाएगा। इस त्रिभाषा फार्मूले का ही दक्षिण भारत मंे विरोध किया जा रहा है। महाराष्ट्र मंे उद्धव और राजठाकरे के साथ एनसीपी (पवार) के नेता शरद पवार ने भी इस पर विरोध जताया था।
महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के मुद्दे ने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को एक बार फिर साथ आने का मौका दे दिया था। इस मुद्दे को लेकर उद्धव और राज ठाकरे एक साथ आंदोलन करने वाले थे। इसकी जानकारी खुद शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने दी थी। संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में फिलहाल प्राइमरी स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने की बात चल रही है। भाषा के नाम पर बच्चों पर हिंदी भाषा लादी जा रही है। हिंदी भाषा से किसी प्रकार का विरोध नहीं है लेकिन प्राइमरी स्कूलों पर उसे थोपने नहीं देंगे। इस विषय पर राज ठाकरे ने एक भूमिका अपनाई है। वही भूमिका उद्धव ठाकरे की भी है। संजय राउत ने कहा राज ठाकरे के पास सरकार की तरफ से कुछ लोग गए। उन्होंने अपना मत रखा जो राज ठाकरे को पसंद नहीं आया। ठीक उसी समय उन्होंने एक मोर्चा निकालने की घोषणा की। हमें इसके बारे में मातोश्री पर तब जानकारी नहीं थी। मातोश्री से बाहर निकलने के बाद मुझे राज ठाकरे का फोन आया। उन्होंने कहा ऐसी भूमिका है कि उद्धव साहब ने 7 जुलाई को मोर्चा निकालने की बात कही है और मैं 6 जुलाई को निकाल रहा हूं। यह ठीक नहीं लग रहा कि मराठी भाषा को लेकर अलग-अलग मोर्चा निकले। अगर आंदोलन एक साथ किया गया तो इसका ज्यादा असर पड़ेगा और मराठी भाषा के लोगों को भी अच्छा लगेगा। संजय राउत ने कहा राज ठाकरे की पूरी बात सुनने के बाद मैंने कहा ठीक है इस विषय को लेकर मैं उद्धव ठाकरे से बात करता हूं। मैं फिर मातोश्री गया और उद्धव ठाकरे से बात की। उन्होंने बिना कोई समय लिए कहा कि इस विषय पर मराठी व्यक्ति एक साथ दिखे यह आवश्यक हैं लेकिन 6 को आषाढी एकादशी है, पूरे महाराष्ट्र में उसका उत्सव रहता है। इसलिए हमारी बात लोगों तक नहीं पहुंचेगी। क्योंकि मीडिया के लोग भी एकादशी दिखाते हैं। अब या तो वह 7 को हमारे साथ शामिल हो जाएं या हम 5 तारीख को मोर्चा निकाले। मैंने फिर एक बार राज ठाकरे से बातचीत की और उन्हें बताया। उन्होंने तुरंत सहमति जताई। उनका फिर फोन आया और कहा कि हम इसे 5 तारीख को करते हैं, और राजनीतिक एजेंडा से अलग रखकर एक साथ आते हैं। इस प्रकार दोनों का एकत्र मोर्चा और आंदोलन 5 जुलाई को निकलना था। इस बीच मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने भाषा नीति के कार्यान्वयन और आगे की राह सुझाने के लिए शिक्षाविद नरेन्द्र जाधव की अध्यक्षता में समिति बनाने की घोषणाएं कर दीं। ठाकरे बंधुओं का आंदोलन स्थगित हो गया। दोनों ने इसे अपनी जीत बताया।
शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने कहा कि वे राज्य के छात्रों पर हिंदी थोपने के सभी प्रयासों का विरोध करेंगे। अलग-अलग प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने विरोध प्रदर्शन की घोषणा की थी। उद्धव ने कहा था कि भाजपा मराठी भाषी राज्य में भाषा आपातकाल लगाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी हिंदी के विरोध में नहीं है, बल्कि इसे लागू करने के खिलाफ है। उद्धव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हम किसी भाषा का विरोध या उससे नफरत नहीं करते, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम किसी भी भाषा को थोपने की अनुमति देंगे। हम हिंदी थोपे जाने का विरोध करते हैं और यह जारी रहेगा। यदि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस घोषणा करते हैं कि राज्य के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य नहीं की जाएगी तो विवादास्पद भाषा का मुद्दा हल हो सकता है।
स्कूली पाठ्यक्रम में तीसरी भाषा के विवाद पर मुख्यमंत्री फडणवीस ने स्पष्ट किया था कि हिंदी वैकल्पिक है, जबकि मराठी अनिवार्य है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने पिछले सप्ताह एक संशोधित आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवी कक्षा तक के छात्रों को हिंदी सामान्यतः तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाएगी, जिसके बाद विवाद पैदा हो गया। राकांपा (शरदचंद्र पवार) के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि हिंदी को कक्षा एक से अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। प्राथमिक स्तर पर युवा छात्रों पर अतिरिक्त भाषाओं का बोझ डालना उचित नहीं है। पवार ने कहा कि देश का एक बड़ा वर्ग हिंदी बोलता है। इस भाषा को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का कोई कारण नहीं है।
महाराष्ट्र में शिवसेना को लेकर पूर्व में दो बड़े परिवर्तन हुए। पहला जब पार्टी का अंदरूनी मनमुटाव सड़क पर आ गया और नतीजे में दो धड़े के बीच अलगाव देखने को मिला। दो भाइयों के बीच अलगाव के चलते राज ठाकरे के नेतृत्व में मनसे का जन्म हुआ और दूसरी घटना वो, जब एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। अब बरसों बाद राज ठाकरे ने अपने भाई उद्धव के साथ तकरार खत्म करने के संकेत दिए हैं। महाराष्ट्र में कभी एक ही नाम गूंजता था- बाल ठाकरे। बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी और इसके कार्यकर्ता शिवसैनिक कहलाए। बाल ठाकरे के सबसे करीबी माने जाते थे उनके भतीजे राज ठाकरे। लोगों के बीच ये चर्चा थी कि राज ठाकरे में अपने चाचा बाल ठाकरे जैसे ही गुण हैं। उस वक्त तक माना जाता था कि राज ठाकरे ही बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे लेकिन बाला साहेब ठाकरे ने अपने जीते जी उद्धव को शिवसेना का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। राजठाकरे यह बर्दाश्त नहीं कर पाये और दूसरी पार्टी बना ली। अब लगभग 20 साल बाद दोनों के एक होने की संभावना दिख रही है। (हिफी)