विविध

ब्रह्मा के कमण्डल से बही धार है हिन्दी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
लोकप्रिय कवि डा जगदीश व्योम ने हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी को लेकर ठीक ही कहा है कि यह ब्रह्मा के कमण्डल से बही पतित पावनी गंगा है जो सहज ही सबको जोड़ लेती है। दुनिया भर के लोगों को जोड़ने में हिंदी सक्षम है। इसीलिए 14 सितंबर को भारत में हिन्दी दिवस मनाने के साथ 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है।
हर साल हिंदी दिवस एक खास थीम के साथ मनाया जाता है, जो हिंदी भाषा के अलग-अलग पहलुओं और भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालता है।
हिंदी भाषा के सम्मान में, इसकी जरूरत और महत्व पर प्रकाश डालने के लिए हर साल 14 सितंबर के दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस बार राष्ट्रीय हिंदी दिवस 2024 हिंदी भाषा के महत्व और देश में विविध भाषाई समुदायों को एकजुट करने में इसकी भूमिका पर जोर देगा। हर साल हिंदी दिवस पर स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों में प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। साल 2024 खास है क्योंकि यह हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने की 75वीं वर्षगांठ है।
राष्ट्रीय हिंदी दिवस का इतिहास 14 सितंबर, 1949 से शुरू होता है। इस दिन, भारत की संविधान सभा ने देवनागरी लिपि को आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में अपनाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। इससे यह पता चलता है कि 14 सितंबर को हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है। हिंदी को आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में अपनाने का निर्णय भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भाषाई एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जहां कई भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं। पहला हिंदी दिवस 1953 में मनाया गया था और तब से यह हिंदी भाषा को सम्मान देने और बढ़ावा देने के लिए एक वार्षिक उत्सव बन गया है। हर साल हिंदी दिवस एक खास थीम के साथ मनाया जाता है, जो हिंदी भाषा के अलग-अलग पहलुओं और भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में इसकी भूमिका पर केंद्रित होता है। राजभाषा विभाग ने हिंदी दिवस 2024 और अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के लिए उत्सव की तारीखों की घोषणा की है, जो 14 और 15 सितंबर हैं।
हिंदी दिवस के मौके पर स्कूलों, विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थानों में अलग-अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। खासकर स्कूलों में बच्चों से हिंदी दिवस पर निबंध लिखवाए जाते हैं या उनसे कविताएं सुनाने के लिए कहा जाता है। स्कूल में कई तरह की प्रतियोगिताएं भी होती हैं जिनमें बच्चे हिस्सा लेते हैं। विश्व भर में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए और इसे बढ़ावा देने के मकसद से हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के अलावा हिंदी को लेकर दुनियाभर के तमाम देशों में बसे भारतीयों को एक सूत्र में बांधने के लिए भी विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा है शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। ऊंची-से-ऊंची शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने सबसे पहले यूएन में हिंदी में भाषण देकर एक अलग ही पहचान दिलायी थी। अटल बिहारी वाजपेयी को दुनिया एक बेहतरीन राजनेता के तौर पर जानती है। अटल बिहारी बाजपेयी का हिंदी भाषा से काफी लगाव था। इस लगाव और भारतीय होने की पहचान के चलते उन्होंने 1977 में बतौर जनता सरकार के विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में देकर सबके हृदय पर प्रभाव छोड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ था। भारत के लिए यह बेहद गौरवशाली क्षण था। यह पहला मौका था जब यूएन जैसे अतंराष्ट्रीय मंच पर भारत और हिंदी भाषा का मान बढ़ा था। हिंदी में दिए गए इस भाषण से यूएन में आए प्रतिनिधि बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने खड़े होकर भारतीय विदेश मंत्रियों के लिए तालियां बजतीं।
अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण इस प्रकार था-
“मैं भारत की जनता की ओर से राष्ट्रसंघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं। महासभा के इस 32वें अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्रसंघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुनः व्यक्त करना चाहता हूं। जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल 6 मास हुए हैं फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुनः प्रतिष्ठित हो गए हैं जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था वह अब दूर हो गया है। ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे ये सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा। ”अध्यक्ष महोदय वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के साकार होने की संभावना है यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति के लिए कहीं अधिक महत्व रखती है। अंततः हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से नापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज वस्तुतः हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की आश्वस्ति देने में प्रयत्नशील हैं।
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकारय
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकारय
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोलाय
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोलाय
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटीय
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी।
इसी प्रकार संजय जोशी सजग की हिंदी पर कविता है
हम सबकी प्यारी, लगती सबसे न्यारी
कश्मीर से कन्याकुमारी, राष्ट्रभाषा हमारी।
साहित्य की फुलवारी,
सरल-सुबोध पर है भारी।
अंग्रेजी से जंग जारी,
सम्मान की है अधिकारी।
जन-जन की हो दुलारी,
हिन्दी ही पहचान हमारी।
– संजय जोशी ‘सजग’
राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त कहते हैं
करो अपनी भाषा पर प्यार
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पत्नी प्राणाधार,
और प्रकट करते हो जिसमें तुम निज निखिल विचार
बढ़ायो बस उसका विस्तार
करो अपनी भाषा पर प्यार
भाषा विना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दानों से बहुत बड़ा है ईश्वर का यह दान
असंख्य हैं इसके उपकार
करो अपनी भाषा पर प्यार
यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान-प्रसाद,
और तुम्हारा भी भविष्य को देगी शुभ संवाद
बनाओ इसे गले का हार
करो अपनी भाषा पर प्यार।
-मैथिली शरण गुप्त
डा जगदीश व्योम ने तो हिंदी को पतित पावनी गंगा बताया है
मां भारती के भाल का शृंगार है हिंदी
हिंदोस्तां के बाग की बहार है हिंदी
घुट्टी के साथ घोल के मां ने पिलाई थी
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी
तुलसी, कबीर, सूर और रसखान के लिए
ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी
सिद्धांतों की बात से न होयगा भला
अपनाएंगे न रोज के व्यवहार में हिंदी
कश्ती फंसेगी जब कभी तूफानी भंवर में
उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी
माना कि रख दिया है संविधान में मगर
पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी
सुन कर के तेरी आह ‘व्योम’ थरथरा रहा
वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी। – डॉ. जगदीश व्योम (हिफी)

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