छत्तीसगढ़ में चुनावी मुद्दा हिन्दुत्व

छत्तीसगढ़ मंे भाजपा और कांग्रेस दोनो ंने विकास कार्यों के साथ हिन्दुत्व को मुख्य मुद्दा बना रखा है। दोनों दल भारी बहुमत से सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं।
आम चुनाव 2024 से पहले पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए तो महत्वपूर्ण माने ही जा रहे हैं, साथ ही अरविन्द केजरीवल की आम आदमी पार्टी (आप) और सपा, बसपा के लिए भी एक परीक्षा हैं। इन विधानसभा चुनावों से पता चलेगा कि कौन सा चुनावी मुद्दा सफलता दिला सकता है। छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता फिर से हथियाने का प्रयास कर रही है तो कांग्रेस उसे बरकरार रखना चाहती है। मजेदार बात यह कि इन दोनों पार्टियों ने हिन्दुत्व को ही चुनावी मुद्दा बना दिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जहां छत्तीसगढ़ को प्रभु श्रीराम का ननिहाल कहकर विकसित किया और कौशल्या माता का मंदिर बनवाया, वहीं भाजपा ने ईश्वर साहू के नाम पर हिन्दुत्व का कार्ड खेला है। ईश्वर साहू भुवनेश्वर साहू के पिता है जिनकी हत्या इसी साल 8 अप्रैल को की गयी थी। यह मामला धार्मिक विवाद में बदल गया था। माना जा रहा है कि ईश्वर साहू के परिवार को न्याय नहीं मिला। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 85 पर भाजपा ने उम्मीदवार उतार दिये हैं। उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव की मानें तो कांग्रेस अपने प्रत्याशियों का खुलासा पितृपक्ष के बाद करेगी। भाजपा ने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी चुनावी मैदान में उतार दिया है। पार्टी ने किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है। मध्य प्रदेश की तरह पीएम मोदी के नाम पर ही यहाँ भी चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन भाजपा हिन्दुत्व का मुद्दा उठाएगी। पीएम मोदी राज्य को 26 सौ करोड़ की सौगात चुनाव तारीखों की घोषणाओं से ठीक पहले दे चुके हैं।
छत्तीसगढ़ में चुनाव की रणभेरी बज चुकी है।बीजेपी ने 90 में से 85 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है। इस सूची को देखने से लगता है कि छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे को नहीं छोड़ने वाली है। पार्टी द्वारा हिंदुत्व कार्ड खेलने का संकेत लिस्ट में शामिल कई नामों से मिलता है। मसलन- पार्टी ने साजा सीट से ईश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया है। ईश्वर 21 वर्षीय उस भुवनेश्वर साहू के पिता हैं, जिसकी हत्या 8 अप्रैल 2023 को बिरनपुर में कर दी गई थी। बाद में ये मामला धार्मिक विवाद में बदल गया। धार्मिक हिंसा भी हुई। ईश्वर साहू गैर राजनीतिक व्यक्ति हैं, बावजूद इसके बीजेपी ने उन्हें चुनावी मैदान में उतार दिया है। समझा जा रहा है बीजेपी ईश्वर साहू के भरोसे पूरे प्रदेश में हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है। इसके संकेत प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव के बयानों से भी मिलते हैं।अरुण साव राज्य की कांग्रेस सरकार को भूपेश, अकबर ढेबर की सरकार बुलाते हैं। वे कहते हैं कि बिरनपुर में जो हुआ उसे पूरे प्रदेश ने देखा। ईश्वर के परिवार को न्याय नहीं मिला।हक की लड़ाई लड़ने वालों को जेल में डाल दिया गया।अब प्रदेश की जनता भूपेश बघेल सरकार को सत्ता से बाहर करेगी। इतना ही नहीं धर्मांतरण के बाद घर वापसी अभियान के भारत में सबसे बड़े चेहरे रहे दिलीप सिंह जूदेव की राजनीतिक विरासत संभालने वाले प्रबल प्रताप सिंह को कोटा और इसी परिवार की बहूरानी संयोगिता सिंह जूदेव को चन्द्रपुर सीट से प्रत्याशी बनाया गया है।
दूसरी तरफ, बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड का जवाब देने के लिए कांग्रेस ने भी पूरी तैयारी कर रखी है।पिछले पांच सालों में राज्य की कांग्रेस सरकार ने राम वन गमन पथ,कौशल्या माता मंदिर का सौंदर्यीकरण, कृष्ण कुंज और राम मंडिलयों को प्रोत्साहन देने समेत कई योजनाएं शुरू की है। भूपेश सरकार ने काम के साथ ही इसका खूब प्रचार प्रसार भी किया गया। हालांकि बिरनपुर विवाद में मृतक के पिता को बीजेपी द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर कांग्रेस के अपने तर्क हैं। खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस पर बयान दिया। छत्तीसगढ़ में सांप्रदायिकता कभी मुद्दा नहीं बन सकता। बीजेपी किसको टिकट देती है और किसको नहीं, ये उनका अपना नजरिया हो सकता है,लेकिन ये भी सच है कि साजा में उनके और भी कार्यकर्ता थे, लेकिन एक गैर राजनीतिक व्यक्ति को उन्होंने क्यों टिकट दिया, ये उनका लुकआउट है।
छत्तीसगढ़ में चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद सियासी पारा चढ़ चुका है। सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अभी अपने एक भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया कि कांग्रेस के प्रत्याशियों की लिस्ट तैयार है, इसे पितृपक्ष के बाद जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ साथियों का मानना है कि पितृपक्ष के दौरान कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए।
चुनाव में बीजेपी से मुकाबले को लेकर टीएस सिंहदेव कहते हैं फाइट तो हमेशा मान कर चलना चाहिए, किसी भी खेल के मैदान में जब हम उतरते हैं तो यह नहीं मानना चाहिए कि प्रतिद्वंद्वी बिल्कुल कमजोर है।
छत्तीसगढ़ में 2003 से 2018 के बीच 15 वर्षों तक शासन करने वाली भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस ने 2018 विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के पास वर्तमान में 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा में 71 सीटें हैं। पार्टी ने आगामी चुनावों में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार की किसान समर्थक, आदिवासी समर्थक और गरीब समर्थक योजनाओं के दम पर 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। सत्ताधारी दल मुख्यमंत्री बघेल की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में है क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग और ग्रामीण मतदाताओं पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है।कांग्रेस की ताकत राजीव गांधी किसान न्याय और गोधन न्याय योजना सहित कई कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, किसानों और ग्रामीण आबादी के लिए योजनाएं, बेरोजगारी भत्ता के अलावा समर्थन मूल्य पर बाजरा तथा विभिन्न वन उपज की खरीद कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है। मुख्यमंत्री बघेल ने स्थानीय लोगों में अपनी लोकप्रियता बढ़ाते हुए अपनी छवि ‘माटी पुत्र’ के रूप में विकसित की है। ओबीसी और ग्रामीण मतदाताओं पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है। पिछले 5 वर्षों में पार्टी ने बूथ स्तर तक अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया है। राजीव युवा मितान क्लब योजना से जुड़े करीब तीन लाख युवा, मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में पार्टी की मदद कर सकते हैं। हालांकि शराबबंदी और संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित अधूरे वादे विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों के क्रोध का कारण बन सकते हैं। ‘मोदी फैक्टर’ जो भाजपा को प्रतिद्वंद्वी पार्टियों पर बढ़त दिलाता है। आम आदमी पार्टी (आप) और सर्व आदिवासी समाज (आदिवासी संगठनों का एक समूह) के चुनाव में ताल ठोंकने से कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लग सकती है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)