
(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारत त्योहारों का देश है, उत्सवधर्मी है। वर्गों और जातियों का त्यौहार है। विशेष रूप से उत्तर भारत में इसका महत्व अधिक है। यह त्यौहार फरवरी मार्च में और हिन्दी महीने के हिसाब से फाल्गुन-मास की शुक्ल पूर्णिमा को पड़ता है। होली की शुरूआत होली से सवा महीने पहले बसंत पंचमी से ही हो जाती है। बसंत पंचमी के दिन होली जलाने के स्थान को साफ करके उसका पूजन आदि करते हैं और फिर वहां पर एक डंडा गाड़ देते हैं। इसके बाद रोज उसके चारों तरफ घास-फूस, झाड़-झंखाड़, लकड़ी और उपले इक्टठे करते रहते हैं इससे ईंधन का बहुत बड़ा ढेर इक्ट्ठा हो जाता है। उसकी होली जलाई जाती है। होली गाने वाली मंडलियां रोज शाम को वहां जमा होकर खून नाचने गाने का प्रोग्राम करती हैं। इस पूरे समय स्त्रियां भी वहां जमा होती हैं और खूब मौज-मस्ती करती हैं।
होली मनाने का कारण किसानों से भी संबंधित है। इन दिनों फसल पककर तैयार हो जाती है। किसानों का गेहूं-जौ की बालों का आग में भूनकर घर-घर में बांटता है। आम जनता में होली की आग में गेहूं-चने की बालों को भूनकर खाने का रिवाज हैं। इसे शगुन की बात माना जाता है। फसल कटकर किसानों के घर में आ जाती है। मौसम बहुत ही बढ़िया होता है। न ज्यादा सर्दी और न ज्यादा गर्मी यानी सर्दी गर्मी की समानता होती है। ऋतुओं में इस समय बसंत ऋतु होती है। वृक्षों में नई और लाल कोपलें निकल जाती हैं। सर्दियों मंे जो वृक्ष बिना पत्तों के नंगे ठूंठ की तरह हो जाते हैं इसी मौसम में वे सुन्दर नए पत्तों से भर जाते हैं। इन्हीं दिनों में फूल भी अपनी बहार के साथ खिले होते हैं चारेां ओर ऐसा उल्लासपूर्ण वातावरण छा जाने से मानव हृदय झूम उठता है। उसके अंदर प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। बहार के ऐसे रंग भरे वातावरण में मस्त होकर लोग नाचने गाने लगते हैं, एक दूसरे पर अबीर-गुलाल और रंग डालते और खुशियां मनाते हैं।
होली मनाने का एक पौराणिक कारण भी है और इसी के कारण लोगों ने इस त्यौहार को होली नाम दिया है। नहीं तो फसल पकने और बसंत ऋतु में फूलों भरे वातावरण के उपलक्ष्य में तो किसी दिन भी खुशी मनाई जा सकती थी। पौराणिक आख्यानों के अनुसार हिरण्यकश्यप एक राजा था, जो पूर्ण रूप से नास्तिक था। भगवान के नाम से उसे चिढ़ थी। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद ईश्वर का बड़ा भक्त था। जहां पिता अपने राज्य में किसी को भी पूजा-पाठ नहीं करने देता था। वहां उसका पुत्र हर समय भक्ति की ही बातें करता और पूजा-पाठ में ही लगा रहता। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद की भक्ति छुड़ाने के लिए अनेक प्रयत्न किए उसे अनेकों कष्ट दिए। हिरण्य कश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। हिरण्य कश्यप ने सोचा होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर चिता में बैठ जाएगी। वरदान के कारण होलिका तो बच जाएगी और प्रहलाद जलकर भस्म हो जाएगा। ऐसा ही किया गया। चिता तैयार की गई और होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ गई और फिर उसमें आग लगा दी गई लेकिन भगवान अपने भक्तों की सदा ही रक्षा करते हैं। अग्नि का प्रभाव उल्टा ही हुआ। होलिका जलकर राख हो गई और प्रहलाद बाहर आ गया। उसी घटना की याद में आज तक हर वर्ष होलिका का दहन किया जाता है।
पूर्णिमा को होली जलाई जाती है और दूसरे दिन लोग खूब खुशियां मनाते हैं। रंगभरा पानी एक दूसरे पर डालता है। अबीर-गुलाल डालते और एक दूसरे के मुंह पर मलते हैं। होली खेलने के लिए आमतौर पर टेसू के फूलों का रंग बनाया जाता है इस दिन खूब होली के गीत गाए जाते हैं। लोग एक दूसरे की मंगलकामना करते हैं और शाम को नहा-धोकर अपने मित्रों और संबंधियों से मिलने के लिए जाते हैं।
कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध इसी दिन किया था। वृंदावन में इसी की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाता है। बाद मतें इसी पूर्णिमा पर श्रीकृष्ण ने गोप और गोपियों के साथ रासलीला रचाई और दूसरे दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया। कृष्ण भगवान की जन्म भूमि ब्रज की होली आज भी प्रसिद्ध है। कृष्ण और गोपियां इस त्यौहार को बड़े उल्लास से मनाते थे। उसी पर आधारित होली के अनगिनत गीत भी बन गए हैं। होली जलाने के दूसरे दिन को दूलहड़ी कहते हैं और इसी दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है यों तो यह त्योहार सभी जगह पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली प्रसिद्ध है।
होली जलने के दूसरे दिन नंद गांव के गोप एक झंडा लेकर होली खेलने बरसाना गांव जाते हैं। बरसाना मंे राधारानी का मंदिर है। सबसे पहले मंदिर में जाकर पूजा करते हैं और मंदिर के सामने ही झंडा गाड़ देते हैं। फिर होली शुरू होती है। नंद गांव के गोपों को मारती है और गोप अपना बचाव ढालों से करते हैं जो अपने साथ लाते हैं। दूसरे दिन बरसाना के लोग नंद गांव जाते हैं और वहां भी इसी प्रकार की होली खेली जाती है। बरसाना के गोप भी झंडा लेकर आते हैं। होली खेलने के दौरान खूब गीत गाए जाते हैं। रंग-गुलाल का दौर चलता है और बरसाना के गोपों को गोपियां डंडों से मारती हैं तथा बरसाना के गोप वालों द्वारा अपने आप को बचाते हैं। तीसरे दिन दाऊजी के गावं में होली खेली जाती है। गोपियां बाल्टियां भर-भर के रंग और डलियों में गुलाल भर ले जाती हैं। गोपों के ऊपर खूब रंग डाला जाता है। और उनके कपड़े फाड़कर उनकी ही रस्सी बनाकर उन्हें मारती हैं और होली गीत गाती हैं।
इसके दूसरे दिन गोवर्धन पर होली ख्ेाली जाती है। वहीं भी खेलने का वही तरीका होता है। स्त्रियां घूंघट काढ़े हुए ही होली खेलती हैं। खूब रंग गुलाल और डंडे पुरुषों पर बरसाती हैं लेकिन इस बीच कोई भी पुरूष न तो स्त्रियों का घूंघट ही खोल सकता है और न ही उनके शरीर पर हाथ ही लगा सकता है। होली का ही समय होता जब गोपों का बोलबाला रहता है। उन्हें इन दिनों सब प्रकार की छूट रहती है। खूब हंसी मजाक भी पुरुषों से कर सकती हैं।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश सभी स्थानों में होली बहुत उत्साह और हंसी-खुशी के साथ मनाई जाती है। होली पर अच्छे-अच्छे पकवान बनाए जाते हैं। होली खेलने के लिए सब लोग एक दूसरे के यहां जाते हैं और खाते-पीते हैं। होली पर भंग घोटने का भी रिवाज है। दूधिया भंग बनाई जाती है, और टोलियां आने पर सबको पिलाई जाती है। टोली वाले खूब गाते-बजाते हुए आते हैं लेकिन अब आजकल भंग के स्थान पर खराब का दौर चलने लगा है। अब ऐसी टोलियांे का आना भी बंद हो गया है। होली देवर-भाभी का त्यौहार भी माना जाता है। देवर भाभी को फगुवा देता है। उसके लिए साड़ी, ब्लाउज, मिठाई, नमकीन और फल आदि लेकर भेंट करता है। इसके बाद घर के सब लोग गाते-बजाते और नाचते हैं, और अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट भोजन खाते पीते हैं।
फागुन मास की शुक्ल चतुर्दशी को भगवान ने नरसिंह का अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को मारा था और भक्त प्रहलाद की जान बचाई थी इसलिए यह त्यौहार नरसिंह भगवान के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है। कहते हैं कि महादेव शिव ने इसी दिन कामदेव का दहन किया था। होली मनाने का यह भी कारण माना जाता है। होली का इतना हंसी-खुशी का सद्भावना पूर्ण त्यौहार है जिसमें छोटे-बड़े, बूढ़े-बच्चे, गरीब अमीर सभी लोग भाग लते हैं। यही ऐसा त्यौहार है जब सभी एक दूसरे से हंसी-मजाक करते हैं और कोई बुरा नहीं मानता। कालांतर में इसमें कुछ कुरीतियों का समावेश भी हो गया है। जबकि यह सद्भावना और पुराने विवाद भूलकर गले मिलने का त्योहार है। (हिफी)