लेखक की कलमसम-सामयिक

आखिर कब तक अशांत रहेगा मणिपुर?

 

मणिपुर आज से करीब एक साल पहले हुई हिंसा में अभी तक सुलग रहा है. बीता साल मणिपुर के
लिए हिंसा का वह दौर लेकर आया, जिसकी कल्पना भी कभी इस पूर्वोत्तर राज्य ने नहीं की थी। हिंसा के उस आक्रामक दौर को एक साल बीत चुका है।
देश में उत्तर-पूर्व के 7 राज्य सप्तमणी या सेवनसिसटर्स अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से मणिपुर में स्थिति लम्बे समय से काफी गंभीर बनी हुई है। वहां पिछले एक वर्ष से अधिक समय से कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जारी जातीय संघर्ष के परिणामस्वरूप लगभग 230 लोगों की जान जा चुकी है और 65,000 से अधिक लोग बेघर होकर राहत शिविरों में रह रहे हैं।
लगभग 37 लाख की आबादी वाले मणिपुर के इतिहास में कई घटनाएं हुई हैं। अदालत के एक आदेश के बाद तीन मई 2023 को मणिपुर की घाटी और पहाड़ों में रहने वाले दो समुदायों के बीच ऐसी जंग छिड़ गई जिसका आज अंत नहीं हो रहा।
इंफाल समेत पूरी घाटी में रहने वाले मैतेई बहुल इलाकों और घाटी के चारों तरफ पहाड़ों पर रहने वाले कुकी आदिवासी बहुल इलाकों के बीच
़एक अलगाव और घृणा की दीवार बन गयी है।
हिंसा के बाद हिंदू मैतेई बहुल इलाकों से कुकी आदिवासी समाज के लोग अपना घर, जमीन छोड़कर भागने पर विवश हो गए तो वहीं, कुकी बहुल इलाकों में रहने वाले हिंदू सब कुछ छोड़कर या तो इंफाल घाटी लौट आए या राज्य ही छोड़कर दिल्ली समेत दूसरे इलाकों में बसने पर मजबूर हो गए हैं। हालांकि सरकार मणिपुर में हालात सामान्य होने का दावा करती है लेकिन सरकार के दावों के विपरीत राज्य में हिंसा थम नहीं रही है। चालू वर्ष में भी लगातार हिंसा की वारदातों से मणिपुर के हालात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक 17 जनवरी को मोरेह इलाके में उग्रवादियों ने सुरक्षा बलों के वाहन पर हमला करके 2 जवानों को शहीद कर दिया। उग्रवादियों ने सुरक्षा बलों की एक चैकी पर भी बम फेंके और गोलीबारी की। 15 फरवरी को कुकी तथा जो जनजाति की बहुलता वाले चुराचांदपुर जिले में उपद्रवी भीड़ द्वारा एस.पी. और डी. सी. कार्यालयों पर पथराव व आगजनी से 2 नागरिकों की मौत तथा 40 से अधिक घायल हो गए।26 अप्रैल को विष्णुपुर जिले में कुकी उग्रवादियों ने सेंट्रल फोर्स की चैकी पर बमों से हमला कर दिया जिससे 2 जवान शहीद और 2 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।8 जून को जिरीबाम जिले में उग्रवादियों ने 2 पुलिस चैकियों, एक फॉरैस्ट आफिस तथा 70 मकानों को आग लगा कर खाक कर दिया।10 जून को मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के काफिले पर हमले में 2 सुरक्षा कर्मचारी घायल हो गए। यह हमला मुख्यमंत्री के हिंसाग्रस्त क्षेत्र के दौरे पर आने से 2 दिन पहले हुआ था। 14 जुलाई की सुबह भारी हथियारों से लैस संदिग्ध कुकी उग्रवादियों ने जिरीबाम जिले में मैतेई बहुल गांव और सुरक्षा कर्मियों को निशाना बना कर सी.आर.पी.एफ. के जवान अजय कुमार झा की गोली मार कर हत्या तथा 3 अन्य जवानों को घायल कर दिया।आरोप है कि जिस सटीकता से हमले किए गए उससे स्पष्ट है कि आतंकवादी अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे थे। वहीं हाल ही में 16 जुलाई को इंफाल ईस्ट के कोंथा खाबम में एक समाचार पत्र नाहरोलगी थौडांग के संपादक खोइरोम लोयलकपा के आवास पर अज्ञात हमलावरों ने गोलियां चलाई जिससे इलाके में दहशत फैल गई।
इस हिंसाग्रस्त राज्य में हालांकि सरकार द्वारा स्थिति नियंत्रण में बताई जाती है परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत ही प्रतीत होती है तथा उग्रवादियों के कब्जे से तरह-तरह के देसी-विदेशी हथियार बरामद हो रहे हैं।
इनमें 7.62 एम.एम. ए. के. 56 असाल्ट राइफलें, पी.टी. 22 राइफलें, 12 इंच की सिंगल बैरल बंदूकें, इम्प्रोवाइज्ड प्रोजैक्टाइल लांचर, चीनी हैंड ग्रेनेड, 51 एम.एम. मोर्टार, चीनी वाकी टाकी सैट, 1 एस.एल.आर., .38 पिस्टल, ग्रेनेड और एक्सकैलिबर राइफलें, एम.ए.-3, एम.ए.-2 और .45 पिस्टल और 9 एम.एम. पिस्टल आदि शामिल हैं।

हाल ही में मणिपुर के हालात पर टिप्पणी करते हुए पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने कुछ समय पहले कहा था कि मणिपुर में जो हो रहा है, उसमें विदेशी एजेंसियों की संलिप्तता से इन्कार नहीं किया जा सकता।
सीमावर्ती राज्यों में अस्थिरता देश की सुरक्षा के लिए अच्छी नहीं है। अलग-अलग विद्रोही समूहों को मिल रही कथित चीनी मदद कई वर्षों से जारी है। प्रेक्षकों के अनुसार ष्यदि यह सच है कि मणिपुर हिंसा को समस्या बनाने के लिए विदेशी ताकतें शामिल हैं, विशेषकर चीन, जो इन विद्रोही संगठनों को मदद दे रहा है, तो हमें इसकी उपेक्षा न करके इसे गंभीरता से लेना चाहिए। बार-बार संसद में भी विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर मणिपुर का दौरा न करने और मणिपुर हिंसा का समाधान करने के लिए प्राथमिकता न अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं। यहां तक कि सरकार के गठन के बाद पीएम के पहले संसद संबोधन के दौरान भी विपक्ष के सांसद मणिपुर को लेकर नारेबाजी और रोका टोकी करते रहे।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिपुर की लगातार बिगड़ रही स्थिति पर नियंत्रण के लिए लागू किए गए उपायों का समुचित परिणाम नही मिला है। पिछले दिनों विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मणिपुर का दौरा कर की अहम सवाल उठाए थे। हमारा सुझाव है कि प्रधानमंत्री मोदी को स्वयं मणिपुर में स्थलीय दौरा कर लोगों के बीच बने नफरत के जख्मों को भरने का प्रयास करना चाहिए। हमारे पीएम स्वयं एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी शख्सियत है हमारा विश्वास है कि उनका मणिपुर के भोले भाले लोगों के बीच जाना और नफरत भुलाकर शांति लौटाने की अपील करना बेहद सार्थक परिणाम ला सकता है।
अब काफी देर हो चुकी है लेकिन देर आयद दुरूस्त आयद पीएम मोदी को अब से। सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए ताकि इस सीमावर्ती राज्य में सामान्य स्थिति बहाल हो दो जनजातियों के बीच खिची नफरत की दीवारों को गिराकर आपसी भाई चारे और मानवीयता का संदेश देकर प्रदेश में सवा साल से जल रही परस्पर घृणा की आग को ठंडी करने में कामयाबी मिले और देश की सामरिक सुरक्षा व सद्भाव कायम रहे। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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