नीट अभ्यर्थियों को न्याय कैसे मिलेगा?

सरकार अब भी सफाई दे रही है कि परीक्षा में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। लेकिन गौरतलब तथ्य यह है कि इस परीक्षा में व्यापक गड़बड़ी होने के कई तथ्य प्रकाश में आए हैं जिनके आधार पर परीक्षा आयोजन के दौरान पेपर आउट होने और बड़े पैमाने पर परीक्षा में गड़बड़ी होने की आशंका के पर्याप्त आधार हैं।
देश की सबसे बड़ी और कठिन प्रवेश परीक्षा नीट में गड़बड़ी के आरोपों के चलते परीक्षा की शुचिता सवालों के घेरे में हैं। स्नातक स्तर की राष्ट्रीय चिकित्सा प्रवेश परीक्षा नीट यूजी के परिणाम में गड़बड़ी पर हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा। मामला उच्चतम न्यायालय तक भी पहुंचा और अब न्यायालय ने उन विद्यार्थियों की पुनः प्रवेश परीक्षा कराने को कहा है, जिन्हें ग्रेस मार्क दिए गए हैं। यदि वे पुनः परीक्षा देने से बचना चाहें तो उनके ग्रेस मार्क हटा दिए जाएंगे। हालांकि सरकार अब भी सफाई दे रही है कि परीक्षा में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं हुई है।
लेकिन गौरतलब तथ्य यह है कि इस परीक्षा में व्यापक गड़बड़ी होने के कई तथ्य प्रकाश में आए हैं जिनके आधार पर परीक्षा आयोजन के दौरान पेपर आउट होने और बड़े पैमाने पर परीक्षा में गड़बड़ी होने की आशंका के पर्याप्त आधार हैं। पटना में दर्ज एफआईआर और जांच में दर्ज बयान इस सच्चाई को चीख चीख कर कह रहे हैं कि नीट 2024 का पेपर आउट हो गया था लेकिन पिछले कुछ दिनों में पेपर लीक की घटनाएं सामने आने से पहले ही कई राज्यों में किरकिरी करा चुकी सरकार इस बार हर कीमत पर पेपर लीक की बात को नकार कर येन-केन-प्रकारेण मामले को मैनेज करने के लिए कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में तीन दिन पहले ही पद संभालने वाले शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 13 जून को कहा कि न पेपर लीक हुआ, न कोई अन्य गड़बड़ी हुई, फिर भी हम जांच कर रहे हैं। किसी अभ्यर्थी से अन्याय नहीं होने दिया जाएगा।उनका यह बयान खुद ही सवाल खड़े करता है जब जांच से पहले ही वह कह रहे हैं कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई है फिर जांच का नतीजा कैसे सही होगा?
नीट में देशभर से लगभग 24 लाख अभ्यर्थी बैठे थे। इनमें से 1563 अभ्यर्थियों को ग्रेस मार्क दिए गए। क्यों? नीट आयोजित करने वाली एजेंसी राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी ने कहा कि कुछ केंद्रों पर गलती से दूसरा पेपर बंट गया था, उसे वापस लेकर सही पेपर बांटने में कुछ समय लग गया था। अभ्यर्थियों को इस तरह समय खराब होने से कोई नुकसान न हो, इसलिए उन केंद्रों के 1563 अभ्यर्थियों को कुछ अंक कृपा के तौर पर दिए गए हैं। देशभर में प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों का आरोप था कि नीट में गड़बड़ी हुई और कुछ अभ्यर्थियों को अतिरिक्त अंक दे दिए गए, जिससे वे टॉपर बन गए। इस बार रिकॉर्ड 67 अभ्यर्थियों के अंक 720 में से 720 आए हैं, इस पर भी बवाल मचा हुआ है कि आखिर इतने बच्चे एक साथ शत-प्रतिशत अंक कैसे पा सकते हैं? कृपांक भी कितने दिए गए थे 10, 20 या 30 अंक नहीं, बल्कि 100 से 150 अंक तक दे दिए गए थे। ऐसी परीक्षा में 100-150 नंबर की खैरात बांटने से वे अभ्यर्थी मेरिट में आ गए, जो असली नंबरों के सहारे बहुत पीछे रह जाते और जो मेरिट में आने चाहिए थे, वे अभ्यर्थी पिछड़ गए। ऐसी मनमानी पर तो हंगामा होना ही था। सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी ने बताया कि विवाद केवल कृपांक पाने वाले 1563 अभ्यर्थियों पर है। इस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि 23 जून को उनकी पुनः परीक्षा आयोजित की जाए। जिसे अपने टॉपर होने का भरोसा है, वह परीक्षा में बैठ जाए, जो परीक्षा में नहीं बैठना चाहता, वह उन अंकों के आधार पर काउंसिलिंग में शामिल हो सकता है, जो उसे परीक्षा में मिले थे यानी इसमें कृपांक नहीं जोड़े जाएंगे।
24 लाख अभ्यर्थी एक बड़ी संख्या है। ये युवा दो-दो, तीन-तीन वर्ष कड़े अनुशासन में अध्ययन कर तैयारी करते हैं ताकि चिकित्सा की पढ़ाई में उनका दाखिला हो जाए और वे डॉक्टर बनने का अपना और अपने माता-पिता का सपना पूरा कर सकें। यह बात राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी में बैठे अधिकारियों को भी पता है और शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को भी। फिर भला इस तरह की राष्ट्रीय परीक्षा में इतनी बड़ी गफलत कैसे हो सकती है? इस पर उठा विवाद इसलिए भी सही प्रतीत होता है क्योंकि गुजरात की एक लड़की इस परीक्षा में 705 अंक लाई है, जबकि 12वीं की परीक्षा में वह फिजिक्स और केमिस्ट्री में पास भी नहीं हो पाई थी। सवाल उठना ही था कि जो 12वीं की परीक्षा पास नहीं कर पा रही, वह नीट जैसी कठिन परीक्षा में इतने अंक कैसे ला सकती है? परीक्षा में 13 लाख अभ्यर्थी पास हुए, 11 लाख असफल रहे। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि परीक्षा कितनी कठिन रही होगी। दूसरा मामला यह था कि एक ही परीक्षा केंद्र के 8 अभ्यर्थियों के शत-प्रतिशत अंक आए हैं। इस बार एक ही परीक्षा केंद्र से इतने टॉपर कैसे?
यह मामला केवल नीट तक सीमित नहीं है, अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं पर भी इसी तरह के सवाल उठते हैं, उनके पेपर लीक हो जाते हैं, उनमें धांधली होती है। बाद में जांच के नाम पर खानापूर्ति हो जाती है। कहीं -कहीं नकल तो कहीं सीधे घूस देकर मंत्री के इशारे पर भर्तियां। ऐसे घोटालों का युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर कितना दुष्प्रभाव पड़ता है, अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। इसके लिए कुछ कड़े कदम उठाने होंगे कि युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ न हो पाए।
मौजूदा नीट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभ्यर्थियों की याचिका पर पहल तो की है लेकिन बहुत दबे पांव से। एक ओर माननीय न्यायालय ने एनटीए से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई 8 जुलाई को एक महीने का समय दिया है और काउंसिलिंग प्रक्रिया पर कोई रोक नहीं लगाई है। ऐसे में समझा जा सकता है कि प्रतिभाशाली योग्य अभ्यर्थियों पर क्या बीत रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवेश प्रक्रिया पर कोई स्टे नहीं किया है। ऐसे हालात में जब कोई सक्षम जांच एजेंसी को भी इस परीक्षा में गड़बड़ी की जांच के लिए दायित्व नहीं सौंपा गया है तो एनटीए के जवाब से समस्या हल होने वाली नही है। सवाल यह है कि नीट पेपर लीक हुआ या नहीं? इस की जांच सीबीआई या समकक्ष जांच एजेंसी से करानी चाहिए। क्या माननीय न्यायालय इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि लापरवाही या गड़बड़ी करने वाला संस्थान अपनी गड़बड़ी या गलती को स्वयं अदालत के सामने रखेगा? आजकल डिजिटल युग में जहां तमाम रिकॉर्ड आनलाइन कंप्यूटर पर मौजूद है जवाब के लिए एनटीए को एक माह का समय देना स्वयं में एक सवाल है। कैमिस्ट्री और फिजिक्स में एक दो नंबर लाने वाले अभ्यर्थी के नीट में 705 अंक और एक ही परीक्षा केंद्र में आठ बच्चों के फुल मार्क्स आना बड़ा घोटाला और गड़बड़ी का साफ प्रमाण है। माननीय सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की रोजाना सुनवाई कर दूध का दूध पानी का पानी करना चाहिए। सरकार को नाक का बाल न बनाकर तत्काल इस परीक्षा को रद्द कर दोबारा परीक्षा करानी चाहिए ताकि कई-कई साल से तैयारी में जुटे बच्चों को न्याय मिले। (हिफी)
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)