लेखक की कलम

नीतीश की बिहारियों को ईदी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार ईद गत 31 मार्च को सम्पन्न हुआ तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने राज्य के लोगों को ईदी बांट दी। ईद के अवसर पर घर के बड़े बुजुर्ग बच्चों को ईदी देते हैं तो उसी परम्परा को नीतीश कुमार ने भी निभाया। इसके साथ ही उन्हांेने चुनावी समीकरण भी दुरुस्त किये हैं। दरअसल, राज्य में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और सहयोगी दल भाजपा ने कुछ ऐसा माहौल बनाया जिससे लग रहा है कि हिन्दुत्व कार्ड खेला जा रहा है। बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री ने डेरा जमाया तो संघ प्रमुख मोहन भागवत भी बिहार पहुंचे। इससे पहले भाजपा नेता गिरिराज सिंह हिन्दू जागरण यात्रा निकाल चुके थे जिसको हालांकि भाजपा ने उनकी निजी यात्रा बताया था लेकिन यह समझने मंे किसी को दिक्कत नहीं हुई कि ये सभी हिन्दुओं के ध्रुवीकरण के हथकंडे हैं। नीतीश कुमार की पार्टी की तरफ से हल्का विरोध भी हुआ था लेकिन अब मुख्यमंत्री ने ईद पर बिजली उपभोक्ताओं को राहत देकर मुस्लिम भाइयों को संतुष्ट करने का प्रयास किया है।
बिहार के लोगों के लिए ईद के अवसर पर नीतीश सरकार ने बड़ी राहत देते हुए बिजली की दरों में कटौती का ऐलान किया है। यह राहत आम लोगों के लिए किसी ईदी से कम नहीं है। नई दरें लागू हो गई हैं, जिससे राज्य के करोड़ों उपभोक्ताओं को सीधा फायदा होगा। दरअसल बिहार विद्युत विनियामक आयोग ने ग्रामीण और शहरी उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरों में कटौती का ऐलान किया है। ऐसे में आज से 50 यूनिट से अधिक बिजली खपत करने वाले 1.25 करोड़ घरेलू उपभोक्ताओं को 54 पैसे प्रति यूनिट की दर से सस्ती बिजली मिलेगी। वहीं, स्मार्ट प्रीपेड मीटर का उपयोग करने वाले 60 लाख उपभोक्ताओं को 25 पैसे प्रति यूनिट की अतिरिक्त छूट दी जाएगी। अब 1 अप्रैल से प्रदेश के बिजली दरों में कोई बदलाव नहीं होगा। बिजली कंपनियों के औद्योगिक उपभोक्ताओं की दर बढ़ाने के प्रस्ताव को विद्युत विनियामक आयोग ने खारिज कर दिया है। इसका प्रभाव यह हुआ कि ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए एक स्लैब मान लिया गया है और इससे करीब सवा करोड़ विद्युत उपभोक्ताओं को 54 पैसे प्रति यूनिट सस्ती बिजली मिलेगी। वहीं, स्मार्ट मीटर लगा चुके करीब 62 लाख उपभोक्ताओं को 25 पैसे प्रति यूनिट बिजली सस्ती मिलेगी। इतना ही नहीं कोल्ड स्टोरेज के लिए अलग स्लैब रखा गया है। वहीं औद्योगिक उपभोक्ताओं को एक प्रतिशत या 50 हजार रुपये तक ऑनलाइन भुगतान पर छूट मिलेगी। ग्रामीण क्षेत्र के साथ शहरी क्षेत्र में आने वाले उपभोक्ताओं को 1 अप्रैल से बिजली सस्ती मिलेगी। अनुदान में कमी या बढ़ोतरी होती है तो बिजली कंपनी नयी दर जारी करेगी।
बिहार में कुल 2.08 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं, जिनमें 62 लाख स्मार्ट मीटर वाले हैं। वहीं नए फैसले के तहत पोस्टपेड मीटर को हटाकर प्रीपेड मीटर लगाए जाने के दिन से 6 महीने से स्वीकृत बाहर से अधिक खपत करने पर जुर्माना नहीं देना होगा। इसमें नया कनेक्शन लेने वाले उपभोक्ता भी शामिल हैं। इनको भी 6 माह तक अपना लोड देखकर बढ़ाने या घटाने का समय दिया गया है। जिन लोगों के परिसर में 6 महीने पहले स्मार्ट प्रीपेड मीटर लग गया है और उनको जानकारी मिल चुकी है कि स्वीकृत भार से अधिक खपत हो रही है या कम, ऐसे लोगों को अब जुर्माना देना होगा जबकि, अगर उपभोक्ता लोड में बढ़ोतरी या कमी करना चाहते हैं तो सुविधा ऐप के माध्यम से आवेदन दे सकते हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव से पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव को लिटमस टेस्ट माना जा रहा था।अब जब इसके चुनाव परिणाम आ गए हैं तो तेजस्वी यादव के उसे दावे को झटका लगा है जो वह खुद को युवाओं का प्रतिनिधि और आरजेडी को युवाओं की पार्टी कहते रहे हैं। इसकी बानगी पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव परिणाम में दिखी है जिसमें आरजेडी खाली हाथ रह गई है।तेजस्वी यादव के सभी कैंडिडेट्स को हार मिली है और राजनीति के जानकारों की नजर में इस हार के जरिये तेजस्वी यादव के लिए सियासी संदेश भी।
पहली बार पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एक महिला उम्मीदवार अध्यक्ष बनी हैं। वहीं, केंद्रीय पैनल की पांच में से तीन पदों पर लड़कियों ने बाजी मारी है। इनमें अध्यक्ष का पद एबीवीपी को गया है तो कोषाध्यक्ष और संयुक्त सचिव का पद एनएसयूआई के खाते में गया है। महासचिव के पद पर निर्दलीय सलोनी राज ने कब्जा जमाया है तो वहीं, उपाध्यक्ष का पद भी निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में गया। जाहिर है लालू प्रसाद यादव की कर्मभूमि रहे पटना विश्वविद्यालय में उन्हीं की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल पूरी तरह फेल साबित हुई है। हालांकि, इन दिनों उनके पुत्र तेजस्वी यादव पार्टी का नेतृत्व संभाल रहे हैं और उनकी ही लीडरशिप में चुनाव लड़ा गया था, लेकिन राजद का खाता भी नहीं खुल सका। पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन रिजल्ट में आरजेडी का कोई भी कैंडिडेट जीतने में सफल नहीं हो पाया। इस बार अध्यक्ष पद के लिए राजद की समर्थित उम्मीदवार प्रियंका कुमारी, उपाध्यक्ष के लिए नीतीश कुमार, महासचिव के लिए नीतीश कुमार शाह और कोषाध्यक्ष पद के लिए अभय कुमार चुनावी मैदान में थे, लेकिन सभी को हार का सामना करना पड़ा। बता दें कि इससे पहले वर्ष 2022 में हुए छात्र संघ चुनाव में भी राजद के हाथ खाली रह गए थे। हालांकि, इससे पहले 2019 में उपाध्यक्ष पद पर राजद के निशांत यादव जीते थे।अब जब तेजस्वी यादव नौकरी की बात रोजगार की बात और युवाओं के मुद्दों को लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं, बावजूद इसके पटना यूनिवर्सिटी में उनकी आरजेडी की करारी हार उनको सोचने पर विवश कर देगी कि वह आगामी राजनीति के लिए क्या रणनीति अपनाएं। राजद के कैंडिडेट का हाल जरा आंकड़ों से भी समझ लीजिए। एबीवीपी की मैथिली मृणालिनी 596 मतों से चुनाव जीतीं और उन्हें 3524 मत मिले थे। जबकि दूसरे स्थान पर एनएसयूआई के मनोरंजन कुमार रहे जिन्हें 2928 मत मिले जबकि आरजेडी समर्थित प्रियंका कुमारी को 1047 मत ही मिले। वहीं, उपाध्यक्ष पद पर निर्दलीय धीरज कुमार 220 मतों से चुनाव जीते और उन्हें 1789 वोट मिले। दूसरे नंबर पर एनएसयूआई के प्रकाश कुमार को 1569 मत मिले। तीसरे स्थान पर एबीवीपी के शगुन श्रीजल को 1441 मत मिले। जबकि, राजद के नीतीश कुमार को 582 तो जनसुराज के दानिश वसीम को 468 वोट मिले। खास बात यह कि निर्दलीय शशि रंजन को 1439 वोट मिले जो राजद और जन सुराज के संयुक्त मतों से भी अधिक हैं।
एक तरफ जहां राजद के सभी प्रत्याशियों की करारी हार हुई वहीं, इसके इसके उलट दूसरा पहलू यह उभर कर आया कि प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज को युवाओं ने खूब समर्थन दिया है। जन सुराज पार्टी के प्रत्याशियों ने लगभग सभी सीटों पर विरोधियों को करारी टक्कर दी और युवाओं के बीच अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। हालांकि, उनकी पार्टी के भी कोई कैंडिडेट नहीं जीत पाए, लेकिन जिस तरह से उनके उनको युवाओं का सपोर्ट मिला है, वह बिहार के राजनीति के लिए काबिले गौर जरूर है। (हिफी)

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