लेखक की कलम

नेपाल में बगावत के निहितार्थ

भारत के पड़ोसी देश नेपाल में एकाएक जो युवा विद्रोह का तूफान आया है, उसने बेहद चिंताजनक स्थिति पैदा कर दी है। दुनिया का युवा वर्ग सोशल मीडिया से कितना प्रभावित है? वहां कुछ दिन पहले बात सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाए जाने से शुरू हुई थी। इसके विरोध में भारी संख्या में युवक राजधानी काठमांडू की सड़कों पर उतर आए। उन्होंने राजनीतिक नेताओं के घरों पर हमले शुरू कर दिए। ताजा जानकारी के अनुसार आन्दोलनकारियों द्वारा एक पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खानाल की पत्नी राजिल-लक्ष्मी चित्रकार को आग लगाकर जला दिया गया। एक और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर दिओबा के घर में दाखिल होकर आन्दोलनकारियों ने उनकी और उनकी पत्नी से मारपीट की। संसद भवन और कई अन्य इमारतों को आग लगा दी गई। सरकार को सेना बुलानी पड़ी। पुलिस और सेना की गोली से लगभग 30 व्यक्ति मारे गए और 400 से भी अधिक घायल हो गए। इन घटनाओं ने लगी आग को लपटों में बदल दिया, जिस कारण वहां राजनीति अस्थिरता चरम सीमा पर पहुंच गई है। आखिर प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को त्याग-पत्र देने के लिए विवश होना पड़ा और वह देश छोड़ कर किसी सुरक्षित स्थान पर चले गए हैं। ओली ने भी त्याग-पत्र देते हुए सेना को स्थिति सम्भालने के लिए कहा था।
आपको बता दें कि नेपाल का मौजूदा घटनाक्रम बहुत ही खतरनाक मोड़ पर है। एक तरफ वहां की भीड़ का गुस्सा लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली को लेकर है, दूसरी ओर मीडिया का एक धड़ा नेपाल में राजशाही की वापसी या हिन्दू राष्ट्र की वापसी की मांग कर रहा है। जरूरत इस समय मौजूदा घटनाक्रम पर सतर्क निगाह रखने की है। कहीं ऐसा तो नहीं कोई बड़ी ताकत इस घटनाक्रम का फायदा उठाकर नेपाल को अपने नियंत्रण में ले ले। भारत के प्रधानमंत्री की चिंता इसी ओर इशारा करती है। जिसे मीडिया नजरअंदाज कर रहा है।
नेपाल में जो कुछ भी चल रहा है उसके पीछे की वजह तलाशना बहुत जरूरी है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया पर पाबंदियों के खिलाफ तथाकथित जेन-जी द्वारा संचालित नेतृत्वहीन विरोध प्रदर्शनों ने अब अराजकता का रूप ले लिया है।
नेपाल अनुपातन एक छोटा-सा देश है। इसकी जनसंख्या लगभग 3 करोड़ है, परन्तु आश्चर्यजनक बात यह है कि गरीब कहे जाते इस देश के 90 प्रतिशत लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। इसी साधन द्वारा विरोधियों की ओर से सरकारी भ्रष्टाचार को उजागर किया जाता रहा है और यह भी कि वहां रिश्वत का बोलबाला है। लगभग 17 वर्ष पहले वर्ष 2008 में नेपालियों ने हिम्मत दिखाते हुए सैकड़ों वर्ष से चली आ रही राजशाही का अंत कर दिया था। इसमें वामपंथी पार्टियों का बड़ा योगदान था। के.पी. शर्मा ओली भी इस संघर्ष में शामिल थे। उनके साथ-साथ नेपाल में मार्सी नेता पुष्प कमल दहल (प्रचंड) का भी उभार हुआ था। लगभग 10 वर्ष के लम्बे संघर्ष के बाद राजशाही का अंत हो गया था। उसके बाद चाहे वामपंथी पार्टियों का प्रभाव बढ़ गया था परन्तु वहां की राजशाही के समय से ही नेपाली कांग्रेस ने अपनी पूरी पैठ बनाए रखी थी। इस पूरी कशमकश में नया संविधान बनाने के लिए लम्बा समय लगा था। मार्सी नेता पुष्प कमल दहल भी प्रधानमंत्री बने। के.पी. शर्मा ओली जो कि हमेशा से ही चीन पक्षीय रहे थे और अब भी वह चीन का ही दम भरते रहे हैं, प्रधानमंत्री बनते रहे, परन्तु वहां समय-समय पर होते रहे चुनावों में कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत लेकर सरकार बनाने में असमर्थ रही। इसीलिए अब तक भी वहां मिलीजुली सरकार ही चलती रही है। निःसंदेह ओली इसके प्रधानमंत्री रहे हैं परन्तु इसके बावजूद बहुसंख्या में सदस्य नेपाल कांग्रेस के ही रहे हैं। इस बीच ओली पर तानाशाही ढंग से सरकार चलाने का आरोप भी लगता रहा। पिछले कुछ समय में जनरेशन जैड के बैनर तले हामी नेपाल नामक एक संगठन सामने आया जिसने देश में फैली गरीबी और भ्रष्टाचार को अपना मुख्य लक्ष्य बनाकर लोगों को अपने साथ जोड़ने का यत्न किया। लम्बी अवधि से बन रहे संकटमय हालात के दृष्टिगत इस संगठन को भारी समर्थन मिला, परन्तु अब इस संगठन का आन्दोलन हिंसक रूप धारण कर
गया है।
बहरहाल, नेपाल में सेना ने कमान संभाल ली। इसके साथ ही जनरेशन जैड काठमांडू के मेयर बलेन शाह जो कलाकार और इंजीनियर भी हैं और लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे हैं, को यह नया संगठन अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर रहा है। ऐसे अनिश्चित और गड़बड़ वाले हालात में नेपाल के निकट भविष्य के हालात किस तरह के होंगे यह कहना मौजूदा समय में कठिन है परन्तु भारत के लिए नजदीकी पड़ोसी होने के कारण ये हालात चिन्ताजनक जरूर हैं। पिछले कुछ वर्षों से इसके नजदीकी पड़ोसी ऐसे हालात में से ही गुजरते दिखाई दे रहे हैं, जिनमें पाकिस्तान के अतिरिक्त बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका भी शामिल हैं। भारत को इस कारण भी अधिक सचेत रहने की जरूरत होगी, क्योंकि उसी की भांति चीन भी नेपाल का पड़ोसी है और आज शक्तिशाली बन चुके चीन के दशकों से नेपाल के प्रति इरादे क्या हैं, उन्हें भी दुनिया जानती है। निःसंदेह इस समय नेपाल एक बड़े संकट का सामना कर रहा है।
आंदोलन के हिंसक होने के बाद नेपाल जिस तरह से अराजकता की ओर बढ़ा है, वह चिंता का विषय है। युवाओं के नेतृत्व में काठमांडू में भड़के विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली का इस्तीफा हो जाने के बाद जो आंदोलन शांत होना था, वह और भड़क गया जिसका मतलब है उद्देश्य कुछ और है। उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री विष्णु पौडेल को प्रदर्शनकारियों द्वारा पीटा जाना, पूर्व प्रधानमंत्री खनल की पत्नी को आग के हवाले कर देना जैसी घटनाएं खतरनाक हालात के संकेत देने को काफी हैं और अब नेपाल के सेना प्रमुख का बांग्लादेशी विद्रोह की याद दिलाते हुए एक राजनीतिक शून्य के बीच सत्ता संभालने के लिए तैयार हो जाना उनके साथ नेपाल के पहले राजा की तस्वीर कुछ और संकेत दे रही है।
खास बात यह है कि ओली हाल ही में चीन से लौटे हैं और सितंबर के अंत में भारत यात्रा पर आने वाले थे। इस समय यह नतीजा निकालना जल्दबाजी होगी कि इसके पीछे कोई बाहरी ताकत है। लेकिन नेपाल लंबे समय से अस्थिर चल रहा है जिसका फायदा उठाने के लिए अब बाहरी और घरेलू ताकतें सक्रिय हो सकती हैं। नेपाल की मौजूदा अशांति को लेकर कई थ्योरी सामने आ रही हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि ओली चीन समर्थक हैं, इसलिए इसमें अमेरिका की भूमिका हो सकती है, जैसे बांग्लादेश में हुआ था। दूसरी ओर, कुछ का मानना है कि चीन विरोध को भड़का रहा है, ताकि अमेरिका के एमसीसी निवेश को कमजोर किया जा सके।
(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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