घर के पास लगने वाले वृक्षों की महत्ता

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
रिहायशी घरों में कौन-कौन से वृक्ष लगाने चाहिये? कौन से नहीं लगाने चाहिये इस पर भारतीय मनीषियों ने काफी चिन्तन किया है। वृक्ष-वास्तु के अनुसार घर के समीप बेल, अनार, नागकेसर, कटहल और नारियल के यह हमेशा शुभफलकारी होते हैं। जंभीरी, आम, केला, अशोक, शिरसा और चमेली आदि सुगन्धित वृक्ष भी घर के समीप शुभ माने जाते हैं।
मोतिया, चम्पा, केवड़ा, कुन्द, मुनिवृक्ष और आंवले का वृक्ष गृह के समीप अशुभ फलकारी होते हैं चूंकि चम्पा, केवड़ा, (रातरानी) जैसे अत्यधिक सुगन्धित व ठंडक देने वाले पौधों के नीचे जहरीले, सांप व कीड़े आकर रात्रि विश्राम करते हैं इसलिये इन वृक्षों को घर के समीप लगाना उचित नहीं माना जाता।
वास्तु शास्त्र के अनुसार सर्वप्रथम भूखण्ड पर वृक्ष लगाएं उसके बाद गृह का निर्माण करें, अन्यथा वह शुभ नहीं होता।
बगीचे या खेत में पूर्व दिशा की ओर फलवाले वृक्ष लगाने चाहिये क्यांेकि वे उस दिशा में उत्तम फल देते हैं। दक्षिण दिशा में दूध वाले वृक्ष तथा पश्चिम दिशा में पक्ष और उत्पलों से भूषित वृक्ष श्रेष्ठ होते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो वृक्ष स्त्री के नाम से प्रसिद्ध है वे भी घर के नाम से प्रसिद्ध हैं वे भी घर के कामों में वर्जन योग्य है। जैसे मालती, चम्पा, चमेली, जूही इत्यादि। दूध वाले वृक्ष दूध को और फल दाता वृक्ष पुत्रों को नष्ट करते हैं।
वृक्ष कांटों वाला वृक्ष कलह-कारक है। जिस वृक्ष पर कौवा बैठता हो, वह वृक्ष धन का नाश करता है। जिस वृक्ष पर गिद्ध बैठते हों, वह रोग देता है तथा श्मशान का वृक्ष मृत्यु-प्रदाता कहा गया है।
जिस वृक्ष पर बिजली गिरी हो वह भयानक दुर्घटना का सूचक होता है। पवन से दूषित हो वह वातभय को देता है। मार्ग के वृक्ष से कुल का ध्वंस होता है। कुल के वृक्ष से मृत्यु, देववृक्ष से धननाश, चैत्य के वृक्ष से गृहस्वामी की मृत्यु, कुलदेव के वृक्ष से भय होता है।
मनुष्यों को सब प्रकार से उत्तम सुख प्राप्त हो इसके लिये त्याज्य काष्ठ को कभी भी पलंग निर्माण हेतु ग्रहण न करना चाहिए। पूर्वोक्त निषिद्ध वृक्षों की बनवाने से कुल का नाश, व्याधि और शत्रु भय के कारण व्यक्ति को ठीक से निद्रा नहीं आती। शय्या हेतु उत्तम काष्ठ ही प्रयोग करना चाहिए।
अशन, स्पन्दन, चन्दन, हरिद्ध, देवदारू, तिंदुकी, शाल (सागवान) अर्जुन, पद्यक, शाक, आम्र, शिशंया के वृक्ष शय्या के अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।
अशन रोग को हरता है। तिन्दुक की शय्या पित्त करती है। चन्दन की शय्या पित्त करती है। चन्दन की शय्या शत्रु को नष्ट करती है और धर्म, आयु व यश को देती है। शिशंया वृक्ष से उत्पन्न हुई शय्या महान समृद्धि देती है। पद्यक कार्यकं (पलंग) दीर्घ अवस्था तक लक्ष्मी-पुत्र, अनेक प्रकार के घनों को देता हुआ, शत्रुओं का नाश करता है। शाल कल्याण दाता है। शाक और सूर्य के वृक्ष से केवल चन्दन से निर्मित पर्यक जो रसों से जड़ित हो, जिसका मध्य भाग सुवर्ण से युक्त हो, उस पर्यक की पूजा देवता भी करते हैं।
शाक और शाल, देवदारू और श्रीपर्णी शुभ फल दायक होते। कदम्ब और हरिद्रक (हल्द) में भी पृथक-पृथक श्रेष्ठ है। आम्र की शय्या प्राणों को हरती है। अन्य काष्ठ के साथ असन धन के संक्षय (संरक्षण) को करता है। उदुम्बर (गूलर) वृक्ष, चन्दन और स्पंदन शुभ होते हैं। इसमें हाथी दांत का अलंकरण भी शुभ फल देता है।
खुजरी, दाडिमी, केला, बदरी (बेर, बोरटी) और बिजौरा नीम्बू, जिस घर में स्वयं उत्पन्न् होंगे, तो उस पर घर का सर्वनाश कर डालेंगे। वहां कलह रहेगा।
जिस घर में वृक्षों की छाया प्रहर भर (चार घंटे) से ऊपर और दो प्रहर के अन्दर ठहरती हो, उस वृक्ष की निवृत्ति शीघ्र कर देनी चाहिये अर्थात वृक्षों की शाखाएं काट कर छाया की निवृत्ति करा देनी चाहिये।
जिस घर में वृक्षों तथा पताकाओं की छाया प्रथम और अन्तिम प्रहर को छोड़कर दो-तीन प्रहरों तक बराबर रहती हो, तो सदा दुःख देने वाली होती है।
वृक्षों को ग्रीष्म-ऋतु में एक दिन के बाद एक दिन छोड़कर, वृक्षों में जल सींचना चाहिये। वर्षा ऋतु में भूमि सूखने पर ही वृक्षों को जल देना चाहिए।
अधिक जल वाले वृक्षों को जामुन, वेत, वानीर, कदम्ब, गूलर, अर्जुन, बिजौरा, दाख, बड़हर, दाडिम, पन्जुल, मक्तमाल (करंजू), तिलक, कटहल, तिमिर, अटबाज ये सोलह प्रकार के वृक्ष, अधिक जल वाले देश भूमि पर लगाने चाहिये।
वृक्ष लगाने के क्रम में एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष के बीच, बीस हाथ का अन्तर होना चाहिये, सोलह हाथ का अन्तर मध्यम और बारह हाथ अन्तर अधम माना गया है। यदि एक वृक्ष दूसरे वृक्ष के समीप होगा तो दोनों परस्पर स्पर्श करेंगे और दोनों की जड़ें इकट्ठी होंगी। ऐसे में सभी वृक्ष पीड़ित होते हैं तथा अच्छी तरह फल नहीं देते।
जहां कांटे वाले वृक्षों में एक बिना कांटे वाला हो, अथवा बिना कांटे वाले वृक्षों के मध्य एक कांटे वाला वृक्ष हो तो उस वृक्ष से तीन हाथ, पश्चिम दिशा में 360 अंगुल नीचे जल या धन होता है।
कलम लगाने के लिए कटहल, अशोक, केला, जामुन, बड़हर, दाडिम, दाख, पालीवत, बिजौरा, अतिमुक्तक, इन वृक्षों की शाखाओं को लेकर गोबर मंे लीप कर कटे हुये विजातीय वृक्ष की मूल या शाखा पर लगाकर जोड़ दें। वहां नया वृक्ष उत्पन्न हो जायेगा। यही कलम लगाने का विधान है।
एक दिन में फलयुक्त पौधा लगाने के लिए बीज को अंकोल फल के भीतर के जल से भावना देकर छाया में सुखा दें। यह प्रक्रिया कुल सात बार करें। फिर उस बीज को भैंस के गोबर से घिसकर, भैंस के सूखे गोबर के ढेर पर रख दें। उसके बाद ओलों से भीगी हुई मिट्टी में उन बीजों को बोएं तो एक दिन में फलयुक्त पौधा लग जायेगा।
तत्काल तत्क्षण पौधा उत्पन्न करने के लिये अंकोल वृक्ष के फल के कल्क (सार) या तेल से अथवा श्लेषात्मक (लसोड़े) के फल के कल्क या तेल से सौ बार भावना देकर, ओलो से भीगी हुई मिट्टी में जिस बीज को बोएं, वह उसी क्षण पैदा हो जाता है, तथा उसकी शाखा फलों के भार से झुक जाती है।
अधिक शीत, वायु और अधिक धूप लगने से वृक्षों को रोग हो जाता है। रोगी वृक्षों के पत्ते पीले पड़ जाते हैं। अंकुर नहीं बढ़ते, डालियां सूख जाती हैं और रस टपकने लगता है।
रोगी पौधों को सानी हुई मिट्टी में घृत मिलाकर वृक्षों में लेप करें, बाद में दूध मिश्रित जल से सीचें तो वृक्ष रोग मुक्त हो जायेगा।
वृक्ष पर यदि फल न लगे या फल नष्ट हो जाए, तो सबको दूध में डालकर औटाएं बाद में उस दूध को ठंडा करके, उसे वृक्ष में सींचे तो निश्चय ही उस वृक्ष के फल और फूलों में वृद्धि होगी।
भेंड़ और बकरी की मेंगनी का चूर्ण दो आठक, तिल एक आठक, सत्तू एक प्रस्थ, जल एक द्रोण, गौ-मांस एक तुला, इन सबको मिलाकर एक पात्र में सात दिन तक रखें और तत्पश्चात उससे वृक्ष गुल्म व लताओं को सीचें निश्चय ही फल-फूल की वृद्धि होगी।
यदि किसी वृक्ष पर पुष्प कठिनाई से लगते हों तो उस वृक्ष के बीज को घृत लगाये हुये हाथ से चुपड़ कर दूध में डाल दें। इस तरह दस दिन तक करते रहना चाहिए। बाद में उस बीज को गोबर में अनेक बार मलकर छाया में सुखा दें। सूखने पर सूअर और हिरण के मांस का धूप दें। उस बीज को मिल बोकर शुद्ध संस्कारित की हुई जमीन में लगाएं एवं दूध मिश्रित जल से सींचें तो पुष्पयुक्त वृक्ष उत्पन्न होगा। (हिफी)