यूपी की शिक्षा में महत्वपूर्ण बदलाव

(मनीषा-हिफी फीचर)
शिक्षा समाज को संस्कार युक्त बनाती है। समाज में संस्कारों का अभाव ही अपराध और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। इसलिए सरकार का दायित्व भी शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार का होना चाहिए। समय और परिस्थिति के अनुसार शिक्षा में बदलाव भी जरूरी होता है। उत्तर प्रदेश में गत दिनों (25 जून) परिषदीय स्कूलों की शिक्षा में एक बड़ा परिवर्तन किया गया है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आज ज्यादातर लोग कम उम्र से ही अपने बच्चों को निजी स्कूलांे में शिक्षा दिलाने का प्रयास करते हैं।
प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी और केजी से बच्चों की पढ़ाई होती है लेकिन सरकारी स्कूल में कक्षा एक से शिक्षा दी जाती है। अब यूपी में प्राइवेट स्कूलों की भांति परिषदीय विद्यालयों में भी नर्सरी अथवा बाल वाटिका की पढ़ाई होगी। बेसिक शिक्षा विभाग ने इसके लिए एक प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है। इसके तहत प्राइमरी स्कूलों में 5-6 आयु वर्ग के बच्चों के लिए नई व्यवस्था का निर्णय लिया गया है। नई शिक्षा नीति में पहली कक्षा में प्रवेश के लिए बच्चे की आयु कम से कम 6 वर्ष निर्धारित है।
अब इसमें संशोधन किया जाएगा। प्रदेश में शिक्षा की पद्धति और स्कूलों की व्यवस्था में भी काफी रचनात्मक परिवर्तन आया है। अब बच्चों को साफ-सुथरा स्कूल मिला है और वहां लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की भी व्यवस्था है। बच्चों को मुफ्त में कापी-किताबें और यूनिफार्म भी दिया जा रहा है। दोपहर का भोजन मिलता है। इन सब कारणों से 1.93 करोड़ बच्चे अब परिषदीय स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने शिक्षा एवं शिक्षालयों की दशा और दिशा बदलने का प्रण कर लिया है। इसी के तहत सरकार ने प्रदेश के 8800 प्राइमरी स्कूलों में बाल वाटिका (नर्सरी) कक्षाओं के लिए 113.60 करोड़ रुपये स्वीकृत किये हैं। ये ऐसे प्राइमरी और कम्पोजिस्ट स्कूल हैं जिनमें बाल वाटिका के लिए केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के प्रोजेक्ट अप्रूबल बोर्ड ने मंजूरी दे दी है। इसके तहत चयनित सभी प्राइमरी स्कूलों में बाल वाटिका कक्षा के लिए एक-एक ईसीसीई एजूकेटर (अर्ली चाइल्ड हुड केयर एण्ड एजूकेशन अधिकतम 11 माह तक रखे जा सकेंगे। सरकार की तरफ से मानदेय के रूप में इन्हें प्रतिमाह 10313 रूपये दिये जाएंगे। सरकारी स्कूलों में नर्सरी शिक्षा की जरूरत को शिद्दत से महसूस किया जा रहा था और अभिभावक मजबूरी में निजी स्कूलों में अपने बच्चों को नर्सरी और पी नर्सरी की शिक्षा दिलाते थे। इस उम्र में पढ़ने-लिखने से ज्यादा बच्चों को उठना-बैठना और स्कूल के प्रति लगाव सिखाया जाता है।
प्राथमिक स्कूलों के साथ ही योगी सरकार ने राजकीय एवं अनुदानित माध्यमिक स्कूलों में भी आधुनिकीकरण का प्रयास किया है। उत्तर प्रदेश में 2440 राजकीय माध्यमिक स्कूल हैं और 4500 अनुदानित अर्थात सहायता प्राप्त स्कूल हैं। इन दोनों प्रकार के स्कूलों में 416 आईसीटी लैब एवं 759 स्मार्ट क्लास की स्थापना को सरकार ने जून 2025 में मंजूरी प्रदान की है। इससे कक्षाओं के आधुनिकीकरण को पंख लग जाएंगे। सरकार के इस कदम से यूपी के सभी माध्यमिक स्कूलों में कम से कम एक आईसीटी लैब एवं दो स्मार्ट क्लास हो जाएंगे।
योगी आदियत्नाथ की सरकार ने इन दोनों कार्य योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए 43.28 करोड़ रुपये जारी कर दिये हैं। इसमें इन्फार्मेशन एण्ड कम्युनिकेशन टेक्नालाॅजी (आईसीटी) अर्थात सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी लैब या प्रयोगशालाओं के मद में
17.67 करोड़ रुपये तथा स्मार्ट क्लास के मद में 18.21 करोड़ रुपए जारी कर दिये गये हैं।
इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के 100 अनुदानित अर्थात् एडेड माध्यमिक विद्यालयों में आईसीटी लैब की स्थापना के लिए पहली बार 6.40 करोड़ की राशि स्वीकृत की गयी है। माध्यमिक शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक (समग्र शिक्षा) विष्णु कांत पांडेय के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में सरकार का यह बहुत ही बड़ा और दूरगामी कदम है। सबसे खुशी की बात यह है योगी आदित्यनाथ को डबल इंजन सरकार का लाभ मिलता है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भी प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों में आईपीटी लैब एवं स्मार्ट क्लास की स्थापना के लिए अलग से 24.73 करोड़ रुपये स्वीकृत किये हैं। माना जा रहा है कि कुल 471 राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में आईसीटी लैब के लिए 20.94 करोड़ रुपये तथा 158 माध्यमिक विद्यालयों में स्मार्ट क्लास के लिए चार करोड़ रूपये मंजूर किए गये हैं।
वर्ष 2024 की यूपी की वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट (एएसईआर) के अनुसार वर्ष 2022-23 से 2024-25 के बीच माध्यमिक विद्यालयों में प्रवेश स्तर में 23 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इसी प्रकार प्राथमिक स्तर पर अर्थात कक्षा-1 से 5 तक शिक्षा देने वाले स्कूलों में भी 11.5 फीसद की वृद्धि हुई है। अब प्राथमिक स्कूलों में नर्सरी की शिक्षा प्रारंभ होने से प्रवेश संख्या और बढ़ेगी। उच्च प्राथमिक स्तर की कक्षाओं अर्थात कक्षा 6 से 8 में भी 9.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इसका कारण स्कूलों में सुविधाओं का बढ़ाया जाना है।
स्कूलों में सबसे बड़ी समस्या शौचालयों की रहती थी। इससे सबसे ज्यादा परेशानी बालिकाओं को होती थी। प्रदेश के स्कूलों में बालिकाओं के लिए अलग से शौचालय बनाये गये हैं। एसआईआर की रिपोर्ट के अनुसार बालिकाओं के लिए शौचालयों की उपलब्धता में 54.5 फीसद की वृद्धि हो गयी।
अब लगभग सभी स्कूलों में यह व्यवस्था है और लड़कियां अपने को काफी सुरक्षित महसूस करती हैं। स्कूलों में शौचालयों के अभाव में लड़कियां विशेष रूप से स्कूल जाना बंद कर देती थीं। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में 1.93 करोड़ बच्चों को परिषदीय विद्यालयों मंे गुणवत्तापरक शिक्षा दी जा रही है। (हिफी)