स्वतंत्रता दिवस के सबक -1

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हमारे देश को कितनी ही कुर्बानियां देने के बाद 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली थी। इस बात का श्रेय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को अवश्य दिया जाना चाहिए कि रूस, चीन और फ्रांस मंे आजादी पाने के लिए जिस तरह की क्रांति हुईं, लाखों लोगों का कत्ल कर दिया गया और हजारों महिलाओं के साथ घिनौने कृत्य हुए, ऐसे हालात भारत में नहीं हुए। अंग्रेज चले गये लेकिन देश के टुकड़े कर गये और पांच सौ से ज्यादा रियासतों को भी आजादी दे दी। दूसरे शब्दों मंे कहें तो गृह युद्ध का पूरा साजो सामान तैयार कर गये थे। मुस्लिम आबादी के आधार पर पाकिस्तान बना और पाकिस्तान बनाने वालों के नेता मोहम्मद अली जिन्ना नहीं चाहते थे कि उनके देश मंे हिन्दू रहें। इसीलिए हिन्दुओं पर मुसलमानों ने अवर्णनीय अत्याचार किया। इसकी प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक थी। प्रतिक्रिया हुई। इसे भी हम अच्छा नहीं कहेंगे। इसलिए 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हुए हमें अंग्रेजों और मुसलमानों के भारत में आने पर विचार जरूर करना चाहिए। आजादी का दिन है। हम जश्न मनाएं। शहीदों का स्मरण करें लेकिन नयी पीढ़ी को उन गद्दारों के बारे मंे बतायें जिनके चलते भारत से हिन्दू साम्राज्य का अंत हुआ और अंग्रेज यहां आकर जम गये।
इस वर्ष भारत अपनी स्वतंत्रता के 76 वर्ष पूर्ण कर रहा है जिसके उपलक्ष्य में हम आजादी का अमृत महोत्सव पर्व मना रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस के दिन, हम उन सभी महान नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देते हैं और याद करते हैं जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया और जिनकी वजह से आज हम स्वतंत्र हैं। हमें उन हालात का भी विश्लेषण करना चाहिए जिनके चलते हम गुलामी की जंजीर में जकड गये। आजादी से पहले भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था और अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक शासन किया। इससे पहले भी 800 साल तक गुलामी की तरह ही भारत के लोगों ने जीवन बिताया। अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चैहान थे जिनको राजा जयचन्द्र ने गद्दारी करके मोहम्मद गोरी के हाथों कैद करवा दिया था। हालांकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार मुसलमानों के अपमान से बचने के लिए ही पृथ्वी राज चैहान और उनके मित्र चन्द बरदाई ने एक दूसरे को तलवार मारकर जान दे दी थी।हमारे देश में मुगलों का आगमन उसी समय से शुरू हुआ था। मुगलों के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर को कैद करके अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया था लेकिन 1757 में प्लासी के मैदान में अगर नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर ने गद्दारी न की होती तो लार्ड क्लाइव का हौसला पश्त हो जाता और ईस्ट इन्डिया कम्पनी राजा बनने की जगह व्यापारी ही बनी रहती। गुलामी की अवधि के दौरान भारतीयों ने बहुत कष्ट सहन किये और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इसलिए भारतीय इतिहास के उन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानना जरूरी है जिनके कारण पहली बार अंग्रेज भारत आए।
सर्वप्रथम अंग्रेज मुगल काल में भारत आये थे। 31 दिसंबर 1600 को, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को ईस्ट इंडीज के साथ व्यापार करने के लिए ब्रिटिश सम्राज्ञी एलिजाबेथ प्रथम से एक रॉयल चार्टर प्राप्त हुआ था जिसके बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई थी। कंपनी की स्थापना के साथ ही भारत में अंग्रेजों ने अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए थे और इसी के साथ भारत यूरोपीय देशों के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया। यूरोपीय देशों के मध्य भारत में मसालों के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने की होड़ सी लग गई, जिसके परिणामस्वरूप कई युद्ध भी हुए। दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के साथ व्यापार करने के लिए 1600 ई. में जॉन वाट्स और जॉर्ज व्हाईट द्वारा ब्रिटिश जॉइंट स्टॉक कंपनी, जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता है, की स्थापना की गयी थी। प्रारंभ में इस जॉइंट स्टॉक कंपनी के शेयरधारक मुख्य रूप से ब्रिटिश व्यापारी और अभिजात वर्ग के लोग थे और ईस्ट इंडिया कंपनी का ब्रिटिश सरकार के साथ कोई सीधा संबंध नहीं था। माना जाता है कि 24 अगस्त, 1608 को व्यापार के उद्देश्य से भारत के सूरत बंदरगाह पर अंग्रेजों का आगमन हुआ था, लेकिन 7 वर्षों के बाद सर थॉमस रो (जेम्स प्रथम के राजदूत) की अगवाई में अंग्रेजों को सूरत में कारखाना स्थापित करने के लिए शाही फरमान प्राप्त हुआ। इसके बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी को मद्रास में अपना दूसरा कारखाना स्थापित करने के लिए विजयनगर साम्राज्य से भी इसी प्रकार का शाही फरमान प्राप्त हुआ था। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से अन्य यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों को भारत से बाहर खदेड़ दिया और अपने व्यापारिक संस्थाओं का विस्तार किया। अंग्रेजों ने भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में कई व्यापारिक केंद्र स्थापित किए और कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास के आसपास ब्रिटिश संस्कृति को विकसित किया गया। अंग्रेज मुख्य रूप से रेशम, नील, कपास, चाय और अफीम का व्यापार करते थे।
व्यापार के दौरान अंग्रेजों ने देखा कि भारत सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर बिलकुल ही अस्त-व्यस्त है तथा लोगों में आपसी मतभेद है और इसी मतभेद को देखकर अंग्रेजो ने भारत पर शासन करने की दिशा में सोचना प्रारंभ किया था।सन 1750 के दशक तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था। 1757 में प्लासी की लड़ाई में रॉबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित कर दिया था। इसके साथ ही भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित हो गया था। ध्यान देने की बात यह है कि 2 जुलाई 1757, प्लासी की लड़ाई में हार के बाद, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला एक धोखे के चलते मारे गए जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में एकछत्र राज हो गया। करीब 50 हजार सैनिक, 500 हाथी और 50 तोपों से लैस उनकी सेना, ईस्ट इंडिया कंपनी के करीब 3000 सैनिकों से हार गई थी। सिर्फ इस एक धोखे की बदौलत। उनको ये धोखा उनके ही प्रधान सेनापति मीर जाफर ने दिया।
करीब 50 हजार सैनिक, 500 हाथी और 50 तोपों से लैस नवाब सिराजुद्दौला की सेना, ईस्ट इंडिया कंपनी के करीब 3000 सैनिकों से हार गई थी। सिर्फ इस एक धोखे की बदौलत। उनको ये धोखा उनके ही प्रधान सेनापति मीर जाफर ने दिया।
मुगलकालीन बंगाल सूबे में आधुनिक पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, बिहार और ओडिशा शामिल थे। इस सूबे की राजधानी मुर्शिदाबाद थी। तब मुर्शिदाबाद की चकाचैंध तत्कालीन लंदन शहर से भी ज्यादा थी। इस शहर के बारे में ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव ने लिखा, ‘मुर्शिदाबाद लंदन जितना बड़ा, आबाद और समृद्ध शहर है। अंतर सिर्फ इतना ही है कि लंदन में जितनी दौलत एक अमीर आदमी के पास है उससे कहीं ज्यादा दौलत यहां अनेक लोगों के पास है।’ दिल्ली में बैठे मुगल बादशाह फारुख सियार से शाही फरमान मिलने के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता के फोर्ट विलियम में अपना व्यापार शुरू किया। इस व्यापार के दम पर कंपनी यहां अपने कदम जमाने की कोशिश भी कर रही थी। इन सब गतिविधियों के बीच बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान का निधन हो गया। वो तब 80 साल के थे। -क्रमशः (हिफी)