भारत ने यूएनएससी की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सहायक इकाइयों में अधिक पारदर्शिता’’ लाए जाने की मांग की है। इसके साथ ही 80 साल पुरानी यूएनएससी की ुरानी व्यवस्था को पुनर्गठित करने की जरूरत बतायी है। मौजूदा यूएनएससी की इकाइयों और व्यक्तियों को नामित करने के अनुरोधों को अस्वीकार करने के ‘‘अस्पष्ट’’ तरीके का हवाला दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कार्यप्रणाली पर खुली बहस को संबोधित करते हुए यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत परवथनेनी हरीश ने कहा कि सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र की संरचना में केंद्रीय व्यवस्था है, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रखरखाव की जिम्मेदारी वाले मुख्य अंग के रूप में कार्य करती है। एक संयुक्त राष्ट्र अंग के रूप में इसके कार्यक्षेत्र की सीमा विभिन्न क्षेत्रों को कवर करती है, लेकिन सदस्यता केवल 15 सदस्यों तक सीमित है। इसलिए इसका विस्तार होना चाहिए, क्योंकि यह सुरक्षा परिषद की कार्यप्रणाली इसकी विश्वसनीयता, प्रभावशीलता, दक्षता और पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है।
हरीश ने कहा,यूएनएससी की सहायक इकाइयों के कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता होनी चाहिए, जोकि अभी नहीं है। इसका एक उदाहरण उसके द्वारा नामांकन अनुरोधों को अस्वीकार करने का तरीका है। डि-लिस्टिंग निर्णयों के विपरीत, ये एक काफी अस्पष्ट तरीके से किए जाते हैं, जिसमें परिषद में न होने वाले सदस्य देशों को विवरणों की जानकारी नहीं दी जाती। हरीश ने यह भी इंगित किया कि परिषद की समितियों और सहायक इकाइयों के अध्यक्षों और पेन-होल्डरशिप विशेषाधिकार हैं जो बड़ी जिम्मेदारियों के साथ आते हैं।‘‘परिषद में अध्यक्षों और पेन-होल्डरशिप के वितरण पर चर्चाओं में परिषद के सदस्यों को उनके स्वार्थी हितों के कारण इन विशेषाधिकारों को प्रदान करने से रोका जाना चाहिए।भारत ने कहा कि स्पष्ट और प्रत्यक्ष हितों का टकराव परिषद में कोई स्थान नहीं रख सकता। उन्होंने परिषद की सदस्यता के स्थायी और गैर-स्थायी दोनों श्रेणियों में विस्तार पर जोर दिया।



