लेखक की कलम

चीन से दोस्ती व वफा की उम्मीद न करे भारत

अमेरिका के साथ व्यापार रिश्तों में कड़ुवाहट के बाद भारत का झुकाव चीन की ओर बढ़ा है लेकिन चीन एक बार फिर अपनी विस्तारवादी नीति, उकसावे की भाषा और ऐतिहासिक तथ्यों की मनमानी व्याख्या के सहारे भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना बढ़ गयी है। शंघाई एयरपोर्ट पर भारतीय मूल की महिला पैमा यांगजोम घोंगडोक के साथ हुए व्यवहार पर भारत द्वारा दर्ज किए गए कड़े विरोध के बाद चीन की जो प्रतिक्रिया आई, वह न केवल अस्वीकार्य है. बल्कि अंतरराष्ट्रीय मर्यादाओं का भी खुला उल्लंघन करती है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग का यह कहना है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है, एक बार फिर यह साबित करता है कि बीजिंग ने तथ्यों, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और कूटनीतिक शालीनता से ऊपर अपनी साम्राज्यवादी सोच को रखा है।
भारत की आपत्ति बिल्कुल वैध है, क्योंकि किसी भारतीय नागरिक को सिर्फ इसलिए इनवैलिड पासपोर्ट का हवाला देकर रोका जाए कि उसका जन्मस्थान अरुणाचल प्रदेश है, यह चीन की मानसिकता को उजागर करने के लिए काफी है। पूरे मामले की शुरुआत पेमा वांगजोम के उस सोशल मीडिया पोस्ट से हुई, जिसमें उन्होंने बताया कि 21 नवंबर को लंदन से जापान जाते समय शंघाई एयरपोर्ट पर चीनी इमिग्रेशन ने उनके पासपोर्ट को इनवैलिड बताकर रोका। केवल इसलिए कि जन्मस्थान की कॉलम में अरुणाचल प्रदेश, भारत लिखा था। यह घटना कोई तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि चीन की लंबे समय से अपनाई गई रणनीति, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अरुणाचल की भारतीय पहचान को चुनौती देने का एक और उदाहरण है। भारत ने सही ढंग से चीन की इस कार्रवाई पर कड़ा विरोध दर्ज कराया और इसे बेतुका, अवैध और उत्पीड़क बताया। लेकिन जवाब में चीन ने न केवल अपनी गलती मानने से इंकार किया, बल्कि उल्टे अरुणाचल पर अपना दावा दोहराकर भारत को उकसाने की कोशिश की।
अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और यह बात ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और संवैधानिक रूप से निर्विवाद सत्य है। चीन द्वारा बार-बार उसके अस्तित्व को चुनौती देना केवल कूटनीतिक अशिष्टता नहीं, क्षेत्रीय अस्थिरता को भड़काने का प्रयास है। भारत का यह कहना बिल्कुल सही है कि एक यात्री को जन्मस्थान के आधार पर रोकना न सिर्फ बेतुका है बल्कि अंतरराष्ट्रीय विमानन व वीजा मानदंडों के खिलाफ भी है। चीन का यह रवैया बताता है कि उसकी विस्तारवादी नीतियां अभी बरकरार हैं, चाहे वह दक्षिण चीन सागर हो, ताइवान हो या फिर अरुणाचल प्रदेश। बार-बार ये बयान और ऐसे उत्पीड़क कदम इस बात का संकेत हैं कि बीजिंग वास्तविकता स्वीकारने को तैयार नहीं है लेकिन भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह कड़े व स्पष्ट कूटनीतिक रुख के साथ दुनिया के सामने चीन की मनमानी व आक्रामकता को उजागर करता रहे। इस घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि सीमा विवाद से परे भी चीन की नीति में भारत विरोध की गहरी जड़ें हैं। दुनिया इसे समझ रही है और भारत को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों के प्रश्न पर किसी भी प्रकार का समझौता न करे। यह इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि चीन आए दिन अरुणाचल पर अपना दावा करता रहता है।
दरअसल चीन अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपना बताता है. वह इस क्षेत्र को चीनी भाषा में जांगनान कहता है और बार-बार दक्षिण तिब्बत का जिक्र करता है। चीन के मैप या मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा दिखाया गया है। वो कभी-कभी इसका तथाकथित अरुणाचल प्रदेश के रूप में उल्लेख करता है। चीन समय-समय पर भारतीय क्षेत्र पर अपने एकतरफा दावे को पुष्ट करने का प्रयास करता रहता है। सिर्फ इतना ही नहीं, अरुणाचल प्रदेश के स्थानों को चीनी नाम देता रहा है। इसी साल मई महीने में अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों के नाम बदलने का बेतुका काम किया था। विस्तारवादी चीन ने अरुणाचल में 27 जगहों के नाम बदले थे। चीन ने ये नाम चीनी यानी मैंडेरिन मंदारिन भाषा में रखे थे। चीन ने इन जगहों की सूची ग्लोबल टाइम्स अखबार की वेबसाइट पर जारी की थी। चीन ने बीते आठ सालों में अरुणाचल प्रदेश की 90 से ज्यादा जगहों के नाम बदले हैं। चीन द्वारा अरुणाचल के नाम बदलने पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। दरअसल पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में मैकमोहन लाइन की कानूनी स्थिति को लेकर विवाद है। यह तिब्बत और ब्रिटिश भारत के बीच की सीमा है, जिस पर 1914 के शिमला सम्मेलन में सहमति बनी थी, जिसे आधिकारिक तौर पर ग्रेट ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच सम्मेलन कहा जाता है। शिमला सम्मेलन में चीन का प्रतिनिधित्व चीन गणराज्य के एक महादूत द्वारा किया गया था। उसे 1912 में किंग राजवंश के पतन के बाद महादूत घोषित किया गया था। वर्तमान साम्यवादी सरकार 1949 में ही सत्ता में आई थी। चीनी प्रतिनिधि ने शिमला कन्वेंशन पर सहमति नहीं जताते हुए कहा कि तिब्बत को अंतरराष्ट्रीय समझौता करने का कोई अधिकार नहीं है। शिमला में मुख्य ब्रिटिश वार्ताकार हेनरी मैकमोहन थे। उन्हीं के नाम पर मैकमोहन लाइन का नाम रखा गया। यह लाइन भूटान की पूर्वी सीमा से चीन-म्यांमार सीमा पर इसु रजी दरें तक खींची गई थी। चीन मैकमोहन लाइन के दक्षिण में अरुणाचल प्रदेश में स्थित क्षेत्र पर अपना दावा करता है। अपने दावों का आधार तवांग और ल्हासा के मठों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को भी मानता है।
चीन इसे एक तरह की दबाव की रणनीति के रूप में देखता है। यह बीजिंग की प्रोपेगंडा वाली विचारधारा का हिस्सा है, जिसके तहत जब भी कोई भारत का सेलेब्रिटी अरुणाचल प्रदेश का दौरा करता है, तो वह नाराजगी भरे बयान जारी करता है। हालांकि अरुणाचल प्रदेश के साथ भारत की संप्रभुता की मान्यता पूरी दुनिया में स्थापित है। अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में भी अरुणाचल प्रदेश भारत के हिस्से के तौर पर देखा जाता है। विदेशी मीडिया में भी इस बात को लेकर कभी किसी तरह की कोई कंफ्यूजन नहीं रही, लेकिन चीन तिब्बत के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करने की कोशिश करता रहा है। दूसरी तरफ भारत ने हमेशा शांतिपूर्ण कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करते हुए सीमा विवादों के समाधान की कोशिश की है। चीन को समझना होगा कि इस प्रकार की घटिया हरकत से उसको कुछ हासिल होने वाला नहीं है। अरुणाचल हमेशा से भारत का अभिन्न हैं और रहेगा। भारत उसकी हर घटिया हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने में समक्ष है। (मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button