बंकर बस्टर मिसाइल की तरफ भारत

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हमारे राष्ट्रीय कवि रामधारी ंिसह दिनकर ने लिखा है-
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल है।
उसका क्या जो दंतहीन
विषहीन, विनीत, सरल है।।
अर्थात् हम हर प्रकार से सक्षम हैं, तभी हमारी विनम्रता को सराहा जाएगा अन्यथा लोग उसे कायरता समझेंगे। इसीलिए भारत के लक्ष्य में अब देश के अंदर ही ऐसी युद्ध सामग्री बनाने की बात भी शामिल है जो आज विकसित देशों के पास ही है। अभी पिछले दिनों ईरान के संवर्द्धित यूरेनियम भंडार को नष्ट करने के लिए अमेरिका ने बंकर बस्टर्ड बम गिराये थे। अमेरिका को अपने लक्ष्य में सफलता मिली हो या न मिली हो लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में ही बंकर बस्टर मिसाइल बनाने की तैयारी कर ली है। इसके साथ ही हमारे देश मंे स्पाई एयर क्राफ्ट, एडवांस माइंस स्वीपर बन चुके हैं। सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस अग्नि-5 और भारतीय डिफेन्स सिस्टम आकाश ने पूरी दुनिया मंे अपनी धमक दिखा दी है। अफ्रीकी देश घाना की राजकीय यात्रा पर पहुंचे प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी से वहां की सरकार ने रक्षा सामग्री खरीदने की इच्छा जतायी है। हमारा देश आज दुनिया के 50 देशों में रक्षा सामग्री का निर्यात कर रहा है। इसलिए हमें निर्माण की दिशा में भी निरंतर आधुनिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय रक्षा उत्पादनों की चर्चा पूरी दुनिया में है। खासकर सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस और भारतीय डिफेंस सिस्टम आकाश ने जो काबिलियत दिखाई है उससे दुनिया हैरान है। इसके बाद से भारत की ओर से और बड़े सैन्य डील की संभावना जताई जा रही थी। कहा जा रहा था कि भारत को अब पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स की खरीद करना चाहिए लेकिन, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह फिलहाल किसी अन्य देश से फाइटर जेट खरीदने की बजाय खुद का अपना 5जी जेन फाइटर जेट बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसी क्रम में भारत सरकार ने एक और बड़ा निर्णय लिया है। इसके लिए सरकार ने खजाना खोल दिया है। सरकार ने तीन बड़े और सात अन्य खरीद को मंजूरी दी है। इसमें स्पाई एयरक्राफ्ट, एडवांस माइन्स स्वीपर और त्वरित एक्शन लेने वाले डिफेंस सिस्टम की खरीद को मंजूरी दी गई है। सबसे बड़ी बात ये है कि ये हथियार देश में ही विकसित किए गए हैं। इसमें 12 माइन काउंटरमेजर्स वेसल्स हैं। इसकी कीमत करीब 44 हजार करोड़ है। ये स्पेशलाइज्ड वारशिप हैं। ये 900 से 1000 टन डिस्प्लेस्मेंट क्षमता के हैं। ये समंदर में पानी के भीतर बिछाई गई माइन्स को तबाह करने के लिए हैं। जंग के दौरान दुश्मन सेना आमतौर पर समंदर के भीतर माइन्स बिछा देती है जिससे कि बंदरगाहों और जहाजों को बाधित कर दिया जाए। भारत के भौगोलिक स्थिति और चीन-पाकिस्तान के बीच गहराते सैन्य रिश्ते को देखते हुए इस माइन्स स्वीपर की जरूतर महसूस की जा रही थी। मौजूदा वक्त में नौसेना क्लिप ऑन माइन काउंटरमेजर्स सूट्स का इस्तेमाल करती है। ये सूट्स कुछ जहाजों में लगे रहते हैं लेकिन अब एडवांस माइन्स स्वीपर हमारे युद्ध पोतों और पनडुब्बियों के आगे-आगे चलेंगे और उनको सुरक्षित मार्ग उपलब्ध करवाएंगे। इसके साथ ही सरकार ने 36 हजार करोड़ खर्च कर क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल खरीदने को मंजूरी दी है। इसे डीआरडीओ ने डेवलप किया है। थल सेना और एयरफोर्स के इन मिसाइलों के तीन-तीन क्वायड्रन मिलेंगे। भारतीय सेना ने इसके 11 रेजिमेंट्स की जरूरत बताई है। इन मिसाइलों को बड़े आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। इनको दुश्मन देश के फाइटर जेट, हेलीकॉप्टरों और ड्रोन को 30 किमी की दूरी से इंटरसेप्ट करने के लिए बनाया गया है। इससे देश की मल्टी लेयर डिफेंस सिस्टम को और मजबूती मिलेगी। इस डिफेंस सिस्टम में पहले से ही एस400 और आकाश डिफेंस सिस्टम हैं।
भारत अपनी खुद की बंकर बस्टर मिसाइल बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है। ईरान के फोर्डो परमाणु संयंत्र के खिलाफ अमेरिका द्वारा बंकर बस्टर्स तैनात किए जाने के बाद भारत उन्नत बंकर-बस्टर क्षमताओं को विकसित करने के अपने प्रयासों को तेज कर रहा है। हाल के वैश्विक संघर्षों से सबक लेते हुए देश भविष्य के युद्धों के लिए एक शक्तिशाली नई मिसाइल प्रणाली का निर्माण करने की तैयारी कर रहा है जो कि भूमिगत लक्ष्यों को भेदने में सक्षम हो। इसमें एक दिलचस्प मोड़ है। भारत अपनी अग्नि-5 मिसाइल में संशोधन करके ऐसा करना चाहता है। अमेरिका ने ईरान में फोर्डो परमाणु संयंत्र पर हमले में बोइंग द्वारा डिजाइन और अमेरिकी वायु सेना द्वारा निर्मित अपने जीबीयू एण्ड 57ए/बी मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर का इस्तेमाल किया था। लेकिन भारत जिस हथियार को विकसित करना चाहता है, उसके बारे में जानते हैं। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) अग्नि-5 अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का संशोधित संस्करण विकसित कर रहा है। मूल संस्करण के विपरीत जिसकी रेंज 5000 किलोमीटर से अधिक है और जो आमतौर पर परमाणु हथियार ले जाता है। नया संस्करण एक पारंपरिक हथियार होगा जो 7500 किलोग्राम के विशाल बंकर-बस्टर वारहेड ले जाने में सक्षम होगा। कंक्रीट की परतों के नीचे दबी दुश्मन की कठोर संरचनाओं पर हमला करने के लिए डिजाइन की गई इस मिसाइल के विस्फोट से पहले जमीन के नीचे 80 से 100 मीटर तक प्रवेश करने की उम्मीद है। यह घटनाक्रम भारत की अमेरिका की क्षमताओं से मेल खाने की इच्छा को दर्शाता है। अमेरिका ने हाल ही में ईरानी परमाणु ढांचे के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन में 14 जीबीयू-57-दुनिया के सबसे बड़े पारंपरिक बंकर-बस्टर बमों का इस्तेमाल किया था। जीबीयू-57 और इसके पूर्ववर्ती जीबीयू-43 (जिसे सभी बमों की मां के रूप में जाना जाता है) ने गहरे पैठ वाले हथियारों के मामले में मानक स्थापित किए हैं। भारत के स्वदेशी संस्करण का लक्ष्य और आगे जाना है। अमेरिका की तरह डिलीवरी के लिए बड़े महंगे बमवर्षक विमानों पर निर्भर रहने के बजाय भारत अपने बंकर बस्टर को मिसाइल से डिलीवर करने के लिए डिजाइन कर रहा है जो अधिक लचीला और लागत प्रभावी प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
अग्नि-5 के दो नए संस्करण कथित तौर पर विकसित किए जा रहे हैं। एक में जमीन के ऊपर के लक्ष्यों के लिए एयरबर्स्ट वारहेड की सुविधा होगी, जबकि दूसरा एक गहरी पैठ वाली मिसाइल होगी जिसे कठोर भूमिगत ढांचे में घुसने के लिए डिजाइन किया गया है। प्रत्येक हथियार का वजन आठ टन तक हो सकता है, जो उन्हें विश्व स्तर पर सबसे शक्तिशाली पारंपरिक हथियारों में से एक बनाता है। मूल अग्नि-5 की तुलना में नए संस्करणों की मारक क्षमता 2500 किलोमीटर कम होने के बावजूद उनकी विध्वंसक क्षमता और सटीकता के कारण उन्हें भारत के सामरिक शस्त्रागार में एक दुर्जेय हथियार माना जा रहा है। वे विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन जैसे विरोधी देशों के कमांड एवं नियंत्रण केंद्रों, मिसाइल साइलो और महत्वपूर्ण सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। इन मिसाइलों की गति मैक 8 से मैक 20 के बीच होने की उम्मीद है, जो इन्हें हाइपरसोनिक हथियार की श्रेणी में रखता है। ये अमेरिकी बंकर-बस्टर प्रणालियों की वेलोसिटी के बराबर हैं, लेकिन इनकी पेलोड क्षमता काफी
अधिक है। (हिफी)