सम-सामयिक

अंतरिक्ष में भारत की ‘शुभ’ उड़ान

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला का अपने साथियों के साथ एक्सिओम 4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचना प्रत्येक देशवासी के लिए गर्व का पल है। उनकी इस सफलता से हर एक देशवासी खुद को गर्वांवित महसूस कर रहा है, क्योंकि इस उड़ान के साथ ही देश के 1.4 अरब से ज्यादा लोगों की उम्मीदें और महत्वाकांक्षाएं भी जुड़ी हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 15 अगस्त, 1969 को अस्तित्व में आने के बाद अनेक सफलताएं अर्जित की हैं। यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान में भारतीय मूल की 2 अंतरिक्ष यात्रियों ने विशेष पहचान बनाई है। अमरीकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (नासा) से जुड़ी भारतीय मूल की कल्पना चावला ने 1997 में अंतरिक्ष यान कोलंबिया में उड़ान भरी। पहली उड़ान में उन्होंने 252 बार पृथ्वी की परिक्रमा की और 376 घंटे अंतरिक्ष में बिताए जबकि उनकी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा 2003 में हुई थी जो जानलेवा सिद्ध हुई। उन्हें लेकर आ रहा कोलंबिया अंतरिक्ष यान दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से कल्पना चावला तथा उनके साथ 6 अन्य अंतरिक्ष यात्री मारे गए।
नासा से जुड़ी भारतीय मूल की दूसरी अंतरिक्ष यात्री अमरीका की ही सुनीता विलियम्स हैं जो अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आई.एस.एस.) पर 9 महीने बिताने के बाद इसी वर्ष 19 मार्च को पृथ्वी पर वापस लौटी हैं। सुनीता विलियम्स के पृथ्वी पर लौटने के कुछ महीने पहले उनकी एक तस्वीर में उनके कमजोर शरीर को देखकर विवाद पैदा हो गया था कि क्या अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भोजन की कमी है? तब नासा ने कहा था कि अंतरिक्ष में भोजन की कमी नहीं है।
बहरहाल, अंतरिक्ष में कदम रखने वाले पहले ठेठ भारतीय विंग कमांडर राकेश शर्मा थे जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो तथा सोवियत संघ (अब रूस) के संयुक्त मिशन के अंतर्गत 3 अप्रैल, 1984 को सोयूज टी-11 से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी तथा वहां 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताए थे। अब उस ऐतिहासिक घटना के 41 वर्ष बाद एक बार फिर भारत ने अंतरिक्ष में अपने कदम रखें हैं। अंतरिक्ष में कदम रखने वाले पहले ठेठ भारतीय विंग कमांडर राकेश शर्मा थे जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो तथा सोवियत संघ (अब रूस) के संयुक्त मिशन के अंतर्गत 3 अप्रैल, 1984 को सोयूज टी-11 से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी तथा वहां 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताए थे और अब उस ऐतिहासिक घटना के 41 वर्ष बाद एक बार फिर भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक छलांग लगाई है। इसरो तथा नासा में हुए एग्रीमेंट के तहत भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने 25 जून, 2025 को अमरीका में फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी और 26 जून को अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे।
निःसंदेह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का यह सफर देश के लिए अंतरिक्ष के नए दरवाजे खोलेगा, जिसकी छाप आने वाले अभियानों पर दिखेगी। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की ओर उड़ान भरी, तो उनके कंधे पर तिरंगा लहरा रहा था और कानों में फिल्म स्वदेश का प्रेरणादायक गीत गूंज रहा था। इस उड़ान ने देश को न केवल तकनीकी रूप से गौरवान्वित किया, बल्कि भावनात्मक रूप से भी जोड़ दिया। शुभांशु ने न केवल वैज्ञानिक स्तर पर बल्कि भावनात्मक स्तर पर भी पूरे देश को जोड़ा है। पीएम मोदी ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए एक्सिओम 4 मिशन के सफल प्रक्षेपण का स्वागत किया और कहा कि इस मिशन में भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अपने साथ 140 करोड़ भारतीयों की शुभेच्छाएं, उम्मीदें और आकांक्षाएं लेकर गए हैं। एक्सिओम कंपनी को 2016 में नासा से जुड़े रहे दो पूर्व वैज्ञानिकों माइकल टी. सक्रेडिनी और कैम गैफेरियन ने ह्यूस्टन से शुरू किया था। इस कंपनी ने आईएसएस में मिशन भेजने का लक्ष्य रखा। इसमें कुछ और निजी कंपनियों और नासा से मदद लेना शुरू किया। इस कंपनी ने कुछ समय बाद अपना एक्सिओम स्टेशन बनाने का भी लक्ष्य रखा है, जो कि आईएसएस के सेवानिवृत्त होने के बाद उसकी जगह ले सकेगा। एक्सिओम ने अपने स्पेस स्टेशन की लॉन्चिंग 2030 तक करने का लक्ष्य बनाया है। एक्सिओम इससे पहले तीन मिशन्स के जरिए अलग-अलग देशों के यात्रियों को अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है। इनमें इस्राइल का पहला एस्ट्रोनॉट और सऊदी अरब का अंतरिक्ष यात्री शामिल है। इसके अलावा इस कंपनी ने यूरोपीय संघ (ईयू) और अमेरिकी एजेंसी नासा के साथ कई अंतरराष्ट्रीय मिशन्स को अंजाम दिया है। एक्सिओम 4 मिशन एक्सिओम कंपनी का चैथा मानव मिशन है।
अंतरिक्ष यात्री अपने लक्ष्यों के हिसाब से आईएसएस पर 60 से ज्यादा प्रयोग (एक्सपेरिमेंट) करेंगे। इन प्रयोगों के जरिए अंतरिक्ष के माहौल में इंसानों के शरीर पर पड़ने वाले असर, अंतरिक्ष में होने वाली खेती और पदार्थों से जुड़े विज्ञान (मैटेरियल साइंस) को समझने की कोशिश की जाएगी। एक्सिओम मिशन इस लिहाज से भी अहम है कि इससे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को सफलतापूर्वक दर्शाया जा सकता है। एक्सिओम 4 मिशन में जिन लोगों को आईएसएस पर भेजा जा रहा है, उनमें अमेरिका और भारत के अलावा पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री भी आईएसएस पर हैं, जो कि कई दशकों में पहली बार हुआ है। इसके अलावा एक्सिओम अपने इन मिशन्स के जरिए दुनिया का पहला वाणिज्यिक स्पेस स्टेशन बनाने पर भी सारी अहम जानकारी जुटाने में लगा है। इसके जरिए कंपनी अंतरिक्ष के क्षेत्र में कुछ चुनिंदा देशों की मनमर्जी और दखल को कम करने की कोशिश में जुटी है।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की माने तो इस यात्रा से भविष्य में भारत को कई फायदे होंगे। भारत अपने ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन ‘गगनयान’ पर काम कर रहा है। सब कुछ सही रहा तो 2027 में देश अपने दम पर अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजेगा। इसके बाद का अगला बड़ा लक्ष्य है 2035 तक अपना पहला स्पेस स्टेशन खोलना और 2040 तक चांद पर इंसान को भेजना। इन दोनों और भविष्य के सभी अभियानों के लिए शुभांशु का अनुभव बहुमूल्य साबित होगा। अभी पूरे देश में केवल 26 साइंस म्यूजियम हैं, जो किसी नजरिये से काफी नहीं कहे जा सकते। सरकारी मदद से विज्ञान केंद्र खोले जा रहे हैं, लेकिन उनकी रफ्तार भी धीमी है। मौजूदा स्पेस जर्नी इन चीजों को गति देने का अवसर है। शुभांशु इस समय सबसे ज्यादा सर्च किए जाने वाले भारतीयों में से एक हैं। पूरा देश जुड़ाव महसूस कर रहा है उनसे। उनकी सफलता पूरी पीढ़ी को प्रेरित करेगी। इसकी एक झलक उस समय मिली, जब अंतरिक्ष से शुभांशु का पहला संदेश जैसे ही सामने आया, सोशल मीडिया पर झंडे और दिल के इमोजी की बाढ़ आ गई। उन्होंने कहा कि 41 साल बाद भारत अंतरिक्ष में फिर पहुंचा है। यह एक अविश्वसनीय अनुभव है। मेरे कंधे पर तिरंगा है, जो हर पल मुझे याद दिला रहा है कि मैं अकेला नहीं, 130 करोड़ देशवासी इस मिशन में मेरे साथ हैं। यह भारत के मानव अंतरिक्ष अभियान की शुरुआत है, आप सभी इसका हिस्सा हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि शुभांशु का मिशन इन सपनों की नींव रखेगा। यह भारत को अंतरिक्ष में अग्रणी देशों की श्रेणी में लाता है। एक्सिओम मिशन-4 के साथ शुभांशु शुक्ला ने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष मंच पर चमका दिया। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष सपनों को साकार करता है. शुभांशु की यह यात्रा गगनवान, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रमा मिशन की दिशा में एक बड़ा कदम है। (हिफी)

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