‘इसरो’ ने भी रचा इतिहास

भारत के लिए 2 नवम्बर, 2025 का रविवार सचमुच सुपर संडे साबित हुआ। एक तरफ भारत की बेटियों ने महिला क्रिकेट विश्व कप मंे दक्षिण अफ्रीका की टीम को हराकर पहली बार विश्व चैम्पियन का खिताब हासिल किया तो दूसरी तरफ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भी ऐतिहासिक उड़ान दर्ज की। श्री हरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो ने अब तक के सबसे भारी भारतीय राकेट एलवीएम-3-एम5 को सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया। इस राकेट से संचार उपग्रह सीएमएस-03 को अंतरिक्ष मंे भेजा गया है। माना जा रहा है कि सीएमएस-03 सैटेलाइट भारत की दूरसंचार क्षमता को काफी बढ़ा
देगा। इससे देश के सुदूर क्षेत्र में इंटरनेट और प्रसारण सेवाएं पहुंच सकेंगी। यह संचार उपग्रह 4410 किलोग्राम वजन का है। इसरो ने इससे पहले अपना सबसे भारी संचार उपग्रह जीएसटी-11 को दिसम्बर 2018 मंे फ्रेंच गयाना के कुरु लांच बेस से लांच किया था।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और ऐतिहासिक उड़ान दर्ज की है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारत के सबसे भारी रॉकेट एलवीएम3-एम5 ने उड़ान भरी, जो संचार उपग्रह सीएमएस-03 को लेकर अंतरिक्ष की ओर रवाना हुआ। यह मिशन भारत की अंतरिक्ष संचार क्षमताओं को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाला साबित होगा। पहले रॉकेट ने अपने दोनों एस200 सॉलिड बूस्टर और पेलोड फेयरिंग को सफलतापूर्वक अलग किया, जिसके बाद यह एल110 लिक्विड कोर स्टेज में पहुंच गया था। अब ताजा अपडेट के अनुसार, एल110 चरण बंद होते ही रॉकेट ने अपने अंतिम और सबसे उन्नत चरण, सी25 क्रायोजेनिक स्टेज में प्रवेश कर लिया है। एलवीएम-3 जिसे पहले जीएसएलवीएमके-3 कहा जाता था, तीन तरह के इंजन इस्तेमाल करता है- सॉलिड, लिक्विड और क्रायोजेनिक फ्यूल बेस्ड. यह रॉकेट लो अर्थ ऑर्बिट में करीब 8,000 किलोग्राम और जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट (करीब 36,000 किमी ऊंचाई) में 4,000 किलोग्राम तक का भार ले जा सकता है। इसरो का यह “मॉन्स्टर रॉकेट” अपने अब तक के सातों मिशनों में 100 फीसद सफलता हासिल कर चुका है। यही रॉकेट चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 को भी अंतरिक्ष में लेकर गया था। इसके अलावा इसी से जीएसटी-19 और जीएसटी-29 जैसे संचार उपग्रहों को भी लॉन्च किया गया।
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान 2022 में जब वैश्विक लॉन्च विकल्प सीमित हो गए थे, तब इसरो ने इसी स्टड-3 रॉकेट से ब्रिटेन की व्दमॅमइ कंपनी के 72 सैटेलाइट्स को दो बार लॉन्च किया था। उसी के बाद इस रॉकेट का नाम औपचारिक रूप से एलवीएम-3 रख दिया गया। सीएमएस-03 सैटेलाइट भारत की दूरसंचार क्षमता को नई ऊंचाई देगा। यह उपग्रह देश के संचार नेटवर्क को और मजबूत करेगा और सुदूर इलाकों तक इंटरनेट और प्रसारण सेवाएं पहुंचाने में अहम भूमिका निभाएगा। बल्कि यह भारत की आत्मनिर्भर स्पेस क्षमताओं का भी शानदार प्रदर्शन है।
रॉकेट उपग्रह को ले जाता है। इसका कोई अंतिम मूल्य नहीं है, इस अर्थ में कि यह अंतरिक्ष में सामान पहुँचाने वाला एक वाहन मात्र है। एक बार उपग्रह अंतरिक्ष में पहुँच जाता है, तो उपग्रह अपनी कक्षा में खुद को समायोजित कर लेता है और मौसम पूर्वानुमान, जीपीएस, तापीय विश्लेषण या खगोल विज्ञान जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। रॉकेट अंतरिक्ष में तैरता रहता है। हालांकि अब कंपनियाँ पुन: प्रयोज्य रॉकेटों का उपयोग करने लगी हैं। इसका मतलब है कि एक बार जब वे अपने उपग्रहों को पृथ्वी पर पहुँचा देते हैं, तो वे वापस पृथ्वी पर आ जाते हैं और बाद के प्रक्षेपणों में उनका पुनः उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, एलन मस्क द्वारा निर्मित स्पेसएक्स का फाल्कन 9। इसरो भी इसी तरह की अवधारणा पर काम कर रहा है। हमारा सबसे बड़ा कृत्रिम उपग्रह, आईएसएस, 20 वर्षों से कक्षा में निरंतर मानवीय उपस्थिति का
केंद्र रहा है। अधिकांश उपग्रह इससे कहीं छोटे और कम प्रभावशाली होते हैं, और इनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसरो की स्थापना 1969 में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास करना था। डॉ. विक्रम साराभाई, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है, ने इसरो की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शुरुआती दिनों में, इसरो ने छोटे रॉकेट और उपग्रहों के साथ शुरुआत की, लेकिन धीरे-धीरे इसने अपनी क्षमता और तकनीक में सुधार किया।
इसरो ने कई शानदार मिशन किए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं-
आर्यभट्ट: 1975 में लॉन्च किया गया, यह भारत का पहला उपग्रह था। यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
चंद्रयान-1 को 2008 में लॉन्च किया गया, यह चंद्रमा पर भेजा गया भारत का पहला मिशन था। इसने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज की और दुनिया को चैंका दिया। मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) 2013 में लॉन्च किया गया, यह मंगल ग्रह पर भेजा गया भारत का पहला मिशन था। भारत ऐसा करने वाला चैथा देश बना। इस मिशन ने न केवल तकनीकी दक्षता दिखाई, बल्कि यह भी साबित किया कि भारत कम लागत में भी अंतरिक्ष में बड़ी सफलताएँ हासिल कर सकता है।
जीएसएलवी और पीएसएलवी इसरो द्वारा विकसित ये रॉकेट, कई उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर चुके हैं। ये रॉकेट भारत की अंतरिक्ष प्रक्षेपण क्षमता को दर्शाते हैं। इनसेट और जीसैट ये इसरो के संचार उपग्रह हैं, जो भारत में दूरसंचार और प्रसारण सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
चंद्रयान-2 मिशन, चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में विफल रहा, लेकिन इसके ऑर्बिटर ने कई महत्वपूर्ण डेटा भेजे। चंद्रयान-3 ने 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की और इतिहास रच दिया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत की अंतरिक्ष एजेंसी है। इस संगठन में भारत और मानव
जाति के लिए बाह्य अंतरिक्ष के लाभों को प्राप्त करने के लिए विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी शामिल हैं। इसरो अब उपलब्धियों का इतिहास रच रहा है।(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)



