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मोदी सरकार को जगन का साथ

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

यह बात तो किसी से छिपी नहीं है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार के पास प्रचण्ड बहुमत है और राज्यसभा में बहुमत न होते हुए भी सबसे ज्यादा सदस्य हैं। इसलिये विपक्षी दलों-कांग्रेस और बीआरएस-ने जो अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है उसका गिर जाना निश्चित है। मोदी सरकार के सामने दिल्ली सरकार के लिए जारी अध्यादेश समस्या जरूर है क्योंकि उसे लोकसभा और राज्य सभा में अलग-अलग पारित कराया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पुलिस सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण विशेष रूप से अफसरों की तैनाती और ट्रांसफर का अधिकार मुख्यमंत्री अरविन्द केजरी वाल की निर्वाचित सरकार को सौंपा था। इसके एक सप्ताह बाद ही केन्द्र सरकार ने 19 मई 2023 को विवादास्पद दिल्ली अध्यादेश जारी किया था जिसमें तीन लोगों की एक समिति बनाने और बहुमत से फैसला करने की बात कही गयी। समिति में एक सदस्य गृह मंत्रालय का, दूसरा उपराज्यपाल और तीसरा मुख्यमंत्री को बनाया गया था। जाहिर है कि बहुमत हमेशा उप राज्यपाल के पक्ष में रहेगा। इस अध्यादेश का केजरीवाल विरोध कर रहे हैं और राज्यसभा में इसे पारित न होने देने का कांग्रेस समेत 26 दलों ने वचन दिया है। इस प्रकार बसपा समेत 11 राजनीतिक दल ऐसे हैं जो राज्य सभा में मोदी सरकार का रास्ता रोक सकते हैं। इनमें एस जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस भी है। जगम मोहन रेड्डी की पार्टी ने मोदी सरकार का साथ देने का वादा किया है। ध्यान रहे कि राज्य सभा में राजग के 101 सदस्य हैं जबकि 26 विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के 100 सदस्य हैं। इस
प्रकार मोदी सरकार का जगन मोहन रेड्डी ने मुसीबत के वक्त साथ दिया है।
जाहिर है, जब जरूरत थी तब मोदी सरकार को दिल्ली बिल के मामले पर वायएसआर कांग्रेस का साथ मिल गया है। वायएसआरसीपी के संसद में नेता वी विजयसाई रेड्डी ने कहा कि उनकी पार्टी मोदी सरकार के साथ खड़ी है। वायएसआरसीपी का कहना है कि वो दिल्ली से जुड़े
अध्यादेश के बिल पर केंद्र सरकार के पक्ष में है। वहीं, मोदी सरकार के खिलाफ लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव का वो विरोध करेगी। वायएसआरसीपी के राज्य सभा में नौ सांसद हैं। वी विजयसाई रेड्डी ने कहा, हम दोनों मुद्दों पर सरकार के पक्ष में वोट डालेंगे। वायएसआरसीपी का समर्थन मिलने के बाद दिल्ली बिल का राज्य सभा में पारित होना पक्का हो गया है। वायएसआरसीपी के लोक सभा में 22 सांसद हैं, जो अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट डालेंगे।
वायएसआरसीपी के समर्थन से पहले राज्य सभा में सरकार का आंकड़ा 112 था, जो बहुमत से 8 दूर था। पार्टी के नौ सांसद दिल्ली बिल पर मोदी सरकार के पक्ष में वोट डालेंगे। इस तरह बिल के समर्थन में 121 वोट होंगे, जो बहुमत के आंकड़े से एक अधिक है। सरकार को बीएसपी, जेडीएस और टीडीपी से भी समर्थन की उम्मीद है। इन तीनों दलों के एक-एक सांसद हैं। ऐसे में बिल के पक्ष में 124 वोट मिल सकते हैं। इस तरह बिल आसानी से पास हो जाएगा। वहीं, अगर बीजू जनता दल (बीजद) सदन से वॉक आउट करे, तो बहुमत का आंकड़ा 115 ही रह जाएगा और ऐसे में भी सरकार को बिल पारित कराने में कोई परेशानी नहीं आएगी
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को राज्यसभा में बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, मनोनीत और निर्दलीय सदस्यों के समर्थन पर निर्भर रहना होगा, ताकि दिल्ली सेवा अध्यादेश की जगह लेने वाले विधेयक को उच्च सदन में पारित कराया जा सके। मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दिए गए इस विधेयक को संसद में कब लाया जाएगा, इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन कई दलों ने अपने सदस्यों को राज्यसभा में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किए हैं। कुछ सदस्यों ने राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर दिल्ली सेवा मुद्दे पर विधेयक को 27 जुलाई को विधायी कामकाज में पूरक एजेंडे के रूप में पेश नहीं होने देने की मांग की है। इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया है, लेकिन ऐसी अटकलें थीं कि इसे 27 जुलाई को राज्यसभा में लाया जा सकता है। अध्यादेश ने दानिक्स कैडर से ग्रुप-ए के अधिकारियों के स्थानांतरण और अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना की सुविधा प्रदान की। शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के तबादले और तैनाती उपराज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थे। राष्ट्रीय राजधानी में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने अध्यादेश को संविधान के संघीय ढांचे पर हमला करार दिया था और विपक्षी दलों को इसका समर्थन करने के लिए एकजुट करने का प्रयास किया था।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली
अध्यादेश के स्थान पर एक विधेयक लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। विधेयक को संसद में रखे जाने से पहले यह महज एक औपचारिकता थी। कैबिनेट की बैठक में इसे मंजूरी दी गई।सरकार मॉनसून सत्र में ही इस बिल को संसद में पेश कर रही है। बताते चलें कि इस अध्यादेश को लेकर दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से टकराव देखने को मिला है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने इसे लेकर उपराष्ट्रपति को पत्र भी लिखा था।
गौरतलब है कि अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की अध्यादेश पर रोक की अर्जी खारिज कर दी थी। अध्यादेश पर तीन जजों की पीठ ने कानून के दो सवाल भी तैयार किए थे। अनुच्छेद 239-एए(7) के तहत कानून बनाने की संसद की शक्ति की रूपरेखा क्या है? और क्या संसद अनुच्छेद 239-एए(7) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करके दिल्ली के लिए शासन के संवैधानिक सिद्धांतों को निरस्त कर सकती है? केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर
अध्यादेश का बचाव किया था। हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि आप सरकार को सतर्कता विभाग के अधिकारियों का तबादला करने से रोकने के लिए दिल्ली अध्यादेश जल्दबाजी में लाया गया था। 11 मई के फैसले के बाद सतर्कता अधिकारियों से शिकायतें मिलीं थीं। एक्साइज विभाग की जांच, फीडबैक यूनिट की जांच से संबंधित फाइलें सतर्कता विभाग के कार्यालयों से ली गईं थीं। आप मंत्रियों के अहंकारी, असंवेदनशील व्यवहार के कारण अध्यादेश जारी करना पड़ा। अध्यादेश में देरी से शासन व्यवस्था पंगु हो जाती। देश विश्व स्तर पर शर्मिंदा होता। अधिकारियों के काम करने में बाधा डाली गई। दिल्ली में प्रशासनिक अराजकता के कारण आपातकालीन तरीके से अध्यादेश लाना पड़ा। बहरहाल, इस अध्यादेश को अब संसद के दोनों सदनों मंे मंजूरी मिलने की पूरी संभावना है। (हिफी)

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