जापान के पीएम इशिबा की सत्ता खतरे में

जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा का भविष्य सोमवार, 21 जुलाई को अनिश्चित हो गया। इसकी वजह है कि उनके गठबंधन को जापानी संसद के उपरी सदन की सीटों के लिए हुए चुनावों में करारा झटका लगा है और गठबंधन ने ऊपरी सदन में अपना बहुमत खो दिया था। ऊपरी सदन में जापान की दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी को मजबूत बढ़त मिल गई है।
जापान के नेशनल ब्रॉडकास्टर छभ्ज्ञ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधान मंत्री इशिबा की पार्टी- लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने साल 1955 से लगभग लगातार शासन किया है। एलडीपी और उसकी साथी पार्टी कोमिटो के गठबंधन को रविवार को हुए चुनाव में उपरी सदन में बहुमत बनाए रखने के लिए 50 सीटें जीतनी थीं, लेकिन वे तीन सीटें कम रह गईं। अब प्रधानमंत्री इशिबा का भविष्य अनिश्चित इसलिए माना जा रहा है क्योंकि यह उनको लगा लगातार दूसरा झटका है। कुछ ही महीने पहले ही इशिबा के गठबंधन को अधिक शक्तिशाली निचले सदन में झटका लगा था और वहां भी सरकार अल्पमत में आ गई है। निचले सदन में एलडीपी का यह 15 वर्षों में सबसे खराब परिणाम था। रविवार को हुए चुनाव में जापान की 248 सीटों वाले उच्च सदन की 125 सीटों पर चुनाव लड़ा गया। सत्तारूढ़ गठबंधन को उच्च सदन में अपना बहुमत बनाए रखने के लिए इन 125 सीटों में से 50 पर जीत हासिल करने की जरूरत थी, लेकिन उन्होंने केवल 47 जीते ( एलडीपी ने 39 और कोमिटो ने आठ जीते)। इस नतीजे के बाद गठबंधन बहुमत के आंकड़े से 3 सीट कम रह गया है। दूसरे स्थान पर कॉन्स्टिट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान (सीडीपी) रही, जिसने 125 में से 22 सीटें जीतीं, उसके बाद डेमोक्रेटिक पार्टी फॉर द पीपल (डीपीपी) ने 17 सीटें जीतीं। वहीं सैन्सिटो ने 14 सीटें हासिल कीं।
जापान के सत्तारूढ़ गठबंधन ने देश के उच्च सदन में अपना बहुमत खो दिया है, लेकिन प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने कहा है कि उनकी पद छोड़ने की कोई योजना नहीं है। वोटिंग खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि वह कठोर परिणाम को गंभीरता से स्वीकार करते हैं लेकिन उनका ध्यान अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता पर है। हालांकि यदि इशिबा को पीएम पद छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि एलडीपी पार्टी का 11वां प्रमुख बनने के लिए कौन कदम बढ़ा सकते है। दरअसल जापान में वर्षों की स्थिरता या गिरती कीमतों के बाद, दुनिया की इस चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में जनता पर महंगाई का दबाव पड़ा है। खासकर रूस के 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से। विशेष रूप से, चावल की कीमत दोगुनी हो गई है, जिससे सरकारी मदद के बावजूद कई घरों का बजट बिगड़ गया है।