जीवत्पुत्रिका (जीउतिया) व्रतम् व जीमूतवाहन। पूजन …6 अक्टूबर शुक्रवार।।

महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय के अनुसार
यह व्रत आश्विन कृष्ण प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि को किया जाता है निर्णयसिंधु के अनुसार पूर्वेद्युरपरेद्युर्वा प्रदोषे यत्र चाष्टमी तत्र पूज्यः सनारीभिरू राजा जीमूतवाहनरू अतः अपराह्ण व प्रदोष काल में अष्टमीतिथि मिलने के कारण जीवित पुत्रिका का व्रत शुक्रवार को ही करना श्रेष्ठकर होगा। जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन मुहूर्त सायं 04.52 से 7 बजे तक करें । आर्द्रा नक्षत्र के साथ साथ वरीयान योग दिवा 09रू57 तक पश्चात परिघ योग मिल रहा है यह व्रत स्त्रियाँ अपने पुत्र की रक्षा के लिए इस व्रत को करती है। इस व्रत में एक दिन पहले ब्रह्ममुहूर्त में जल,अन्न व फल ग्रहण करके दूसरे दिन अष्टमी तिथि में पूरे दिन व रात निर्जला व्रत किया जाता है ! सायं काल में राजा जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को जल,चन्दन,पुष्प, अक्षत, धूप,दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करती है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है! जिसके माथे पर लाल सिन्दूर का टीका लगाया जाता है।
पूजन के पश्चात जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पुत्र की दीर्घायुरू व आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियाँ इस व्रत को करती है।कहते है जो महिलाएं निष्ठा पूर्वक विधि-विधान से पूजन के पश्चात कथा सुनकर ब्राह्माण को दान-दक्षिणा देती है,उन्हें पुत्र सुख व उनकी समृद्धि प्राप्त होती है। व पुत्र दिर्घायु व यशश्वी होता ! अपने पुत्र व पौत्रों के दीर्घायु होने की कामना करते हुए स्त्रियाँ बड़ी निष्ठा और श्रद्धा से इस व्रत को पूरा करती हैँ।।
जीवित पुत्रिका व्रतस्य पारणा शनिवार को दिवा 10रू21 के पश्चात नवमी तिथी प्रारम्भ होने पर ही करें ।।