राजनीति

हरियाणा में कनुगोलू करेंगे कमाल!

 

चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर (पीके) का नाम ही ज्यादातर लोग जानते हैं लेकिन कुछ और लोग भी इस क्षेत्र मंे नाम कमा रहे हैं। ऐसा ही एक नाम सुनील कनुगोलू है। सुनील कनुगोलू कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार बताये जाते हैं। कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस को मिली सफलता के पीछे कनुगोलू का प्रमुख हाथ बताया जा रहा है। कर्नाटक में सुनील कनुगोलू कैबिनेट रैंक के साथ मुख्यमंत्री सिद्ध रमैया के प्राथमिक सलाहकार भी है। कांग्रेस उनसे आम चुनाव मंे उतनी मदद नहीं लेगी जितनी हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में लेना चाहती है। कर्नाटक और तेलंगाना मंे वह सरकार के साथ काम करते रहेंगे। कांग्रेस अब इस रणनीति पर चल रही है कि भाजपा के हाथ से एक-एक करके राज्य छीने जाएं। इस रणनीति के तहत हरियाणा और महाराष्ट्र पर निगाह है जहां 6 महीने के अंदर ही विधानसभा चुनाव होने हैं। इन दोनों राज्यों मंे कांग्रेस को इस बार अच्छी संभावनाएं दिख रही हैं। दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव मंे विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों का रवैया बहुत उम्मीद भरा नहीं है। अभी 12 जनवरी को पंजाब को लेकर कांग्रेस की राज्य इकाई आम आदमी पार्टी (आप) के साथ सीटों का बंटवारा करने को तैयार नहीं दिखती। इसके साथ ही अन्य राज्यों मंे भी वहां पर वर्चस्व रखने वाली पार्टियां कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें देने को तैयार नहीं दिखतीं। हरियाणा और महाराष्ट्र का फार्मूला अगर सफल हो गया तो कांगे्रस पंजाब और ओडिशा (उड़ीसा) को भी वापस लेने का प्रयास कर सकती है। यहां उसे भाजपा से सीधे टकराना नहीं पड़ेगा।
कांग्रेस की टास्क फोर्स 2024 का हिस्सा रहे सुनील कनुगोलू अब पार्टी के हरियाणा और महाराष्ट्र के अभियानों की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के सूत्रधार कहे जाने वाले चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू अब लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पार्टी के अभियान का हिस्सा नहीं होंगे। सुनील कनुगोलू की नए सिरे से तैनाती के पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि इन दोनों ही राज्यों में उनके पास पहले से ही टीमें मौजूद हैं और दोनों सूबों में अगले सात महीनों के भीतर मतदान होना है- और कांग्रेस पिछले साल कर्नाटक और तेलंगाना विधानसभा चुनाव में क्रमशः भारतीय जनता पार्टी तथा भारत राष्ट्र समिति पर मिली बड़ी जीत को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है। कांग्रेस के प्रमुख चुनावी रणनीतिकार के अप्रैल और मई में होने जा रहे आम चुनाव में पार्टी का मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद नहीं होने की खबरों से चिंताएं पैदा हो रही हैं। लोकसभा चुनाव के अभियान में सुनील कनुगोलू की गैरमौजूदगी झटका है, लेकिन कांग्रेस का मानना है कि अगर वह अहम राज्यों को जीतने में सफल हो जाए तो इससे पार्टी को ज्यादा दीर्घकालिक लाभ होगा। सुनील कनुगोलू कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के साथ भी काम करना जारी रखेंगे, जहां वह कैबिनेट रैंक के साथ मुख्यमंत्री सिद्धरामैया के प्राथमिक सलाहकार हैं और वह तेलंगाना में भी काम करते रहेंगे, जहां उन्होंने 2014 से शासन कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री के। चंद्रशेखर राव और बीआरएस को सत्ता से हटाया है।

कांग्रेस की चुनाव मशीनरी के लिए सुनील कनुगोलू की अहमियत मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन को बेहतरीन तरीके से जाहिर होती है। सुनील ने इन दोनों राज्यों में नेताओं- मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत- के साथ बातचीत शुरू की थी, लेकिन पार्टी के सबसे पुराने और इन राज्यों में वास्तविक बॉस उनकी मांगों पर सहमत नहीं हुए। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस बुरी तरह हारी थी। इसके विघिवत कर्नाटक और तेलंगाना में जीत इसलिए मिल सकी, क्योंकि इन दोनों सूबों में फैसले लेने के लिए सुनील कनुगोलू को पूरी छूट दी गई थी।

कांग्रेस शायद (बहुत) दीर्घकालिक सोच रख रही है और कर्नाटक और तेलंगाना (और हिमाचल प्रदेश भी, जहां कनुगोलू ने पार्टी की मदद की थी) जैसी जीतों से पार्टी को मिलती आ रही पराजयों को बैलेंस करते रहना चाहती है, जैसे 2023 में राजस्थान,
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी को हार मिली और 2022 में कांग्रेस ने पंजाब गंवाया है। विधानसभा चुनावों से पहले इन चार राज्यों में से तीन में कांग्रेस ही सत्तारूढ़ थी और गुटबाजी से जूझते पार्टी के चुनाव अभियानों ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा और पंजाब में आम आदमी पार्टी को जीत दिलाई, जो उन्हें संभवतः नहीं मिल सकती थी। अब 12 राज्यों में भाजपा की सरकारों की तुलना में कांग्रेस के पास सिर्फ तीन सूबों में सरकारें हैं। इसलिए अहम सूबों में अपनी स्थिति मजबूत करने और मजबूत आधार बनाकर जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस सुनील कनुगोलू और उनके क्षेत्रीय सर्वेक्षणों पर भरोसा करने जा रही है।

कांग्रेस का आकलन है मुख्यमंत्री पद पर कब्जा होने के बावजूद हरियाणा में भाजपा की हालत बहुत मजबूत नहीं लग रही है और महाराष्ट्र में भी पिछले साल जून में सत्तासीन शिवसेना में हुए कड़वे दोफाड़, जिसके चलते महाविकास अघाड़ी के घटक तौर पर सत्ता में बैठी कांग्रेस के हाथ से भी गद्दी छिन गई थी, के बाद से उथल-पुथल का ही माहौल है। ये दोनों राज्य कांग्रेस की नई शुरुआत के लिए बढ़िया अवसर प्रतीत हो रहे हैं। आंध्र प्रदेश में भी इसी साल मतदान होना है, लेकिन सुनील कनुगोलू उसे छोड़ देंगे, क्योंकि पार्टी में वाई.एस. शर्मिला के हालिया प्रवेश के बावजूद कांग्रेस की सूबे में खास मौजूदगी नहीं है। 024 में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ ओडिशा में भी चुनाव होगा, जहां मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल का दबदबा है। इसके अलावा, मतदान झारखंड में भी होगा, लेकिन कांग्रेस पहले से वहां की सरकार का हिस्सा है, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन कर रखा है। कांग्रेस की सबसे बड़ी परीक्षा जम्मू एवं कश्मीर में होगी, जहां, अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाता है तो, अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा हटाए जाने के फैसले के बाद पहली बार चुनाव होगा।

लोकसभा की सीटों का जहां तक मामला है तो बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं और सत्तारूढ़ गठबंधन में आठ दल शामिल हैं। बिहार विधानसभा में संख्या बल के आधार पर महागठबंधन में राजद के पास सबसे अधिक विधायक हैं और उसके बाद जदयू, कांग्रेस, भाकपा माले, भाकपा और माकपा हैं। राज्य की 243 सदस्यीय विधानसभा में भाकपा माले के 12 सदस्य हैं और इसे लोकसभा सीट जीते हुए कई साल हो गए हैं। भाकपा ने भी संकेत दिया है कि वह तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। इंडिया गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में पंजाब में कुछ सही नहीं चल रहा है। अलाकमान की लाख कोशिशों के बाद भी पंजाब कांग्रेस, आप से किसी भी सूरत में गठबंधन नहीं चाहती। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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