अध्यात्म

तीन लोक से न्यारी काशी

भगवान शिव की नगरी काशी को वनारस और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। काशी शहर का सबसे प्राचीन नाम है। इसके बाद आम बोलचाल मंे बनारस नाम पड़ा जो मुगलों और अंग्रेजों के समय भी प्रयोग किया जाता था। तीनों लोक अर्थात् मृत्यु लोक, पाताल लोक और स्वर्ग लोक से काशी को अलग माना जाता है क्योंकि जब सतयुग मंे महाराजा हरिश्चन्द्र ने स्वप्न में विश्वामित्र को अपना पूरा राज्य दे दिया, तब दक्षिणा के रूप मंे वह काशी में ही अपनी पत्नी व बच्चे के साथ बिकने आये थे। इसीलिए काशी को अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसका अर्थ है कि एक ऐसा स्थान जो कभी भी भगवान शिव के त्रिशूल से अलग नहीं हुआ। अब वाराणसी पर एक फिल्म बन रही है। द्वापर युग में काशी का विस्तृत विवरण मिलता है। काशी नरेश की ही तीन पुत्रियों- अम्बा, अंबिका और अम्बालिका का भीष्म ने अपहरण किया था। इसी के बाद हस्तिनापुर और काशी मंे शत्रुता पैदा हुई। जरासंध के साम्राज्य का अंग काशी थी।
काशी, बनारस और वाराणसी एक ही शहर के तीन अलग-अलग नाम हैं, जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है और इसे अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। यह बौद्ध और जैन धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। काशी शहर का सबसे प्राचीन नाम है और इसका उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। जबकि बनारस एक और लोकप्रिय और पारंपरिक नाम है, जो मुगलों और अंग्रेजों के समय में भी इस्तेमाल किया जाता था। अब वाराणसी यह इस शहर का आधिकारिक नाम है, लेकिन लोग अभी भी काशी और बनारस नामों का उपयोग करते हैं।
वाराणसी जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है ये सिर्फ एक शहर ही नहीं है बल्कि हिंदुओं की आस्था का बड़ा केंद्र भी है। ऐसा माना जाता है कि इस शहर की स्थापना स्वयं भगवान भोलेनाथ ने की है। इस शहर का उल्लेख वेदों, पुराणों और उपनिषदों में भी मिलता है। काशी को मोक्षदायिनी भूमि, शिव की प्रिय नगरी और त्रिशूल पर स्थित दिव्य धाम माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार संपूर्ण वाराणसी शहर भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान हैं। वाराणसी शहर का नाम दो नदियों, वरुणा और असि के नामों से मिलकर पड़ा है। इन नदियों के बीच स्थित होने की वजह से ही इसका नाम वाराणसी पड़ा, जिसका अर्थ है वरुणा और असि के बीच की भूमि।
पौराणिक कथाओं के अनुसार वाराणसी शहर के रक्षक स्वयं भगवान शिव हैं। कहा जाता है कि ये नगरी शिव के त्रिशूल पर ही टिकी है जिस कारण से इसका कभी नाश नहीं हो सकता। हिंदू धर्मग्रंथों में काशी का उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है। स्कंद पुराण और काशी खंड में बताया गया है कि भगवान शिव को यह नगरी इतनी प्रिय है कि उन्होंने इसे अपने निवास स्थान के रूप में चुना। धर्म शास्त्रों में ये भी बताया गया है कि जब प्रलय आता है और पूरी सृष्टि नष्ट हो जाती है, तब भी काशी अपनी जगह पर टिकी रहती है। यही कारण है कि इसे दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी माना जाता है। काशी में भगवान शिव बाबा विश्वनाथ के रूप में निवास करते हैं। कहा जाता है कि काशी में मृत्यु को प्राप्त करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।वाराणसी को भगवान शिव और देवी पार्वती का घर माना गया है। कथाओं के अनुसार जब असुरों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था तो असुरों ने काशी में हाहाकार मचा दिया था। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल का प्रयोग कर काशी की रक्षा की। कहते हैं त्रिशूल पर वाराणसी को स्थापित करने का उद्देश्य इस नगरी को विनाश और कालचक्र से परे रखना था।
भारत के प्राचीन मंदिरों और आध्यात्मिक इतिहास के स्मारकों में काशी मंदिर का खास उल्लेख मिलता है। गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित भगवान शिव को समर्पित काशी विश्वनाथ मंदिर देश के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। भगवान शिव को ब्रहांड के भगवान के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। काशी को विश्वस्तर पर सबसे पुराना और जीवित शहर माना जाता है। भव्य मंदिर के अलावा दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती भक्तों को आकर्षित करती है।
इस शहर का नाम आनंदकानन, महासंशन, रूद्रवा, कशिका, मंदिरों का शहर, त्रिपुरारिराजनगरी, तपस स्थली भी है। इस शहर को ज्ञान के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसके अलावा कई स्थानों पर इसका नाम शंकरपुरी, जितवारी, आनंदरूपा, श्रीनगरी, गौरीमुख, महापुरी, तपस्थली, धर्मक्षेत्र, अर्लकपुरी, जयंशिला, पुष्पावती, पोटली, हरिक्षेत्र, विष्णुपुरी, शिवराजधानी, कसीनगर, काशीग्राम भी है। भारत में यह एकमात्र ऐसा अनोखा शहर है जिसके 50 से भी ज्यादा नाम हैं। पुराणों के अनुसार, स्वर्ग से जब धरती पर गंगा उतरी थीं तो बहाव इतना तेज था कि वाराणसी के घाट पर तपस्या कर रहे भगवान दत्तात्रेय का आसन और कमंडल डेढ़ किलोमीटर तक आगे बह गया, जिसे वापस करने के लिए गंगा वापस लौटकर आती हैं और उन्हें उनकी वस्तुएं लौटाती हैं और उनसे क्षमा मांगती हैं। महाभारत के अनुसार, देवी गंगा अर्जुन की मृत्यु पर इसलिए हँसीं क्योंकि उन्होंने अर्जुन को उसके कर्मों का फल दिया था। गंगा ने अर्जुन को श्राप दिया था कि जैसे उसने भीष्म का वध किया था, वैसे ही अर्जुन भी अपने ही पुत्र के हाथों मारा जाएगा। गंगा ने अर्जुन की मृत्यु पर अपना प्रतिशोध पूरा होते देख खुशी जताई। क्योंकि भीष्म गंगा के पुत्र थे। गंगा ने अर्जुन के पुत्र बब्रुवाहन को दिव्य बाण दिया था, जिससे बब्रुवाहन ने अपने पिता अर्जुन का वध कर दिया।
अर्जुन की मृत्यु के बाद, देवी गंगा वहां प्रकट हुईं और अर्जुन की
माँ कुंती से कहा कि अर्जुन को उसके कर्मों का फल मिला है और उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु का बदला ले लिया। काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के आध्यात्मिक और सांसारिक मूल्यों का प्रतीक है और इसलिए इसे सब से महत्वपूर्ण माना जाता है। जीवन में एक बार हर किसी को बनारस या वाराणासी की यात्रा जरूर करनी चाहिए।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चैरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था।
(मोहिता-हिफी फीचर)

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