अध्यात्म

कृष्ण अलौकिक और लौकिक नायक

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
सोलह कलाओं से युक्त देवकी नंदन कृष्यउ बचपन से ही प्रभुता दिखाते हैं अथवा उनको दिखानी पड़ती है। पूतना का वध करना, वमासुर को मारना और कालियानाग को दंडित कर उस चमुना स्थल से दूर जाने का निर्देश देना उनके लौकिक और अलौकिक नायकत्व का संकेत देता है। फिर गोपियों से ऐसा प्रेम जिसे उद्धव का निराकार दर्शन भी डिगा नहीं पाया और महाभारत में गीता का ज्ञान जो आज भी हमारे जीवन का मार्गदर्शन करता है। ऐसे महानायक का जन्मदिन भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस बार कृष्ण जन्माष्टमी शनिवार 16 अगस्त को मनायी जा रही है। इस दिन छोटे-छोटे बच्चों को कृष्ण बनाकर घर-घर उत्सव मनाया जाता है।
इस दिन व्रत रखना, भगवान की प्रतिमा या चित्र की आराधना करना, और श्रद्धा से भजन-कीर्तन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। साथ ही पूजा के दौरान शुद्धता और सादगी का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जन्माष्टमी के ये नियम न केवल पूजा को सफल बनाते हैं, बल्कि मन और आत्मा को शुद्ध कर अगले साल तक सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं। ऐसे में इन नियमों का सही तरीके से पालन करना हर भक्त के लिए जरूरी है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान बालगोपाल की पूजा करते समय ध्यान रखें कि आप कभी भी मुरझाए हुए, सूखे या बासी नहीं फूल चढ़ाएं । फूल भगवान् की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं और ताजगी उनके प्रति श्रद्धा को दर्शाती है। यदि आप मुरझाए फूल चढ़ाते हैं, तो यह अपमान समझा जाता है और भगवान को यह पसंद नहीं आता।
भगवान श्रीकृष्ण का गायों से बहुत गहरा प्रेम और लगाव है। वे स्वयं एक ग्वाल (गाय चराने वाले) थे और गायों को अपने माता-पिता समान मानते थे। जन्माष्टमी के दिन गोवंश की सेवा करना, उनका सम्मान करना और कभी भी उनका अपमान न करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यदि इस दिन गायों को सताया या परेशान किया गया, तो पूजा और व्रत का फल अधूरा रह सकता है। इसके अलावा, ऐसी क्रिया से भगवान कृष्ण नाराज हो सकते हैं, जिससे भक्त को उनकी कृपा प्राप्त नहीं होती। इसलिए जन्माष्टमी के दिन गोवंश की रक्षा और सेवा करें।
तुलसी का पौधा भगवान् विष्णु और उनके अवतार कृष्ण की अति प्रिय वनस्पति है। इसलिए जन्माष्टमी के दिन तुलसी के पौधे की पत्तियां तोड़ना वर्जित होता है। पूजा में तुलसी की पत्तियां इस्तेमाल करने के लिए उन्हें एक दिन पहले ही तोड़कर साफ-सुथरा और ताजा रख लेना चाहिए। तुलसी के प्रति सम्मान भाव रखने से भगवान की प्रसन्नता होती है और पूजा का फल बढ़ता है। जन्माष्टमी का त्यौहार प्रतिवर्ष भाद्रपक्ष कृष्णाष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का भारतीय संस्कृति में इतना महत्व इसीलिए माना गया है क्योंकि श्रीकृष्ण को भारतीय संस्कृति का विलक्षण महानायक माना गया है। उनके व्यक्तित्व को जानने के लिए उनके जीवन दर्शन और अलौकिक लीलाओं को समझना जरूरी है। द्वापर युग के अंत में मथुरा में अग्रसेन नामक राजा का शासन था। उनका पुत्र था कंस, जिसने बलपूर्वक अपने पिता से सिंहासन छीन लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव के साथ हुआ। एक दिन जब कंस देवकी को उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू इतने प्रेम से उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसी का आठवां बालक तेरा संहारक होगा। आकाशवाणी सुन कंस घबरा गया। उसने देवकी की ससुराल पहुंचकर जीजा वसुदेव की हत्या करने के लिए तलवार खींच ली। तब देवकी ने अपने भाई कंस से निवेदन किया कि हे भाई! मेरे गर्भ से जो भी संतान होगी, उसे मैं तुम्हें सौंप दिया करूंगी, उसके साथ तुम जैसा चाहे व्यवहार करना पर मेरे सुहाग को मुझसे मत छीनो।
कंस ने देवकी की विनती स्वीकार कर ली और मथुरा लौट आया तथा वसुदेव एवं देवकी को कारागार में डाल दिया। कारागार में देवकी ने अपने गर्भ से पहली संतान को जन्म दिया, जिसे कंस के सामने लाया गया। देवकी के गिड़गिड़ाने पर कंस ने आकाशवाणी के अनुसार देवकी की आठवीं संतान की बात पर विचार करके उसे छोड़ दिया पर तभी देवर्षि नारद वहां आ पहुंचे और उन्होंने कंस को समझाया कि क्या पता, यही देवकी का आठवां गर्भ हो, इसलिए शत्रु के बीज को ही नष्ट कर देना चाहिए। नारद जी की बात सुनकर कंस ने बालक को मार डाला। इस प्रकार कंस ने देवकी के गर्भ से जन्मे एक-एक कर 7 बालकों की हत्या कर दी। जब कंस को देवकी के 8वें गर्भ की सूचना मिली तो उसने बहन और जीजा पर पहरा और कड़ा कर दिया। भाद्रपक्ष की कृष्णाष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। उस समय घोर अंधकार छाया हुआ था तथा मूसलाधार वर्षा हो रही थी। तभी वसुदेव जी की कोठरी में अलौकिक प्रकाश हुआ। उन्होंने देखा कि शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी चतुर्भुज भगवान उनके सामने खड़े हैं। भगवान के इस दिव्य रूप के दर्शन पाकर वसुदेव और देवकी उनके चरणों में गिर पड़े। तब उन्होंने वसुदेव से कहा, ‘‘अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नंद के घर पहुंचा दो, जहां अभी एक कन्या ने जन्म लिया है। मेरे स्थान पर उस कन्या को कंस को सौंप दो। मेरी ही माया से कंस की जेल के सारे पहरेदार सो रहे हैं और कारागार के सारे ताले भी अपने आप खुल गए हैं। यमुना भी तुम्हें जाने का मार्ग अपने आप देगी।’’
वसुदेव ने भगवान की आज्ञा पाकर शिशु को छाज में रखकर अपने सिर पर उठा लिया। यमुना में प्रवेश करने पर यमुना का जल भगवान श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श करने के लिए हिलोरें लेने लगा और जलचर भी श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श के लिए उमड़ पड़े। गोकुल पहुंचकर वसुदेव सीधे नंद बाबा के घर पहुंचे। घर के सभी लोग उस समय गहरी नींद में सोये हुए थे पर सभी दरवाजे खुले पड़े थे। वसुदेव ने नंद की पत्नी यशोदा की बगल में सोई कन्या को उठा लिया और उसकी जगह श्रीकृष्ण को लिटा दिया। उसके बाद वसुदेव मथुरा पहुंचकर अपनी कोठरी में पहुंच गए। कोठरी में पहुंचते ही कारागार के द्वार अपने आप बंद हो गए और पहरेदारों की नींद खुल गई। कंस को कन्या के जन्म का समाचार मिला तो वह तुरन्त कारागार पहुंचा और कन्या को बालों से पकड़कर शिला पर पटककर मारने के लिए ऊपर उठाया लेकिन कन्या अचानक कंस के हाथ से छूटकर आकाश में पहुंच गई। आकाश में पहुंचकर उसने कहा, ‘‘मुझे मारने से तुझे कुछ लाभ नहीं होगा। तेरा संहारक गोकुल में सुरक्षित है।’’ यह सुनकर कृष्ण के मामा कंस के होश उड़ गए। वह कृष्ण को ढ़ूंढ़कर मारने के लिए तरह-तरह के उपाय करने लगा। कंस ने उन्हें मारने के लिए अनेक प्रयास किए। उसने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए अनेक भयानक राक्षस भेजे परन्तु श्रीकृष्ण ने उन सभी का संहार कर दिया। कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने उसके पिता उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया और अपने माता-पिता वसुदेव तथा देवकी को कारागार से मुक्त कराया। तभी से भगवान श्रीकृष्ण के जनमोत्सव की स्मृति में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगी।
वास्तव में श्रीकृष्ण की लीलाओं को समझना पहुंचे हुए ऋषि-मुनियों और बड़े-बड़े विद्वानों के बूते से भी बाहर है। जन्माष्टमी का पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम अपनी बुद्धि और मन को निर्मल रखने का संकल्प लेते हुए अहंकार, ईष्र्या और द्वेष रूपी मन के विकारों को दूर करें। कृष्ण के उस संदेश को समझें जो उन्होंने गोवर्द्धन पर्वत की पूजा के लिए दिया था और फिर अर्जुन को धर्म की रक्षा के लिए सगे-संबंधियों से भी युद्ध करने का। ़(हिफी)

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