अध्यात्म

कुशोत्पटिनी अमावस्या व कलंक वाला चांद

(पं. मनोज शुक्ल-हिफी फीचर)
हमारे धार्मिक कृत्यों में कुशा को धारण करने की परम्परा है। यह बहुत पवित्र मानी जाती है। बारिश के दिनों मंे कुशा के पौधे सुगमता से मिल जाते हैं इसलिए भाद्रपद की अमावस्या को शुद्ध और पवित्र कुशा एकत्रित किया जाता है। इसलिए इस अमावस्या को कुशोत्पटिनी अमावस्या कहा जाता है। इस अमावस्या पर दान-पुण्य का महत्व होने के साथ पितृ दोष निवारण भी किया जाता है। इस बार कुशोत्पटिनी अमावस्या 23 अगस्त को तिथि के अनुसार होगी। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा के साथ ही गाय को हरा चारा खिलाने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
कुशोत्पटिनी अमावस्या के चैथे दिन भाद्रशुक्ल पक्ष की चतुर्थी को कलंक लगाने वाली चतुर्थी कहा जाता है। वैसे तो सभी चतुर्थी भगवान गणेश की उपासना के लिए उत्तम होती हैं लेकिन इस चतुर्थी पर चन्द्रमा को देखने से कलंक लगता है। इसके पीछे भी एक कहानी है। पौराणिक कथा के अनुसार गणेश जी के वाहन को देखकर चन्द्रमा ने उपहास किया तो गणेश जी ने उसे श्राप दिया था। उसी समय से भाद्रपद शुक्ल पक्ष के चंद्रमा को देखना, विशेष रूप से लड़कियों और महिलाओं के लिए वर्जित माना जाता है।
भाद्रपद, कृष्ण अमावस्या का प्रारम्भ- 22 अगस्त को 11.55 से होगा समापन- 23 अगस्त को 11.35 पर होगा। इसमंे अभिजित मुहूर्त- 12.16 से 01.06 तक रहेगा। अमृत काल- 10.27 तक से 24 अगस्त 12.05 तक होगा।
कुशोत्पटिनी अमावस्या का महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन, धार्मिक अनुष्ठानों और श्राद्ध के लिए पूरे साल उपयोग होने वाली कुशा को विधिपूर्वक उखाड़ा जाता है। माना जाता है कि इस दिन उखाड़ी गई कुशा सबसे शुद्ध और पवित्र होती है। साथ ही यह दिन पितरों को समर्पित है। इस दिन श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इतना ही नहीं जिन लोगों की कुंडली में पितृदोष होता है, उनके लिए यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन किए गए उपाय पितृदोष के अशुभ प्रभावों को कम करते हैं।
पितृदोष दूर करेंगे ये 5 अचूक उपाय- कुशोत्पटिनी अमावस्या के दिन ये उपाय करके आप पितृदोष से मुक्ति पा सकते हैं-
1. तर्पण और श्राद्ध- इस दिन सुबह स्नान करके अपने पितरों का तर्पण करें। जल में काला तिल, जौ और कुशा मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अर्पित करें। संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण से श्राद्ध कर्म करवाएं और उन्हें भोजन कराकर दक्षिणा दें।
2. पीपल के पेड़ की पूजा- अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। पीपल के पेड़ की जड़ में कच्चा दूध, गंगाजल और काला तिल मिलाकर चढ़ाएं। इसके बाद पितरों का स्मरण करते हुए पेड़ की सात परिक्रमा करें और संध्याकाल में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। साथ ही तुलसी के पास शुद्ध घी का एक दीपक जलाएं।
3. गाय को भोजन- अमावस्या के दिन गाय को हरा चारा खिलाएं। साथ ही, भोजन बनाते समय पहली रोटी गाय के लिए निकालें और उसे खिलाएं। ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति आती है।
4. गरीबों को दान- इस दिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार गरीबों, जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें। पितरों के नाम से दान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
5. श्रीमद् भगवत गीता का पाठ- पितृदोष के निवारण के लिए इस दिन घर पर श्रीमद् भगवत गीता के गजेंद्र मोक्ष अध्याय का पाठ करें। यह पाठ पितरों को मोक्ष दिलाता है और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है।
शनि अमावस्या का संयोग- कुशोत्पाटिनी अमावस्या और शनिवार का दुर्लभ संयोग बन रहा है। जब यह अमावस्या शनिवार के दिन पड़ती है, तो इसे शनि अमावस्या भी कहते हैं। इस संयोग से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि इस दिन शनि देव की पूजा से शनि दोष भी शांत होता है।
चतुर्थी पर चन्द्रमा को मिला था श्राप
कुशोत्पटिनी अमावस्या के चैथे दिन अर्थात् 27 अगस्त बुधवार को भाद्रपद शुक्ल गणेश चतुर्थी है। शिव-पार्वती के पुत्र गणेश जन्म की कथा वर्णन से पता चलता है गणेश जी का जन्म न होकर निर्माण पार्वती जी के शरीर से उतारी गई हल्दी से हुआ था। स्नान पूर्व गणेश को अपने रक्षक के रूप में बैठा कर वो चली गईं और शिव जी इस बात से अनभिज्ञ थे। पार्वती से मिलने में गणेश को अपना विरोधी मानकर उनका सिर काटकर अपने रास्ते से हटा दिया।
जब वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो अपने गणो को उन्होंने आदेश दिया की उस पुत्र का सिर लाओ जिसके ओर उसकी माता की पीठ हो। शिव-गणो को एक हाथी का पुत्र जब इस दशा में मिला तो वो उसका सिर ही ले आए और शिव जी ने हाथी का सिर उस बालक के सिर पर लगाकर बालक को पुनर्जीवित कर दिया। यह घटना भाद्रमास मास की चतुर्थी को हुई थी इसलिए इसी को गणेश जी का जन्म मानकर इस तिथि को गणेश चतुर्थी माना जाता है। सबसे अलग शरीर होने के
कारण सभी देवताओं ने गणेश को सभी देवताओं का अग्र्ज बना दिया और तब से गणेश वंदना हर पूजा से पहले करी जाती है।
चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की तिथि माना जाता है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। भाद्रपद के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
हाँ, ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भादो माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) पर चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इससे व्यक्ति पर झूठा कलंक लग सकता है या फिर उस पर झूठे आरोप लग सकते हैं. यह कथा श्री गणेश और चंद्रमा के बीच की है, जब चंद्रमा ने गणेश जी का मजाक उड़ाया था, जिसके कारण भगवान गणेश ने उन्हें श्राप दिया।
इस मान्यता के पीछे की कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, गणेश जी अपनी सवारी चूहे पर यात्रा कर रहे थे और वे अपने भारी वजन के कारण लड़खड़ा गए।
उन्हें लड़खड़ाते देख चंद्रमा उन पर हँसने लगे।
इससे भगवान गणेश क्रोधित हो गए और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया कि जो भी भादो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा को देखेगा, उसे समाज में तिरस्कार, अपमान, और झूठे आरोपों का सामना करना पड़ेगा.
क्या करें अगर गलती से चांद दिख जाए- यदि गलती से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा दिख जाए, तो इस कलंक या दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान कृष्ण से संबंधित स्यमंतक मणि की कथा को पढ़ना या सुनना चाहिए, ऐसा भी कहा जाता है।
यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक
मान्यता है जो गणेश चतुर्थी के उत्सव के दौरान विशेष रूप से ध्यान रखी जाती है। (हिफी)

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