ब्रिटेन में लेबर पार्टी का राज

लगभग डेढ़ दशक के बाद ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनने जा रही है। गत् 4 जुलाई को संपन्न हुए चुनाव में ऋषि सुनक की कंजरवेटिव पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा है। एनआरआई टैक्स जैसे कई मामले थे जिनके चलते जनता कंजरवेटिव पार्टी से नाराज हो गयी। ऋषि सुनक महंगाई को भी नियंत्रण में नहीं रख पाये थे। इस तरह कई कारण थे जिससे ऋषि सुनक के 11 मंत्री चुनाव हार गये। इनमें फारेन सेक्रेट्री डेविड कैमरान, डिफेंस सेक्रेटरी ग्रांट शाप्स, एजुकेशन सेक्रेटरी गिलियन कीमान, ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी मार्क हार्पन और जस्टिस सेक्रेटरी जनी मरसर शामिल हैं। चुनाव में लेबर पार्टी के नेता कीट स्टार्मर ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री होंगे। उनकी पार्टी को 400 से ज्यादा सीटें मिली हैं और उनके पास स्पष्ट बहुमत है। बदलाव के लिए मतदान करें, यह उनकी थीम थी और 14 साल के बाद जनता ने बदलाव किया है। ब्रिटेन में बनने जा रही नई सरकार के साथ भारत के संबंध अच्छे रहेंगे, ऐसी संभावना है।
ब्रिटेन की जनता ने आम चुनाव को लेकर अपना फैसला सुना दिया है। इस चुनाव में लेबर पार्टी को बहुमत मिला है। इस चुनाव में ऋषि सुनक की कंजरवेटिव पार्टी को कड़ी शिकस्त मिली है। लेबर पार्टी 400 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर बहुमत में आयी। कंजर्वेटिव पार्टी बीते 14 साल से सत्ता में थी। 2019 में हुए आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी को 365 सीटें मिली थी, जबकि उस दौरान लेबर पार्टी को 202 सीटों पर जीत मिली थी। सत्ता से कजर्वेंटिव पार्टी के बाहर होने की कई अहम वजहें मानीं जा रही हैं। इस चुनाव में ऋषि सुनक की पार्टी को ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों का भी साथ नहीं मिला है। ब्रिटेन में मौजूदा समय में भारतीय मूल के 18 लाख के आसपास वोटर्स हैं। इनमें से 65 फीसदी लोग सुनक सरकार से नाराज चल रहे थे।
ऋषि सुनक ब्रिटेन के आर्थिक मोर्चे पर पुरी तरह से विफल रहे हैं। सुनक ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति को पहले से बेहतर नहीं कर पाए। साथ ही ऋषि सुनक ब्रिटेन में महंगाई कम करने में भी पूरी तरह से विफल रहे हैं। टैक्स में लगातार इजाफा हुआ। रहन-सहन के खर्च में बढ़ोतरी होती रही। इसके उल्ट लेबर पार्टी नए घर बनाने को लेकर हाउसिंग नीति लेकर आई। जिसे लोगों ने हाथों हाथ लिया है। ऋषि सुनक जब पीएम बने तो उस दौरान सभी को उम्मीद थी कि वह सत्ता में आते ही सबसे पहले महंगाई को कंट्रोल करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके उलट चीजें और महंगी हुई और लोगों के खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। इसके कारण सुनक सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा दिखने लगा।
कंजर्वेटिव पार्टी के सत्ता में आने के बाद टैक्स में भी बढ़ोतरी देखने को मिली। सुनक सरकार ने कई तरह के टैक्स में बढ़ोतरी की थी जिनमें से एक था एनआरआई टैक्स। इसे लेकर भी जनता में मौजूदा सरकार को लेकर विरोध बढ़ने लगा था। ब्रिटेन की ऋषि सुनक सरकार बीते कुछ वर्षों में अपराधिक घटनाओं को रोकने में उस तरह से सफल नहीं हुई, जैसा कि उन्होंने कहा था।
नई सरकार बनाने जा रहे लेबर पार्टी के कीरी स्टार्मर पूर्वी इंग्लैंड के सरी में ऑक्सटेड नामक एक छोटे शहर में पले-बढ़े हैं। उनके पिता एक कारखाने में कारीगर थे और मां अस्पताल में नर्स थीं। स्टार्मर की मां को एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी थी, जिसके चलते बचपन में उन्हें काफी परेशानियां उठानी पड़ीं। इन सबके बीच स्टार्मर ने 1985 में लीड्स विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसी के साथ स्टार्मर विश्वविद्यालय जाने वाले परिवार के पहले सदस्य बन गए। वकील बनने के बाद स्टार्मर ने काफी समय तक गरीबों को मुफ्त कानूनी सलाह दी और कई बड़े मामलों की पैरवी की। उन्हें मानवाधिकारों से जुड़े मामलों में विशेषज्ञता हासिल है।स्टार्मर ने उत्तरी आयरलैंड पुलिसिंग बोर्ड के मानवाधिकार सलाहकार के रूप में भी काम किया है। 2002 में उन्हें क्वीन्स काउंसिल नियुक्त किया गया। कानून और आपराधिक न्याय के क्षेत्र में सेवाओं के लिए 2014 में स्टार्मर को नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द बाथ नियुक्त किया गया। स्टार्मर पहली बार 2015 में संसद के लिए चुने गए। इसके बाद वे एक साल तक ब्रिटेन की शैडो कैबिनेट में आव्रजन मंत्री थे। इसके अलावा स्टार्मर 2016 से 2020 तक यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के लिए शैडो राज्य सचिव भी थे। अप्रैल 2020 में स्टार्मर को लेबर पार्टी का अध्यक्ष चुना गया।
कीर स्टार्मर के प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी को उन्हीं की सोच जैसा एक और दोस्त मिल जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि कीर स्टार्मर के राज में भारत संग ब्रिटेन के रिश्ते और गहरे होंगे। इसकी वजह है कि पीएम मोदी की तरह ही कीर स्टार्मर भी सोच रखते हैं। ब्रिटेन आम चुनाव में लेबर पार्टी के उम्मीदवार कीर स्टार्मर का नारा रहा है- कंट्री फस्र्ट, पार्टी सेकेंड। पूरे चुनावी अभियान में लेबर पार्टी और कीर स्टार्मर का इस पर फोकस रहा। यही वजह है कि वोटरों ने कीर स्टार्मर की झोली भर दी और आज वह प्रधानमंत्री बनने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। कीर स्टार्मर की यह सोच- कंट्री फर्स्ट, पार्टी सेकेंड, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन से मिलती-जुलती है। पीएम नरेंद्र मोदी के लिए भी नेशन फस्र्ट है। प्रधानमंत्री मोदी अनेक मौकों पर यह दोहरा चुके हैं कि वह ‘नेशन फर्स्ट और पार्टी सेकेंड’ सिद्धांत का पालन करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में इस विजन को सकार किया है। ‘नेशन फस्र्ट-पार्टी सेकेंड’ सिद्धांत 2014 से ही पीएम मोदी के काम का हिस्सा रहा है। केवल चुनावी अभियान ही नहीं, जब वह सत्ता में आए तो उन्होंने नेशन फस्र्ट सिद्धांत को ही तरजीह दी। पीएम मोदी का कहना है कि देश का विकास सिर्फ
और सिर्फ नेशन फस्र्ट सिद्धांत से ही होगा। नेशन फर्स्ट सिद्धांत को लेकर वह कांग्रेस को कई बार कोस भी चुके हैं कि उसके लिए केवल परिवार फस्र्ट है, जबकि भाजपा के लिए नेशन फस्र्ट। कीर स्टार्मर का कंट्री फस्र्ट, पार्टी सेकेंड सिद्धांत भी मोदी के नेशन फस्र्ट सिद्धांत का अंग्रेजी वर्जन लगता है।
पिछली ब्रिटिश संसद में ऋषि सुनक प्रधानमंत्री थे। उसमें 15 भारतीय मूल के सांसद थे। जिनमें से आठ लेबर पार्टी से और सात कंजर्वेटिव पार्टी से थे। जिसने ब्रिटिश राजनीतिक इतिहास में भारतीय मूल के लोगों के एक मजबूत विविधतापूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया है। ब्रिटेन के आम चुनाव कुल 107 ब्रिटिश-भारतीय 680 सीटों के लिए चुनाव लड़ रहे थे। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)