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स्वतंत्रता दिवस के सबक -2

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

2 जुलाई 1757, प्लासी की लड़ाई में हार के बाद, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला एक धोखे के चलते मारे गए जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में एकछत्र राज हो गया। करीब 50 हजार सैनिक, 500 हाथी और 50 तोपों से लैस उनकी सेना, ईस्ट इंडिया कंपनी के मात्र 3000 सैनिकों से हार गई थी। सिर्फ इस एक धोखे की बदौलत। उनको ये धोखा उनके ही प्रधान सेनापति मीर जाफर ने दिया।
सिराजुद्दौला से उनके रिश्तेदार और दरबारी खफा थे। उनकी बड़ी मौसी घसीटी बेगम उन्हें पसंद नहीं करती थी। उनके अलावा नवाब अलीवर्दी खान की दूसरी बेटी मौमीना बेगम का बेटा शौकत जंग, नवाब बनने के ख्वाब देखता था। हालांकि सिराजुद्दौला, अलीवर्दी खान की पहली पसंद थे। इसी वजह से शौकत जंग भी उनसे नफरत करता था।ईस्ट इंडिया कंपनी की हरकतें देखते हुए सिराजुद्दौला के नाना अलीवर्दी खान ने अपने निधन से पहले, उन्हें यूरोपीय व्यापारियों से सावधान रहने की सलाह दी थी। इसके चलते नवाब कंपनी की गतिविधियों पर खास ध्यान देते थे। मुगल बादशाह ने कंपनी को बंगाल में व्यापार करने के कुछ विशेष अधिकार दिए थे, जिन्हें दस्तक कहा जाता था। नवाब इन अधिकारों के भी खिलाफ थे, क्योंकि इनके इस्तेमाल के लिए कंपनी उनके दरबारियों को घूस देकर काम चलाया करती थी।
इसके अलावा ईस्ट इंडिया कंपनी सिराजुद्दौला से नाराज चल रहे मीर जाफर और दूसरे दरबारियों को भड़काने के भी लगातार प्रयास करती रही। बात यहीं नहीं रुकी, ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाब को नीचा दिखाने के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम की किलाबन्दी मजबूत करने का काम शुरू कर दिया। इसके जवाब में नवाब ने कलकत्ता पर हमला बोल दिया। वहां के कासिम बाजार इलाके पर कब्जा करने के बाद नवाब की सेना ने फोर्ट विलियम पर अटैक किया।नवाब की फौज ने 18 गुणे 14 के छोटे तहखानों में 146 ब्रिटिश सैनिकों और उनके परिवारवालों को कैद भी कर लिया गया, जिसके चलते 43 लोगों की दम घुटने से मौत हो गई, ये घटना ब्लैक होल ट्रैजेडी के नाम से जानी जाती है।
इतिहासकार लिखते हैं कि मीर जाफर समेत कुछ मंत्रियों ने नवाब सिराजुद्दौला के शासन से नाराज होकर, बंगाल में तख्तापलट का फैसला किया। सिराजुद्दौला को तख्त से उखाड़ फेंकने की इस साजिश की जानकारी बंगाल में कंपनी के अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव को दी गई। मौके का फायदा उठाते हुए क्लाइव ने मीर जाफर का साथ देने का फैसला किया। दोनों के बीच सौदा हुआ कि मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया जाएगा। अपनी कार्रवाई की शुरुआत करते हुए, रॉबर्ट क्लाइव ने चंदरनगर पर हमले का आदेश दिया।
इससे गुस्साए नवाब ने ईस्ट इंडिया कंपनी से युद्ध करने का फैसला किया। भारत में कदम जमाने की कोशिश कर रहे फ्रांस ने इस मौके को देखते हुए नवाब की सेना का साथ देने की ठानी। उनके समर्थन से सिराजुद्दौला ने बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी को खत्म करने का फैसला किया। दोनों सेनाओं का सामना प्लासी के मैदान पर हुआ। 23 जून 1757, गुरुवार का दिन। प्लासी के मैदान पर गंगा नदी के किनारे नवाब की फौज और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना आमने सामने थी। करीब 50 हजार सैनिक, 500 हाथी और 50 तोपों से लैस सिराजुद्दौला की सेना ईस्ट इंडिया कंपनी के करीब 3000 सैनिकों और 12 तोपों के मुकाबले कई गुना बड़ी थी। कंपनी की सेना के सौदे के तहत मीर जाफर ने साजिश को अंजाम दिया। अफगान और मराठाओं से हमले के खतरे का हवाला देते हुए जाफर ने नवाब को प्लासी मैदान में पूरी सेना नहीं उतारने की सलाह दी। इस सलाह को मानते हुए सिराजुद्दौला ने मीर मदान की अगुवाई में 8 से 10 हजार सैनिकों को लड़ने का हुक्म दिया। इस टुकड़ी के अटैक और फ्रेंच तोपों के हमलों से कंपनी के 27 जवान मारे गए। इस बीच रॉबर्ट क्लाइव ने तय किया कि जैसे-तैसे दिन निकल जाने के बाद रात के समय नवाब पर हमला किया जाएगा। इस बीच बहुत तेज बारिश होने लगी। मानसूनी इलाकों में युद्ध का अनुभव रखने वाले क्लाइव ने तुरंत गोला-बारूद को भीगने से बचाया। इस बीच मीर जाफर को सिराजुद्दौला की फौज के गोले-बारूद को बर्बाद करने का मौका मिल गया। इस प्रकार ज्यादा तोपें होने के बावजूद नवाब कुछ न कर पाने की स्थिति में आ गए।
बारिश रुकते ही मीर मदान ने स्थिति समझे बिना ही हमला बोल दिया। क्लाइव के आदेश पर अंग्रेजी सेनाओं ने अपनी सारी तोपें, उसकी टुकड़ी की तरफ मोड़ दीं और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना नवाब की फौज पर कहर बनकर गिरी। इस लड़ाई में मीर मदान की मौत हो गई।इसके बाद नवाब ने मीर जाफर से सलाह मांगते हुए आगे की योजना पूछी। मीर जाफर ने नवाब को पीछे हट जाने की सलाह दी। सिराजुद्दौला ने मीर जाफर की बात मानकर बहुत बड़ी गलती कर दी। लड़ाई के रोके जाने के बाद जब नवाब की फौज वापस लौटने लगी तब क्लाइव की सेना ने फिर अचानक हमला बोल दिया। इससे नवाब और उसकी सेना तितर-बितर होकर बौखला गई। क्लाइव ने लड़ाई जीत ली। नवाब सिराजुद्दौला को भागना पड़ा।एक ऊंट पर बैठकर सिराजुद्दौला जैसे तैसे मुर्शिदाबाद पहुंचे। मशहूर इतिहासकार सैयद गुलाम हुसैन खान ने इस किस्से को बताते हुए अपनी किताब में लिखा, ‘सिराजुद्दौला आम आदमियों के कपड़े पहनकर भागे थे। उनके साथ नजदीकी कुछ रिश्तेदार भी थे। करीब सुबह तीन बजे उन्होंने अपनी पत्नी लुत्फ-उन-निसा और कुछ करीबी लोगों को ढंकी हुई गाड़ियों में बैठाया, जितना सोना चांदी वो अपने साथ ले जा सकते थे, अपने साथ लिया और राजमहल छोड़ कर भाग गए। छिपते-छिपाते वो दो दिन के बाद सबको साथ लेकर जैसे तैसे पटना पहुंचे। मीर जाफर के बेटे मीरान ने सिराजुद्दौला को ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पटना के एक फकीर शाह दाना की मुखिबरी की वजह से सिराजुद्दौला के ठिकाने का पता मीर जाफर के सिपाहियों को लग गया। इसके बाद सिराजुद्दौला को हथियारबंद लोगों ने घेर लिया और पकड़ लिया।अपनी कार्रवाई की शुरुआत करते हुए, रॉबर्ट क्लाइव ने चंदरनगर पर हमले का आदेश दिया।
अंततः 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के बाद, 1858 में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत हो गया था। भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी की विदाई के बाद ब्रिटिश क्राउन का भारत पर सीधा नियंत्रण हो गया, जिसे ब्रिटिश राज के नाम से जाना जाता है। -क्रमशः (हिफी)

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