मालेगांव कांड के सबक

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
महाराष्ट्र के मालेगांव मंे आज से 17 वर्ष पहले एक विस्फोट किया गया जिसमंे 6 लोग मारे गये और 100 के करीब घायल हो गये थे। देश मंे आतंकवादी विस्फोट दशकों से हो रहे हैं और उनमंे पाकिस्तान मंे पल रहे आतंकी अपना हाथ भी बताते हैं। इसलिए ज्यादातर विस्फोट मंे मुसलमान ही आरोपित मिले और उनको सजा भी दी गयी लेकिन महाराष्ट्र के मालेगांव मंे मस्जिद में विस्फोट हुआ था इसलिए भाजपा की नेता साध्वी प्रज्ञा समेत कई हिन्दुओं को आरोपित किया गया। इसलिए इसकी चर्चा कुछ ज्यादा रही। राजनीति का स्तर जैसा हो गया है, उसमें कुछ आश्चर्यजनक नहीं लगता। इसलिए उसी समय से भगवा आतंकवाद का भ्रम फैलाया गया। एक अल्पसंख्यक समुदाय को तो मौका ही मिल गया और हिन्दुओं को निशाने पर लिया जाने लगा। मालेगांव मंे बम एक मोटर साइकिल में प्लांट किया गया था और उस बाइक की मालकिन मध्य प्रदेश की मौजूदा सांसद साध्वी प्रज्ञा थीं। राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) ने सबूत जुटाए और 31 जुलाई 2025 को मुंबई की एनआईए विशेष कोर्ट ने फैसला सुनाया कि साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत सभी सातों आरोपियों को बरी किया जाता है क्योंकि सरकार पर्याप्त सबूत नहीं जुटा सकी। विस्फोट में मारे गये लोगों के परिजनों को 2-2 लाख और घायलों को 50 हजार रुपये मुआवजा देने का भी कोर्ट ने आदेश दिया है। इस मामले ने एक सबक यह भी सिखाया कि राजनीतिक प्रतिशोध में किसी को आरोपित नहीं करना चाहिए। साध्वी प्रज्ञा को 17 साल तक अपमान का घूंट पीना पड़ा। हालांकि जनता ने उनको अपना प्रतिनिधि चुनकर संसद मंे भेजा है।
महाराष्ट्र के मालेगांव में साल 2008 में हुए बम धमाके मामले में 17 साल का इंतजार खत्म हो गया है। मुंबई की एनआईए स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में 31 जुलाई को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया है। स्पेशल जज एके लाहोटी ने इस केस में फैसला सुनाया है। ध्यान रहे कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में मस्जिदों मंे ब्लास्ट हुआ था। ब्लास्ट में 6 लोगों की मौत और करीब 100 लोग घायल हुए थे। जज ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा है कि बम को मोटर बाइक में प्लांट किया गया था। बम कहीं और भी रखा गया हो सकता है। कश्मीर से आरडीएक्स लाया गया इसका सबूत नहीं। किसने और कैसे मोटर बाइक पार्क किया, इनका भी सबूत नहीं है।
स्पॉट पंचनामा करते वक्त घटना के बाद जो हंगामा हुआ उस दौरान वहां के पत्थर को सीज नहीं किया गया। फिंगर सैंपल नहीं कलेक्ट किया गया, जो सबूत कलेक्ट किए गए वो कंटामिनेटेड हो सकते हैं। बाइक का चेसिस वाइप आउट नहीं किया गया था। इसको रिस्टोर नहीं किया गया। साध्वी बाइक की मालिक जरूर हैं लेकिन बाइक उसके पजेशन में था इसका सबूत नहीं है। साजिश की बैठक को साबित करने में भी सरकारी पक्ष नाकाम रहा।
एनआईए कोर्ट ने 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह तो साबित कर दिया कि मालेगांव में विस्फोट हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं कर पाया कि उस मोटरसाइकिल में बम रखा गया था। श्रीकांत प्रसाद पुरोहित के आवास में विस्फोटकों को रखने या असेंबल करने का कोई सबूत नहीं है।
अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि घायलों की संख्या 101 नहीं, बल्कि 95 थी और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट मेंहेराफेरी की गई थी। सभी गवाहों को बेनिफिट ऑफ डाउट दिया जा रहा है। दुनिया का कोई भी धर्म आंतक की बात नहीं करता है। इसके बाद एनआईए कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। विस्फोट के सभी छह पीड़ितों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये और सभी घायलों को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी दिया।
अभियोजन पक्ष ने अभिनव भारत संगठन को एक सामान्य संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अभिनव भारत
के धन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया गया था। मुंबई की एनआईए स्पेशल कोर्ट करीब 17 साल की जांच, कई गिरफ्तारियों, गवाहों के बयानों के आधार पर फैसला सुनाया।
मामले में बीजेपी की पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी पर आतंकवाद और आपराधिक साजिश के गंभीर आरोप लगे थे। केस में 40 गवाह होस्टाइल हो गए थे। उस दौरान आरोप लगा कि दबाव में बयान दिलवाए गए।
साल 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष कोर्ट से बरी होने के बाद साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि इस मामले में 17 साल तक उन्हें अपमानित किया गया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद ने कहा कि उन्हें अपने ही देश में आतंकी बनाया गया और इससे उनका पूरा जीवन बर्बाद हो गया। साध्वी ने कोर्ट के फैसले को भगवा और हिंदुत्व की जीत बताया। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के मामलों की सुनवाई के लिए नियुक्त विशेष न्यायाधीश ए के लाहोटी ने अभियोजन पक्ष के मामले और जांच में कई खामियों को उजागर किया और कहा कि आरोपी व्यक्ति संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं। न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि मामले को संदेह से परे साबित करने के लिए कोई ‘विश्वसनीय और ठोस’सबूत नहीं है। अदालत ने कहा कि इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधान लागू नहीं होते।अदालत ने यह भी कहा कि यह साबित नहीं हुआ है कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल ठाकुर के नाम पर पंजीकृत थी, जैसा कि अभियोजन पक्ष ने दावा किया था। अभियोजन पक्ष का दावा था कि विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा स्थानीय मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने के इरादे से किया गया था। अदालत ने इस आरोप को मनगढ़ंत साबित कर दिया है। साध्वी प्रज्ञा ने बी.ए., एम.ए. (इतिहास) सी.पी.एड., बी.पी.एड., एम.जे.एस. कॉलेज, भिंड, मध्य प्रदेश, जिवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मध्य प्रदेश, गर्ल्स फिजिकल कॉलेज, पेंड्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ और वी.एन.एस. कॉलेज, भोपाल, मध्य प्रदेश से शिक्षा ग्रहण की। फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ने कहा, मैंने शुरू से ही कहा था कि जिन्हें भी जांच के लिए बुलाया जाता है, उनके पीछे कोई न कोई आधार जरूर होना चाहिए। मुझे जांच के लिए बुलाया गया और मुझे गिरफ्तार करके प्रताड़ित किया गया। इससे मेरा पूरा जीवन बर्बाद हो गया। मैं एक साधु का जीवन जी रही थी, लेकिन मुझ पर आरोप लगाए गए और कोई भी हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ। मैं जिंदा हूं, क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं। उन्होंने एक साजिश के तहत भगवा को बदनाम किया। आज भगवा की जीत हुई है, हिंदुत्व की जीत हुई है और ईश्वर दोषियों को सजा देगा। (हिफी)