लेखक की कलमसम-सामयिक

संविधान के प्रति निष्ठा अपरिहार्य

 

हमको 15 अगस्त 1947 को जब स्वतंत्रता मिली तब खुशी के माहौल में एक सवाल भी था कि हमारी शासन पद्धति कैसी होनी चाहिए। एक लम्बे समय से भारत मंे राजतंत्र चल रहा था। छोटे-बड़े राजा एक दूसरे से लड़ते भी थे। संभवतः इसी का नतीजा था कि भारत को लगभग एक हजार साल की गुलामी झेलनी पड़ी। इसीलिए स्वाधीनता के बाद शासन पद्धति का सवाल महत्वपूर्ण हो गया था। सरदार बल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शिता और अदम्य साहस ने भारत की पांच सौ से अधिक रियासतों को समाप्त कर भारत गणराज्य बनाया और बहुत पहले जिन राजवंशों ने लोकतंत्र की नींव रखी थी, उसे फिर से मजबूत किया गया। लोकतंत्र की व्यवस्था को चलाने के लिए संविधान की रचना जरूरी थी। प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता मंे संविधान सभा बनी और लगभग तीन साल तक इस पर गंभीर विचार-मंथन के बाद 26 नवम्बर 1949 को मौजूदा संविधान को विधिवत स्वीकार किया गया था। इसके दो महीने बाद अर्थात् 26 जनवरी 1950 को इसे देश मंे लागू किया गया और तभी से गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। इस संविधान की रखवाली के लिए मुख्य रूप से न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका का गठन किया गया। अभी हाल मंे सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को लेकर कहा कि सरकार के विधेयकों को रोकना अच्छी बात नहीं है। यह एक छोटा ही उदाहरण है लेकिन संविधान के प्रति निष्ठा पर सवाल जैसा है। संविधान के प्रति निष्ठा अपरिहार्य है।

पिहले हम राज्यपालों की भूमिका पर चर्चा करेंगे। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राज्यपाल बिना किसी कार्रवाई के विधेयकों को अनिश्चितकाल के लिए लंबित नहीं रख सकते। गत दिनों मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि राज्य के एक अनिर्वाचित प्रमुख के रूप में राज्यपाल को कुछ संवैधानिक शक्तियां सौंपी गई हैं। इसमें कहा गया है कि राज्यपाल बिना किसी कार्रवाई के विधेयक को अनिश्चित काल तक लंबित रखने के लिए स्वतंत्र नहीं हो सकते।

संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं- विधेयक पर सहमति देना, सहमति रोकना और उस राष्ट्रपति के विचार हेतु आरक्षित करना। पीठ ने पंजाब में राज्यपाल द्वारा विधेयक को लंबे समय से लंबित रखने के मामले में अपने 10 नवंबर के आदेश में कहा, “शक्ति (राज्यपाल द्वारा) का उपयोग राज्य विधानमंडलों द्वारा कानून बनाने के सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता है।” शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई (लंबित रखने की) शासन के संसदीय पैटर्न पर आधारित संवैधानिक लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत होगी। संविधान दिवस पर ऐसे सवालों पर सोचना होगा।

गौरतलब है कि पंजाब सरकार के अलावा तमिलनाडु और केरल सरकारों ने भी सहमति के लिए भेजे गए विधेयकों पर कार्रवाई करने में राज्यपाल की देरी के खिलाफ अदालत के समक्ष अलग-अलग रिट याचिकाएं दायर की हैं। विधेयकों के लंबित रहने के कारण प्रशासन का कामकाज प्रभावित हो रहा है। साल 2015 में भारत सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था। 2015 इसलिए खास वर्ष था क्योंकि उस साल संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती मनाई जा रही थी। संवैधानिक मूल्यों के प्रति नागरिकों में सम्मान की भावना को बढ़ावा देने के लिए तब से यह दिवस हर साल मनाया जाता है। देश भर में 26 नवंबर संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। संवैधानिक मूल्यों को प्रमोट करने के लिए सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट मंत्रालय ने संविधान दिवस मनाने का फैसला किया था। बता दें राष्ट्रीय संविधान दिवस को राष्ट्रीय कानून दिवस और भारतीय संविधान दिवस के नाम से भी जाना जाता है

देश की संविधान सभा ने मौजूदा संविधान को विधिवत रूप से 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया था। हालांकि स्वीकार करने के दो महीने बाद यानी 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था। इस वजह से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक न्याय मंत्रालय ने 19 नवंबर 2015 को 26 नवंबर के दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था। संवैधानिक मूल्यों की जानकारी देश के हर नागरिक को हो, इसलिए इस दिन को मनाया जाता है। इस दिन स्कूल और कॉलेजों में भारत के संविधान की प्रस्तावना को पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही भारत के संविधान की विशेषता और महत्व पर भी चर्चा की जाती है। साल 2015 में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया था। यह खास इसलिए भी है, क्योंकि इसी साल संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती मनाई जा रही थी।

भारतीय संविधान को विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान माना जाता है। इसमें कई देशों के संविधान को अपनाया गया है। इसके कई हिस्से यूके, अमेरिका, जर्मनी, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान के संविधान से लिये गए हैं। भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकार, कर्तव्य, सरकार की भूमिका, पीएम, राष्ट्रपति, गवर्नर, और सीएम की शक्तियों का भी जिक्र है।

संविधान की मूल प्रतियां टाइप या प्रिंटेड नहीं थी। इसे प्रेम नारायण रायजादा ने हाथ से लिखा था। संविधान को कैलीग्राफी में इटैलिक अक्षरों में लिखा गया है। संविधान की ओरिजिनल कॉपी 16 इंच चैड़ी है। इसे 22 इंच लंबे प्रैचमेंट शीट पर लिखा गया है। इसमें कुल 251 पेज हैं। पूरा संविधान तैयार करने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का वक्त लगा था। 26 नवंबर 1949 को यह पूरा हुआ था और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था।

संविधान की असली कॉपी हिंदी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में लिखी गई थी। 24 जनवरी,1950 को हुए संविधान सभा में 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। इनमें 15 महिलाएं शामिल थीं। भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 खण्ड और 8 अनुसूचियां हैं। हालांकि, इस समय हमारे संविधान में 470 अनुच्छेद, 25 खण्ड और 12 अनुसूचियों के साथ-साथ 5 परिशिष्ट भी हैं। संविधान में कुल 1,45,000 शब्द हैं। अंतिम रूप देने से पहले इसमें 2000 से अधिक संशोधन किए गए थे। भारतीय संविधान की मूल संरचना भारत सरकार अधिनियम, 1935 पर आधारित है। डॉ. भीमराव आंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है। भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. आंबेडकर संविधान समिति के अध्यक्ष भी थे। हमारे संविधान का जितना भारी भरकम आकार है, उतनी ही विस्तृत उसकी गरिमा है। हमंे अपने संविधान की भावना को समझना और आदर देना होगा। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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