मान ने रखाधर्मग्रंथों का मान

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
धर्म और सम्प्रदाय आस्था के विषय हैं। इसी तरह धर्मग्रंथ भी लोगों की आस्था से जुड़े हैं। हमारे देश के संविधान मंे धर्मों और उनके ग्रंथों को सम्मान देने की बात कही गयी है। हम अपने धर्म-सम्प्रदाय का सम्मान करें और दूसरे के धर्मग्रंथ की अवहेलना करें तो इससे संघर्ष की नौबत आ सकती है। पंजाब में धर्मग्रंथ बहुत ही संवेदनशील माने गये हैं। सिखों के लिए सबसे बड़ा और सबसे पूजनीय गुरुग्रंथ साहिब ही है। इसलिए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की सरकार ने 15 जुलाई को धर्मग्रंथों के अपमान अर्थात् बेअदबी के विरोध में एक विधेयक विधानसभा मंे पारित किया है। इसमें सिर्फ सिखों की धार्मिक भावना को ध्यान मंे नहीं रखा गया है बल्कि सभी धर्मावलम्बियों की आस्था का सम्मान किया गया है। गुरुग्रंथ साहिब के साथ ही श्रीमद् भगवत गीता, रामचरित मानस, कुरान शरीफ और बाइबिल जैसे धर्मग्रंथों का अपमान करने वाले को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी। मुख्मयंत्री भगवंत सिंह मान ने इस प्रकार धर्मग्रंथों के सम्मान को बरकरार रखने का प्रयास किया है। राज्य मंे पूर्ववर्ती भाजपा-अकालीदल और कांग्रेस की सरकारों के दौरान भी धर्मग्रंथों की बेअदबी को लेकर जनता का आक्रोश देखने को मिला था। भगवंत मान की सरकार ने विधेयक में यह भी प्रावधान रखा है कि धार्मिक ग्रंथों के अपमान से साम्प्रदायिक दंगा भड़काने का प्रयास भी दंडनीय अपराध होगा। विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजपा ने इस विधेयक पर सुझाव भी रखे।
पंजाब में धर्मग्रंथों के अपमान यानी बेअदबी करने वालों से अब सख्ती से निपटा जाएगा। भगवंत मान सरकार ने बेअदबी विरोधी विधेयक 15 जुलाई को विधानसभा से पारित करा लिया है। इस विधेयक के तहत श्री गुरु ग्रंथ साहिब, भगवद् गीता, कुरान शरीफ और बाइबिल जैसे पवित्र धार्मिक ग्रंथों का अपमान करने वालों के लिए आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है। पंजाब में बेअदबी बड़ा संवेदनशील मुद्दा रहा है। पूर्ववर्ती भाजपा-अकाली दल और कांग्रेस सरकारों को इस मु्द्दे पर जनता का गुस्सा झेलना पड़ा है।
बेअदबी विरोधी विधेयक-2025 के तहत धार्मिक ग्रंथों के अपमान पर न्यूनतम 10 साल की सजा और अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। मान सरकार ने कहा है कि बेअदबी विरोधी कानून का मकसद धार्मिक ग्रंथों के जानबूझकर अपमान करने वालों पर शिकंजा कसना है। साथ ही सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने के प्रयासों को रोकना है। यदि बेअदबी का आरोपी कोई नाबालिग है तो इस केस में उसके माता-पिता को भी पक्षकार बनाया जा सकता है। यानी जो भी माता-पिता या अभिभावक जानबूझकर नाबालिग बच्चे या मानसिक विक्षिप्त-दिव्यांग व्यक्ति को संभालने में असफल रहते हैं, उन्हें भी इसके तहत आरोपी बनाया जा सकता है। विधेयक में कहा गया है कि अगर धार्मिक ग्रंथों का अपमान कर कोई सांप्रदायिक दंगे भड़काता है, जान-माल का नुकसान होता है या सार्वजनिक-निजी संपत्ति में तोड़फोड़ की जाती है तो सजा 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है। दोषी व्यक्ति को 10 से 20 लाख रुपये तक का जुर्माना भी देना पड़ सकता है। आजीवन कारावास की सजा होती है तो ऐसे दोषी व्यक्ति को जमानत ही नहीं, पैरोल या फरलो पर थोड़े वक्त की रिहाई भी नहीं मिलेगी।
इस कानून के तहत धार्मिक स्थलों का रखरखाव और संचालन करने वालों पर भी जिम्मेदारी डाली गई है। इसके तहत ग्रंथी, रागी, सेवादार, ढाडी, पंडित, पुजारी, मौलवी या पादरी को भी उनके धार्मिक क्रियाकलापों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। अगर पवित्र धर्मग्रंथों की पवित्रता को भंग करने का दोषी पाया जाता है तो उन्हें भी इस कानून के तहत निरुद्ध किया जा सकता है। अगर वो धर्मग्रंथों के अपमान के दोषी पाए गए तो उन्हें अधिकतम सजा यानी उम्रकैद ही मिलेगी। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी की साजिश रचने या इसे भड़काने पर भी केस चलाया जाएगा। धार्मिक आयोजन और पूजा-पाठ में विघ्न डालने वाले भी इस कानून के दायरे में आएंगे।
पंजाब की भगवंत मान सरकार के बेअदबी विरोधी कानून को लेकर मानवाधिकार संगठनों ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इस कानून के दुरुपयोग होने की आशंका है। कट्टरपंथियों द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। पाकिस्तान में ईश निंदा कानून के बेजा इस्तेमाल का हवाला भी दिया गया। आलोचकों का कहना है कि इस विधेयक में सिर्फ चार ग्रंथों को ही क्यों शामिल किया गया है। पारसी-जैन और अन्य धर्मों को इसके दायरे से क्यों बाहर रखा गया है। इसके जवाब में मान सरकार का कहना है कि वैसे तो ये कानून केंद्र सरकार को बनाना चाहिए था, लेकिन समवर्ती सूची में होने के कारण अब पंजाब सरकार इस पर कानून बना रही है। अब तक पवित्र ग्रंथों की बेअदबी से जुड़ा कोई व्यापक कानून नहीं होने के कारण आरोपी कार्रवाई या सजा से बच जाते हैं। ये विधेयक सभी धर्म और समुदायों के पवित्र ग्रंथों की बेअदबी के मामलों से निपटने में कारगर साबित होगा।
बेअदबी से जुड़े दो विधेयकों को कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार के दौरान भी पारित कराया गया था। हालांकि केंद्र सरकार ने इन विधेयकों को हरी झंडी नहीं दी थी। भाजपा-अकाली दल की सरकार में 2016 में ऐसा बिल लाया गया था, लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी न मिल पाने से ये कानून में तब्दील नहीं हो पाया। हालांकि पहले के विधेयकों में सिर्फ गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान से जुड़े मामलों में ही सजा का प्रावधान था। केंद्र सरकार ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुसार, सभी धर्मों के ऐसे मामलों से जुड़ा विधेयक लाने की बात कहते हुए इसे वापस कर दिया था। हालांकि अमरिंदर सरकार ने 2018 में जो विधेयक पारित किया था, उसमें श्री गुरु ग्रंथ साहिब, भगवद् गीता के साथ कुरान और बाइबिल को भी इसमें शामिल किया था। फिर भी केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता में बदलावों के अनुसार इसे दोबारा तैयार करने की बात कहते हुए वापस कर दिया था।
विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब सहित अन्य धार्मिक ग्रंथांे की बेअदबी को लेकर पंजाब विधानसभा में शुरू हुई बहस में भाग लेते हुए कहा कि इस बिल में धार्मिक ग्रंथो को चोरी करने को शामिल नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि पंजाब में 2015 में गांव बुर्ज जवाहर सिंह के गुरुद्वारा साहिब से जो बीड चोरी हुई थी उसी से यह विवाद शुरू हुआ लेकिन इस बिल यही मद गायब है। बाजवा ने सुझाव दिया कि गुरु ग्रंथ साहिब और अन्य धर्मों के स्क्रिपचर के लिए अलग सजा होनी चाहिए। बाजवा ने यह भी कहा कि अगर बेअदबी को लेकर कहीं प्रदर्शन हों तो उन पर असल गोली न चलाई जाए जैसा
कि कोटकपूरा या बहिबल कलां में हुआ था। (हिफी)