
योगेश्वर कृष्ण ने अपने सखा गांडीवधारी अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में जब मोहग्रस्त देखा, तब कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का गूढ़ वर्णन करके अर्जुन को बताया कि कर्म करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, फल तुम्हारे अधीन है ही नहीं। जीवन की जटिल समस्याओं का ही समाधान करना गीता का उद्देश्य रहा है। स्वामी रामसुखदास ने गीता के माधुर्य को चखा तो उन्हें लगा कि इसका स्वाद जन-जन को मिलना चाहिए। स्वामी रामसुखदास के गीता-माधुर्य को हिफी फीचर (हिफी) कोटि-कोटि पाठकों तक पहुंचाना चाहता है। इसका क्रमशः प्रकाशन हम कर रहे हैं।
-प्रधान सम्पादक
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
जिज्ञासापूर्तये टीका लिखिता साधकस्य या।
संजीवनीप्रवेशाय माधुर्यं लिख्यते मया।।
पहला अध्याय
पाण्डवों ने बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास समाप्त होने पर जब पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार अपना आधा राज्य माँगा, तब दुर्योधन ने आधा राज्य तो क्या, तीखी सुई की नोक जितनी जमीन भी बिना युद्ध के देनी स्वीकार नहीं की। अतः पाण्डवों ने माता कुन्ती की आज्ञा के अनुसार युद्ध करना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार पाण्डवों और कौरवों के बीच युद्ध होना निश्चित हो गया तथा दोनों ओर से युद्ध की तैयारी होने लगी।
महर्षि वेद व्यास जी का धृतराष्ट्र पर बहुत स्नेह था। उस स्नेह के कारण उन्होंने धृतराष्ट्र के पास आकर कहा कि ‘युद्ध होना और उसमें क्षत्रियों का महान् संहार होना अवश्यम्भावी है, इसे कोई टाल नहीं सकता। यदि तुम युद्ध देखना चाहते हो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि दे सकता हूँ, जिससे तुम यहीं बैठे-बैठे युद्ध को अच्छी तरह से देख सकते हो।’ इस पर धृतराष्ट्र ने कहा कि ‘मैं जन्मभर अन्धा रहा, अब अपने कुल के संहार को मैं देखना नहीं चाहता, परन्तु युद्ध कैसे हो रहा है – यह समाचार जरूर जानना चाहता हूँ।’ व्यास जी ने कहा कि ‘मैं संजय को दिव्य दृष्टि देता हूँ, जिससे यह सम्पूर्ण युद्ध को, सम्पूर्ण घटनाओं को, सैनिकों के मन में आयी हुई बातों को भी जान लेगा, सुन लेगा, देख लेगा और सब बातें तुम्हें सुना भी देगा।’ ऐसा कह कर व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की। उधर निश्चित समय के अनुसार कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाएं युद्ध के लिये तैयार थीं।
अब प्रश्न होता है कि जब युद्ध के लिये दोनों सेनाएं तैयार थीं, ऐसे मौके पर भगवान्ने अर्जुन को गीता का उपदेश क्यों दिया?
शोक दूर करने के लिये ही भगवान्ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।
अर्जुन को शोक कब हुआ और क्यों हुआ?
जब अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने ही निजी कुटुम्बियों को देखा और सोचा कि दोनों तरफ हमारे ही कुटुम्बी मरेंगे, तब ममता के कारण उनको शोक हुआ।
अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने कुटुम्बियों को क्यों देखा?
भगवान् श्री कृष्ण ने जब दोनों सेनाओं के बीच में रथ खड़ा करके अर्जुन से कहा कि ‘तुम युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए इन कुरुवंशियों को देखो’ तब अर्जुन ने अपने कुटुम्बियों को देखा।
भगवान्ने अर्जुन को दोनों सेनाओं में कुरुवंशियों को देखने के लिये क्यों कहा?
अर्जुन ने पहले भगवान् से कहा था कि ‘हे अच्युत! दोनों सेनाओं के बीच में मेरा रथ खड़ा करो, जिससे मैं देखूं कि यहाँ मेरे साथ दो हाथ करने वाले कौन है?;
अर्जुन ने ऐसा क्यों कहा?
जब युद्ध की तैयारी के बाजे बजे, तब उत्साह में भरकर अर्जुन ने दोनों सेनाओं के बीच में रथ खड़ा करने के लिये भगवान से कहा।
बाजे क्यों बजे?
कौरव सेना के मुख्य सेनापति भीष्म जी ने जब सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया, तब कौरव सेना के बाजे बजे और पाण्डव सेना के भी बाजे बजे।
भीष्म जी ने शंख क्यों बजाया?
दुर्योधन को हर्षित करने के लिये भीष्म जी ने शंख बजाया।
दुर्योधन अप्रसन्न क्यों था?
दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर कहा कि ‘आपके प्रतिपक्ष में पाण्डवों की सेना खड़ी है, इसको देखिये अर्थात् जिन पाण्डवों पर आप प्रेम-स्नेह रखते हैं, वे ही आपके विरोध में खड़े है। पाण्डव सेना की व्यूह-रचना भी धृष्टद्युम्न के द्वारा की गयी है, जो आपको मारने के लिये ही उत्पन्न हुआ है।’ इस प्रकार दुर्योधन की चालाकी से, राजनीति से भरी हुई तीखी बातों को सुनकर द्रोणाचार्य चुप रहे, कुछ बोले नहीं। इससे दुर्योधन अप्रसन्न हो गया।
द्रोणाचार्य चुप क्यों रहे?
दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को उकसाने के लिये चालाकी से राजनीति को जो बातें कहीं, वे बातें द्रोणाचार्य को बुरी लगीं। उन्होंने यह सोचा कि अगर मैं इन बातों का खण्डन करूँ तो युद्ध के मौके पर आपस में खटपट हो जायेगी, जो उचित नहीं है। मैं इन बातों का अनुमोदन भी नहीं कर सकता, क्योंकि यह चालाकी से बातचीत कर रहा है, सरलता से बातचीत नहीं कर रहा है। इसलिये द्रोणाचार्य चुप रहे।
दुर्योधन ने ऐसी बातें कब कहीं और क्यों कहीं?
दुर्योधन ने व्यूहाकार खड़ी हुई पाण्डव सेना को देखकर गुरु द्रोणाचार्य को उकसाने के लिये ऐसी बातें कहीं। इसका वर्णन संजय ने धृतराष्ट्र से किया है।
संजय ने यह वर्णन धृतराष्ट्र के प्रति क्यों किया?
जब धृतराष्ट्र ने युद्ध की कथा को आरम्भ से विस्तारपूर्वक सुनना चाहा, तब संजय ने ये सब बातें धृतराष्ट्र से कहीं।
धृतराष्ट्र ने संजय से क्यों सुनना चाहा?
दस दिन युद्ध होने के बाद संजय ने अचानक आकर धृतराष्ट्र से यह कहा कि ‘कौरव-पाण्डवों के पितामह, शान्तनु के पुत्र भीष्म मारे गये (रथ से गिरा दिये गये)। जो सम्पूर्ण योद्धाओं में मुख्य और सम्पूर्ण धनुर्धारियों में श्रेष्ठ थे, ऐसे पितामह भीष्म आज शर-शय्या पर सो रहे हैं।’ इस समाचार को सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दुःख हुआ और वे विलाप करने लगे। फिर उन्होंने संजय से युद्ध का सारा वृत्तान्त सुनाने के लिये कहा और पूछा-
हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?।।1।।
संजय बोले – उस समय व्यूह रचना से खड़ी हुई पाण्डवों की सेना को देखकर राजा दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे कहा कि ‘हे आचार्य! आप अपने बुद्धिमान शिष्य द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न के द्वारा व्यूह रचना से खड़ी की हुई पाण्डवों की इस बड़ी भारी सेना को देखिये।।। 2-3।। (हिफी)
(क्रमशः साभार)
(हिफी डेस्क-हिफी फीचर)