मांझी का शांति पैगाम

बिहार में विधानसभा चुनाव के मतदान की घोषणा हो चुकी है। इसके बाद सत्तारूढ़ एनडीए के घटक दल भी सीटों को लेकर अपनी-अपनी ताकत दिखा रहे हैं। हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा (हम) के नेता जीतन राम मांझी महाभारत में शांति दूत का संदेश दे रहे हैं। उन्होंने एक तरह से धमकी दी है। मांझी ने सोशल मीडिया पर सीट बंटवारे का जो संकेत दिया है उसकी राजनीतिक गलियारे मंे बहुत चर्चा हो रही है। मांझी ने लिखा है-
हो न्याय अगर तो आधा दो।
यदि उसमें भी कुछ बाधा हो।।
तो दे दो केवल 15 ग्राम।
रखो अपनी धरती तमाम।।
‘हम’ वहीं खुशी से खाएंगे।
परिजन पर असि न उठाएंगे।।
इस प्रकार जीतन राम मांझी ने 15 सीटों की मांग कर दी है। हालांकि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान खामोश हैं लेकिन 25 से 30 सीटोें की मांग उनकी भी है। जीतन राम मांझी अपने दलित वोट बैंक का हवाला देकर दबाव बनाए हुए हैं। भाजपा और जद जद (यू) हालांकि ज्यादा से ज्यादा सीटें लेकर सरकार फिर से बनाने का समीकरण गढ़ रहे हैं लेकिन चिराग पासवान और जीतन राम मांझी में से किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते हैं। दोनों नेताओं की सीट डिमांड ने एनडीए का चुनावी गणित उलझा दिया है। हालांकि चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस अपने भतीजे की राह में रोड़े नहीं बल्कि पत्थर अटकाने की कोशिश कर रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर सियासी खींचतान चरम पर पहुंच गई है चिराग पासवान की खामोशी और जीतन राम मांझी के तल्ख तेवर इस बात का संकेत हैं कि गठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। चिराग पासवान जहां अपनी पार्टी लोजपा (रामविलास) के लिए 25 से 30 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं, वहीं मांझी ने साफ चेतावनी दी है कि उन्हें 15 सीटों से कम मंजूर नहीं। दिल्ली में बीजेपी नेताओं और चिराग पासवान के बीच हुई मुलाकात के बावजूद सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन सकी है। चिराग का रुख अब और कड़ा दिख रहा है। उन्होंने बातचीत की जिम्मेदारी अपने बहनोई अरुण भारती और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी को सौंप दी है। सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान चाहते हैं कि लोजपा (रामविलास) को कम से कम 25 से 30 विधानसभा सीटें दी जाएं। बीजेपी ने अब तक 22-25 सीटों पर सहमति जताई है, लेकिन चिराग के लिए यह संख्या पर्याप्त नहीं है। चिराग की मांग है कि 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी जिन 5 सीटों (हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, नवादा और जमुई) पर जीती थी, उन प्रत्येक लोकसभा क्षेत्रों से कम से कम दो विधानसभा सीटें उनकी पार्टी को दी जाएं। साथ ही, लोजपा (रामविलास) के वरिष्ठ नेताओं के लिए भी कुछ सुरक्षित सीटों की मांग की गई है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने दिल्ली में चिराग पासवान से मुलाकात की थी लेकिन बैठक के बाद भी अंतिम सहमति नहीं बन पाई। चिराग का फोकस सिर्फ संख्या पर नहीं, बल्कि अपने प्रभाव क्षेत्र वाली सीटों पर है।
दूसरी ओर, जीतन राम मांझी ने भी अपने तेवर साफ कर दिए हैं। उन्होंने एनडीए नेतृत्व को चेतावनी दी है कि उन्हें 15 सीटों से कम मंजूर नहीं। मांझी की पार्टी ‘हम’ पिछले चुनाव में एनडीए का हिस्सा रही थी और उन्हें चार सीटें मिली थीं। इस बार वे अपने संगठन की मजबूती और दलित वोटबैंक को आधार बनाकर बड़ी हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। दोनों दलों की सख्त स्थिति ने एनडीए की सीट बंटवारे की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है बीजेपी जहां छोटे सहयोगियों को साथ रखकर गठबंधन की एकजुटता बनाए रखना चाहती है, वहीं चिराग और मांझी दोनों “सम्मानजनक हिस्सेदारी” की मांग पर अड़े हैं। बीजेपी नेताओं का कहना है कि पार्टी जल्द ही अंतिम फार्मूला तय करेगी, लेकिन अंदरखाने यह माना जा रहा है कि अगर चिराग की शर्तें नहीं मानी गईं, तो वे “बागी रुख” भी अपना सकते हैं। जैसा उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में किया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग और मांझी दोनों के पास अपने-अपने वोट बैंक है।
उधर विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस अपने भतीजे से पुराना हिसाब चुकाना चाहते हैं। पशुपति पारस ने कहा है कि चिराग पासवान ने पार्टी और परिवार को तोड़ने का काम किया है यही वजह है कि वो बिहार विधानसभा चुनाव में जहां-जहां कैंडिडेट उतारेंगे, वहां उनकी पार्टी की तरफ से भी कैंडिडेट उतारे जाएंगे महागठबंधन में उन्हें जितनी भी सीट मिलंे उन सीटों पर तो वो चुनाव लड़ेंगे ही, इसके अलावा जहां भी चिराग पासवान के कैंडिडेट होंगे, वहां वो निर्दलीय उम्मीदवार उतार कर उन्हें हराने की कोशिश करेंगे। जून 2021 में चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार परस के बीच पार्टी नियंत्रण का खुला संघर्ष शुरू हुआ। 14 जून 2021 को पारस को लोक जनशक्ति पार्टी
का लोकसभा नेतृत्व दिया गया और अगले ही दिन यानी 15 जून चिराग
को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष से हटाये जाने जैसे घटनाक्रमों के बाद दोनों
पक्ष आमने-सामने आ गए। चिराग
ने भी विरोधी सांसदों को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। लोक जनशक्ति पार्टी के अंदर उभरे सत्ता-संघर्ष ने चिराग पासवान को अपने चाचा से दूर कर दिया था।
चुनाव आयोग ने अक्टूबर 2021 में पार्टी के दो गुटों के लिए अलग-अलग नाम और प्रतीक जारी कर दिएय चिराग का गुट अब लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के रूप में दर्ज ह वहीं, पशुपति गुट ने राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी बनाई। उस समय लोजपा के 6 सांसद में पांच पशुपति के साथ हो गए। इसके बाद चिराग पासवान ने लोकसभा चुनाव 2024 तक इंतजार किया। बीजेपी ने पशुपति पारस की पार्टी की जगह चिराग पासवान की नई पार्टी से गठबंधन कर लिया। साथ ही पशुपति पारस को एक सीट भी नहीं मिली। उसके बाद चिराग ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक पहचान बनाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह भी बनाई। जून 2024 में उन्हें खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया, जिससे उनकी साख को बढ़ावा मिला। पशुपति कुमार पारस ने अप्रैल 2025 में साफ किया कि उनकी पार्टी अब बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए का घटक नहीं रहेगी। यह ऐलान उन्होंने उस समय किया जब उन्हें और उनके गुट को पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में टिकट नहीं दिए जाने को लेकर नाराजगी थी। फिलहाल राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का न कोई विधायक और न ही सांसद लेकिन वह चिराग पासवान के वोट काट सकते हैं। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)