महाराष्ट्र में मराठा बनाम ओबीसी

इसी साल जिन चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उनमें महाराष्ट्र भी शामिल है और यह सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में 2019 में भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 विधायक मिले थे। चुनाव भाजपा और शिवसेना ने मिलकर लड़ा था। दोनों सरकार भी बना सकते थे लेकिन शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा से अलग हो गये। उन्होंने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनायी। कांग्रेस और एनसीपी शिवसेना की पूर्व में विरोधी पार्टी रही हैं, इसी आधार पर एकनाथ शिंदे ने कई विधायकों को साथ लेकर बगावत कर दी। सारा खेल भाजपा का था, इसलिये भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की नाराजगी को दरकिनार कर एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया। उधर, एनसीपी में भी अजीत पवार ने बगावत कर शिंदे की सरकार में मलाई काटी। लोकसभा चुनाव में जनता ने बगावत करने वालों को पसंद नहीं किया। इसलिए महाराष्ट्र में अब विधानसभा चुनाव से पहले मराठा बनाम ओबीसी का खेल शुरू हो गया है। दरअसल यूपी की राजनीति में तहलका मचाने वाले अखिलेश यादव ने घोषणा की है कि वे भी महाराष्ट्र में विपक्षी दलों के महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगे। गठबंधन अगर साथ नहीं लेगा तो अकेले लड़ंेगे। उन्होंने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को लेकर पीडीए बनाया है। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मामला शिवसेना ने उठाया है। उधर, ओबीसी नेता छगन भुजबल शरद पवार का साथ छोड़कर अजीत पवार के साथ चले गये हैं। अब छगन भुजबल की शरद पवार से मुलाकात को मराठा बनाम ओबीसी की सियासत के रूप में देखा जा रहा है।
पिछले दिनों महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गयी। दरअसल, पहले से ही ऐसी खबरें आ रही थीं कि महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार गुट के कुछ नेता नाराज हैं और वो शरद पवार के साथ जा सकते हैं। इसी बीच 13 जुलाई को अचानक ही अजित गुट के दिग्गज नेता छगन भुजबल शरद पवार से मुलाकात करने के लिए पहुंच गए। इस मुलाकात पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। ये मुलाकात ऐसे वक्त पर हुई है, जब एक दिन पहले ही छगन भुजबल ने शरद पवार पर जोरदार हमला किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र में जिस तरह मराठा आरक्षण पर लोगों को भड़काया जा रहा है, उसके पीछे शरद पवार ही हैं और बाद में वह उनसे मिलने पहुंच गए। शरद पवार और छगन भुजबल के बीच यह मुलाकात मराठा बनाम ओबीसी के बीच हो रही लड़ाई के चलते हुई है। सरकार ने कुछ दिन पहले ओबीसी के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी लेकिन इसमें विपक्ष का कोई नेता शामिल नहीं हुआ था। इससे पहले छगन भुजबल ने बारामती में शरद पवार का नाम लिये बिना उन पर दो समाज के बीच दरार डालने का आरोप लगाया था।
सरकार चाहती है कि शरद पवार मराठा ओबीसी विवाद पर अपनी भूमिका साफ करें। विवाद के मुताबिक मराठा आंदोलनकर्ता मनोज जरागे पाटिल की मांग है कि जिन मराठाओं को ओबीसी के तहत आरक्षण दिया गया है उनके सगे संबंधियों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए। हालांकि, ओबीसी समाज के नेता इस तरह से ओबीसी के तहत मराठाओं को आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं। सरकार भी इसके पक्ष में नहीं है। सरकार ने मराठाओं को अलग से 10 फीसदी आरक्षण देने का बिल विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर पारित कर दिया है। उधर, लोकसभा चुनाव में बेहतरीन परफॉर्मेंस के बाद सपा की नजर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर है। इंडिया गठबंधन के साथ सपा महाराष्ट्र में कम से कम 10 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। हालांकि, पार्टी की तैयारी विधानसभा की 35 सीटों पर है। सपा के इस विस्तार नीति को सफल बनाने के लिए अखिलेश यादव ने इंद्रजीत सरोज को महाराष्ट्र का प्रभारी बनाया है। अखिलेश यादव के कार्यकाल में यह पहली बार है, जब समाजवादी पार्टी ने यूपी से बाहर किसी बड़े राज्य में अपने दिग्गज नेता को प्रभारी बनाकर भेजा है। ऐसे में सियासी गलियारों में इस नियुक्ति को लेकर 2 सवाल हैं। पहला, अखिलेश ने महाराष्ट्र की कमान इंद्रजीत सरोज को ही क्यों दी और दूसरा क्या सरोज महाराष्ट्र में कमाल कर पाएंगे?
बहुजन समाज पार्टी से सपा में आए इंद्रजीत सरोज को संगठन का नेता माना जाता है। सरोज को 2019 में अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया था। सरोज अब तक कौशांबी, प्रतापगढ़ और इलाहाबाद के इलाके देखते थे। 2024 में सपा ने इन इलाकों की 4 में से 3 सीटों पर जीत हासिल की। सपा की इस जीत के बाद सरोज के यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की भी चर्चा थी, लेकिन इससे पहले ही अखिलेश ने उन्हें महाराष्ट्र की कमान सौंप दी है।
सरोज पासी (दलित) समुदाय से आते हैं और महाराष्ट्र में इस समुदाय की आबादी करीब 10.5 प्रतिशत है। संख्या के हिसाब से देखा जाए तो महाराष्ट्र की हर विधानसभा में दलितों की आबादी 15 हजार के आसपास है। महाराष्ट्र में सपा का सबसे बड़ा चेहरा अबु आजमी हैं, जो मुस्लिम समुदाय के बड़े नेता भी माने जाते हैं। राज्य में इस समुदाय की आबादी करीब 11 प्रतिशत है। अखिलेश ने इन्हीं दोनों समुदाय को जोड़ने के लिए सरोज को प्रभारी बनाकर महाराष्ट्र भेजा है। लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी की प्रदेश इकाई ने एक समीक्षा बैठक की थी, जिसमें अबु आजमी ने महाराष्ट्र की 30-35 सीटों पर मजबूती से तैयारी करने के निर्देश दिए थे। आजमी इसके बाद अखिलेश यादव से मिले थे।
महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के तहत सपा की कोशिश कम से कम 10 सीटों पर लड़ने की है। इसके पीछे पार्टी के 3 तर्क है- पहला यह कि 2009 में सपा को विधानसभा की 4 सीटों (मनखुर्द नगर, भिवानी ईस्ट, भिवानी वेस्ट और नवापुर) पर जीत मिली थी और 2019 में भी पार्टी ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। समाजवादी पार्टी 2019 में 7 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे कुल 0.69 प्रतिशत वोट मिले थे।
महाराष्ट्र में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित है। राज्य में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं, जिसमें सरकार बनाने के लिए कम से कम 145 सीटों की जरूरत होती है। राज्य में मुख्य मुकाबला एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन के बीच है। एनडीए में शिवसेना, एनसीपी, बीजेपी, आरपीआई और मनसे जैसे दल हैं तो दूसरी तरफ इंडिया में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (एसपी) जैसी पार्टियां शामिल हैं। बहुजन विकास अघाडी और एआईएमआईएम जैसी पार्टियां भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)