राजनीति

राजस्थान में कांग्रेस की मुसीबत हैं मठाधीश

 

कांग्रेस पार्टी को राजस्थान में भी नया प्रदेश अध्यक्ष व विधायक दल के नेता का शीघ्र चयन करना चाहिए। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा स्वयं तो चुनाव जीत गए मगर उनसे चलते कांग्रेस पार्टी को चुनाव में बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। उनकी विवादास्पद छवि तथा राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में उनके परिजनों के चयन को लेकर भी प्रदेश में बड़े विवाद उठे थे। इसके बाद से ही कांग्रेस बचाव की मुद्रा में आ गई थी। मुख्यमंत्री रहते अशोक गहलोत ने आमजन के लिये अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाई थीं मगर डोटासरा जैसे लोगों के बड़बोलेपन के चलते योजनाएं अप्रभावी होकर रह गई थी।

राजस्थान में इस बार कांग्रेस को सिर्फ 69 विधायक मिल पाये हैं। सबसे अधिक 17 विधायक जाट समाज से है। जाट समाज से इतने विधायकों के जीतने से स्पष्ट है कि जाटों ने आज भी कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है। जाटों द्वारा कांग्रेस को दिए गए समर्थन के कारण ही शेखावाटी क्षेत्र की 21 सीटों में से कांग्रेस 14 सीट फिर से जीतने में सफल रही है जबकि भाजपा को मात्र 6 सीट ही मिल पाई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी इस क्षेत्र में कांग्रेस को 15 सीट मिली थीं।
वहीं गंगानगर और हनुमानगढ़ जिले की कुल 11 में से 10 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस 6 सीटों पर जीती है जबकि भाजपा को मात्र तीन सीट ही मिल पाई है। इस तरह देखें तो गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरु झुंझुनू, सीकर की 31 में से कांग्रेस ने 20 सीट जीत ली है। वही भाजपा को मात्र 9 सीट ही मिल पाई है। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी जाट विधायक की नियुक्ति से पार्टी को मजबूती मिलेगी। जाट समाज से जीतने वाले विधायकों में हरीश चैधरी व नरेंद्र बुडानिया दोनों ही निर्विवाद हैं और पार्टी व समाज एवं कार्यकर्ताओं पर अच्छी पकड़ रखते हैं।

बाड़मेर जिले की बायतु सीट से लगातार दूसरी बार जीते हरीश चैधरी अभी पंजाब कांग्रेस के प्रभारी है तथा गहलोत की पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। इससे पूर्व वह बाड़मेर-जैसलमेर क्षेत्र से लोकसभा के सांसद भी रह चुके हैं। हरीश चैधरी राहुल गांधी के नजदीकी लोगों में शुमार होते हैं। इसी तरह चुरू जिले की तारानगर सीट पर राजस्थान के लगातार सात बार जीतने वाले विधायक व नेता प्रतिपक्ष रहे राजेंद्र राठौड़ को हराने वाले नरेंद्र बुडानिया तीन बार लोकसभा, तीन बार राज्यसभा व तीन बार विधानसभा के सदस्य रहे हैं। यदि उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है तो पार्टी कार्यकर्ताओं में अच्छा मैसेज जाएगा। इसके अलावा भी जाट समाज में कई ऐसे युवा विधायक जीते हैं जो पहले में भी विधायक रह चुके हैं।

अब कांग्रेस को विधायक दल के नेता पद पर अनुसूचित जाति, जनजाति के किसी विधायक का चयन करना चाहिए। अनुसूचित जाति, जनजाति के 25 विधायक विजयी भी रहे हैं जिनमें से मीणा समाज के आठ, अनुसूचित जाति के 11 व आदिवासी समुदाय के छह विधायक जीते हैं। अनुसूचित जाति जनजाति हमेशा से ही कांग्रेस का वोट बैंक रही है तथा इस बार भी उन्होंने कांग्रेस का पूरा साथ दिया हैं। ऐसे में विधायक दल के नेता पद पर मीणा समाज के मुरारी लाल मीणा, आदिवासी समाज के महेंद्रजीत मालवीय या अन्य किसी विधायक को विधायक दल का नेता बनाया जाना पार्टी के हित में रहेगा। यह दोनों ही वरिष्ठ विधायक है तथा पूर्व में मंत्री भी रह चुके हैं। महेंद्रजीत मालवीया तो कांग्रेस पार्टी की कार्य समिति के सदस्य भी हैं।

इसी प्रकार मुस्लिम समुदाय भी कांग्रेस समर्थक रहा है। मुस्लिम समुदाय के इस बार पांच विधायक विजयी हुए हैं। यदि उनमें से किसी को उपनेता बनाया जाता है तो कांगे्रस पार्टी के लिए आने वाला समय अच्छा रहेगा। कांग्रेस पार्टी के कुल 69 विधायकों में से जाट 17, ब्राह्मण चार, मीणा 8, अनुसूचित जाति 11, जनजाति 6, बनिया 5, गुर्जर 3, यादव 2, मुस्लिम 5, माली 3, चारण 1, कुम्हार 1, पटेल 1 सहित कई अन्य जातियों के विधायक शामिल हैं।
इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बीजेपी से मात्र 856840 यानी 2.16 प्रतिशत मत कम मिलने के कारण कांग्रेस बीजेपी से 46 सीट पीछे रह गई। यदि कांग्रेस के नेता बागी खड़े नहीं होते और आपसी गुटबाजी नहीं होती तो इतना सा अंतर को पाट पाना कांग्रेस के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। मगर अशोक गहलोत व सचिन पायलट की आपसी गुटबाजी के चलते कांग्रेस पार्टी फिर से सरकार बनाने से रह गई तथा अशोक गहलोत द्वारा हर बार राज बदलने की परंपरा को तोड़ने का सपना भी सपना बनकर ही रह गया।

राजस्थान में चुनावी प्रक्रिया के दौरान से ही प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा द्वारा जिस तरह से प्रदेश कमेटी में धड़ाधड़ सचिव व महासचिव के पदों पर नियुक्तियां की जा रही है उसको लेकर भी कांग्रेसजनों में अच्छी सोच नहीं है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मानना है कि प्रदेश प्रभारी द्वारा मनमानी तरीके से की जा रही नियुक्तियों में आर्थिक हित साधे जा रहे हंै। कई नियुक्तियां तो ऐसे लोगों की की गई है जिनके परिजनों ने हाल ही के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव प्रचार किया था। प्रदेश प्रभारी द्वारा अपने स्तर पर बड़ी संख्या में की जा रही नियुक्तियों से कांग्रेस की छवि दागदार हो रही है। कांग्रेस आलाकमान को ऐसी नियुक्तियों पर भी संज्ञान लेकर उचित कार्यवाही करनी चाहिए ताकि गलत लोगों को पार्टी में पदाधिकारी बनने से रोका जा सके।

जिस तरह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने कमलनाथ व दिग्विजय सिंह को हटाकर जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष, उमंग सिंघार को विधायक दल का नेता व हेमंत कटारे को उपनेता बनाया और छत्तीसगढ़ में भी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विरोधी खेमे के दीपक बैज को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष व आदिवासी नेता चरण दास महंत को विधायक दल का नेता बनाया गया है। उसी तरह राजस्थान में भी बिना समय गवायें नयी नियुक्तियां करनी चाहिए ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी मजबूती से मुकाबले में खड़ी हो सके।

कांग्रेस आालाकमान को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट दोनों को ही अलग रखकर ऐसे नए लोगों को आगे लाना चाहिए जो गुटबाजी से दूर रहकर पार्टी को फिर से मजबूत कर सके और पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरकर उनका मनोबल मजबूत रख सकें तभी आने वाले समय में कांग्रेस फिर से मजबूत होकर उभर सकेगी। यदि प्रदेश मंे कांगे्रस की राजनीति अशोक गहलोत व सचिन पायलट के इर्द-गिर्द ही चलती रही और दोनों गुटों में आपसी कलह पूर्व की तरह ही रही तो कांग्रेस को नुकसान ही उठाना पड़ेगा। इसलिए निर्विवाद छवि के लोगों को आगे लाकर नेतृत्वकर्ता के स्थान पर बैठाना चाहिए। तभी कांग्रेस के फिर से अच्छे दिन आ सकेंगे। (हिफी)

(रमेश सर्राफ धमोरा-हिफी फीचर)

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